पिंकी सिंघल
हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष को 12 महीनों में बांटा गया है ,जिनके हिंदी नाम इस प्रकार हैं ,चैत्र ,वैशाख, ज्येष्ठ ,आषाढ़, सावन ,भाद्रपद ,आश्विन, कार्तिक , अग्रहायण,पोष, माघ और फाल्गुन। इन सभी महीनों को अंग्रेजी कलेंडर में अंग्रेजी नाम अर्थात जनवरी, फरवरी, मार्च अप्रैल….इत्यादि के नाम से लिखा जाता है।
स्पष्ट है कि फाल्गुन मास का महीना खत्म होते ही ज्येष्ठ का महीना शुरु होता है ।जैसे कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है ज्येष्ठ अर्थात बड़ा ,वर्ष का तीसरा महीना,अर्थात जिस महीने को आंचलिक भाषा बोली में जेठ का महीना भी बोला जाता है ।अक्सर आपने लोगों को कहते सुना होगा कि जेठ की दुपहरी चिलचिलाती हुई गर्मी लिए होती है।जेठ के महीने को गर्मी का महीना भी कहा जाता है।इस महीने को जेठ का महीना इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस महीने में पूरे वर्ष की तुलना में दिन सबसे अधिक बड़े होते हैं और सूर्य की महत्ता की वजह से इस महीने में सूर्य देव और वरुण देव की पूजा का अपना एक अलग ही महत्व होता है। इस महीने में सूर्यदेव अपने ताप के चरम पर होते हैं अर्थात इस माह में गर्मी काफी बढ़ जाती है।
मई-जून में पड़ने वाले जेठ के महीने में वातावरण बहुत अधिक जला देने वाला होता है ।चूंकि इस महीने में शरीर में पानी का स्तर काफी कम हो जाता है इसलिए इस महीने में जल का अत्यधिक सेवन करना चाहिए ।वैसे तो रोजमर्रा के जीवन में ही हमें पानी को सोच समझकर प्रयोग करना चाहिए और उसको व्यर्थ होने से बचाना चाहिए, गर्मियों में जब पानी का स्तर काफी नीचे हो जाता है और हर जगह पानी की कमी होने लगती है तो हमें पाने का बहुत ही समझदारी से प्रयोग करना चाहिए।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य की बात करें तो हम सभी फिलहाल देख ही रहे हैं कि गर्मी किस कदर बढ़ गई है और घर से बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है।पसीने से तरबतर होकर बाहर गए लोग वापस घर लौट रहे हैं और बाहर निकलने से कतरा रहे हैं।
सूर्य के प्रकोप से बचने के लिए हम सभी ना जाने कितने ही उपाय करते हैं। घर से बाहर निकलते हुए पर्याप्त मात्रा में अपने साथ पानी और बदन ढकने के लिए कपड़ों को साथ लेकर चलते हैं, ताकि लू के थपेड़ों से खुद को बचाया जा सके। इस महीने में सूर्य का प्रकोप काफी अधिक हो जाता है इसलिए हमें अपने खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए ।हमें ऐसे खाद्य पदार्थ अपने भोजन में शामिल नहीं करने चाहिएं जो तासीर से गर्म माने जाते हैं। गर्मी की अधिकता हो जाने के कारण ही जेठ के महीने में ही लोग जगह-जगह पर मीठे पानी की छबील लगाते हैं और सूर्य देव को प्रसन्न करने का हर संभव प्रयास करते हैं। प्यासों की प्यास बुझाना तो वैसे भी हमारे शास्त्रों में पुण्य का कार्य बताया जाता है ।जेठ के महीने में जब चारों ओर लू चल रही होती है और हर शख्स गर्मी में बेहाल इधर उधर घूमता नजर आता है तो छबील लगाने का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
जिस प्रकार हम मनुष्यों को जेठ के महीने की तपती दुपहरी का सामना करना पड़ता है उसी प्रकार उन बेजुबान प्राणियों को भी लू के थपेड़े लगते हैं जो अपने लिए कुछ कर पाने में अक्षम होते हैं ।इसलिए हमें अपने साथ-साथ उन अबोध पशु पक्षियों और जीव-जंतुओं का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए ,उनके लिए जगह-जगह पर जल की व्यवस्था करनी चाहिए और संभव हो तो अपने आसपास पाए जाने वाले प्राणियों के लिए वस्त्र अथवा रहने का छोटा मोटा छप्पर डाल देना चाहिए।
कहा जाता है कि जेठ के महीने में पानी कपड़े और गर्मी से राहत देने वाले सामान का दान करने से बहुत पुण्य मिलता है ।वैसे तो साल के प्रत्येक दिन दान का अपना एक अलग महत्व होता है परंतु शास्त्रों और हमारी संस्कृति के अनुसार इस विशेष माह में इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है और दान करने का पुण्य भी कई गुना मिलता है। इसलिए इस महीने में दान करने में हमें विशेष दिलचस्पी दिखानी चाहिए और जरूरतमंदों की पूरे दिल से सहायता करनी चाहिए।
जो पेड़ पौधे और वृक्ष हमें ठंडी छांव और अन्य अनेक प्रकार के उपयोगी पदार्थ प्रदान करते हैं वे भी जेठ के महीने में जल जाते हैं और उनके पत्ते सूख कर झड़ने लगते हैं ।ऐसे में उन्हें बाकी समय से ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। यदि हमें अपने पर्यावरण को संरक्षित रखना है तो हमें वृक्षों और अन्य प्राकृतिक चीजों की रक्षा करनी चाहिए और समय-समय पर उनमें जल देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
जितना संभव हो सके हमें घर का पका हुआ खाना ही खाना चाहिए साथ ही साथ जब तक बहुत जरूरी ना हो हमें घर के बाहर नहीं निकलना चाहिए। दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात जब कभी आप घर से घर आते हैं तो एकदम से उधर अथवा ऐसी के सामने ना खड़े हो शरीर का तापमान स्थिर होने के बाद भी कूलर और एसी का प्रयोग करें अन्यथा यह हमारे शरीर के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। फ्रीज में रखी हुई चीजों को निकलते ही ना खाएं अपितु खाने से कुछ देर पहले बाहर निकाल कर रखा हुआ सामान ही खाना चाहिए अधिक ठंडा खाना खाने से हमारे शरीर पर उनका कुछ प्रभाव होता है और हमारा स्वास्थ्य बिगड़ जाता है फ्रिज का रखा ठंडा पानी भी हमारे दिए स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता इसके स्थान पर घड़े में रखा हुआ पानी हमारे लिए फायदेमंद साबित होता है और हमारी प्यास भी घड़े के पानी से ही हुई है मां की फ्रिज के रखे ठंडे पानी से।
दोस्तों जीत के महीने की गर्मी पर तो हमारा कोई नियंत्रण नहीं प्रकृति को नियंत्रित करने से बेहतर है कि हम स्वयं पर नियंत्रण रखें और प्रकृति प्रदत परिस्थितियों में रहने का प्रयास करें प्रकृति के हिसाब से ही अपने दिनचर्या को बनाएं और अनुसरण करें।