भ्रम पर अंकुश

curb confusion

विजय गर्ग

देश भर में फैले कोचिंग संस्थानों में पढ़ने के आकर्षण की मुख्य वजह यही है कि ऐसी लगभग सभी जगहों के बारे में किए गए प्रचार में यह जोर देकर बताया जाता है कि वहां पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरियां सबको मिलेंगी। मगर हकीकत क्या है, यह सभी जानते हैं। ज्यादातर कोचिंग संस्थान अपने यहां पढ़ाई कर रहे सौ फीसद विद्यार्थियों को नौकरी दिलवाने का वादा करते हैं और इस तरह एक तरह का जाल फेंक कर बच्चों को उसमें उलझा लेते हैं। जबकि सभी जानते हैं कि कोचिंग संस्थानों में हर वर्ष कितने विद्यार्थी पढ़ कर बाहर निकलते होंगे और नौकरी के लिए कितनी सीटें होती हैं। सीमित सरकारी नौकरियों के दौर में सबको अवसर दिलाने का दावा करना भ्रम फैलाने से कम नहीं है। इसे लेकर पिछले काफी समय से सवाल उठते रहे हैं।

अब केंद्र सरकार ने बुधवार को कोचिंग संस्थानों की ओर से कई स्तरों पर भ्रामक प्रचार पर नकेल कसने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसके तहत अब ‘सौ फीसद चयन’ या ‘सौ फीसद नौकरी की गारंटी’ जैसे दावे करने पर रोक लगाई गई है।

दरअसल, यह परंपरा सी बन गई है कि अपने प्रचार के क्रम में कोचिंग संस्थान जो दावे करते हैं, उसके बारे में किसी तरह की पारदर्शिता का पालन वे नहीं करते। यह स्पष्ट करने की जरूरत उन्हें नहीं लगती कि सीमित अवसरों के दौर में वे सौ फीसद गारंटी का दावा किस आधार पर करते हैं और इसे वे कैसे मुहैया कराएंगे। उनके आंतरिक ढांचे में शिक्षण का प्रारूप, शिक्षकों और उनकी योग्यता का ब्योरा, संसाधन आदि के बारे में पारदर्शिता का निर्वाह उन्हें जरूरी नहीं लगता। मगर अपने संस्थान की ओर आकर्षित करने के लिए जारी विज्ञापनों में बढ़-चढ़ कर झूठे दावे करने में कोई कमी नहीं की जाती। अब नए नियमों के मुताबिक, ऐसे संस्थानों को फीस, अपनी सेवाओं, उसकी गुणवत्ता, शिक्षकों की योग्यता और उनकी विश्वसनीयता आदि के बारे में स्पष्ट रूप से बताना होगा। ताजा दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने वाले कोचिंग संस्थानों पर दस से पचास लाख तक का जुर्माना लगाया जाएगा और लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है।

यह छिपा नहीं है कि छोटे शहरों से बड़े शहरों में अगर बहुत सारे विद्यार्थी कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने पहुंचते हैं, तो इसके पीछे एक बड़ा कारण इन संस्थानों के भारी-भरकम दावे होते हैं। कई बार किसी बड़े महत्त्व की नौकरी में कामयाबी हासिल करने वाले अभ्यर्थी को कई संस्थान अपने यहां से पढ़ाई किया हुआ बता देते हैं । इन दावों के प्रभाव में आकर और मोटी फीस चुका कर वहां दाखिला लेकर पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों को किसी प्रतियोगिता परीक्षा में चयनित होने का भरोसा दिया जाता और सौ फीसद सरकारी नौकरी की गारंटी दी जाती है। जबकि यह छिपा नहीं है कि देश भर के कोचिंग संस्थानों में हर वर्ष कितने विद्यार्थी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी करते हैं और सरकारी नौकरियों की उपलब्धता कितनी है। सीमित अवसरों के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों को पैसों का इंतजाम करके बड़े शहरों में भेजते हैं, कइयों को जमीन तक गिरवी रखनी या बेचनी पड़ती है या कर्ज लेना पड़ता है। मगर होता यही है कि गिनती के कुछ विद्यार्थियों को कामयाबी मिल पाती है और ज्यादातर को निराशा हाथ लगती है। इससे कैसी पारिवारिक- सामाजिक परिस्थितियां पैदा होती होंगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में कोचिंग संस्थानों के भ्रम परोसते दावों पर लगाम लगाना अपने भविष्य के लिए संघर्ष और जद्दोजहद करते विद्यार्थियों के हित में एक जरूरी कदम है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार