जीवन को असमय काल का ग्रास बनाते जहरीले वायु प्रदूषण से मुक्ति कब!

When will we be free from the toxic air pollution that is taking lives prematurely?

दीपक कुमार त्यागी

देश में ठंड के मौसम की शुरुआत के साथ ही बहुत सारी जगहों पर पिछले कुछ वर्षों की तरह ही इस वर्ष भी जहरीला दमघोंटू वायु प्रदूषण लोगों के अनमोल जीवन को लीलने में व्यस्त है। ठंड आते ही लोगों के सामने जहरीले वायु प्रदूषण से जीवन को सुरक्षित रखने की बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है। क्योंकि इस वर्ष भी जहरीले वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली-एनसीआर के पूरे क्षेत्र में आबोहवा की स्थिति बेहद खराब हो चली है। जहरीले वायु प्रदूषण के कारण इस क्षेत्र का सर्दियों में पिछले कुछ वर्षों से बुरा हाल हो जाता है। क्षेत्र के लोगों की सांसों पर एक तरह से आपातकाल लग जाता है। उसके बावजूद भी इस क्षेत्र का सरकारी अमला जहरीले वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले कारकों पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से विफल रहा है। हालांकि इस वर्ष भी धरातल पर वायु प्रदूषण के गंभीर हालात को बनाता हुआ देखकर के प्रदूषण जैसे गंभीर मसले का समाधान करने के लिए भी कार्यपालिका की जगह स्वयं न्यायपालिका को आगे आकर के मोर्चा संभालना पड़ रहा है, इस पूरे क्षेत्र के लोगों के अनमोल जीवन को सुरक्षित रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में ग्रेप – 4 की पाबंदियों को सख्ती से लागू करने का आदेश दिया है। लेकिन अब देखने वाली बात यह है कि ग्रेप – 4 की पाबंदियों को लागू करवाने वाली सभी संस्थाएं कितनी ईमानदारी से अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन करती हैं और लोगों को जल्द स्वच्छ हवा में पुनः सांस लेने का अवसर प्रदान करती हैं।

पिछले कुछ वर्षों से सर्दियों के मौसम की शुरुआत के साथ ही देश के विभिन्न शहरों में जहरीला वायु प्रदूषण अपना रंग दिखाने लगता है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दीपावली के बाद एकबार फिर से दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में जहरीले वायु प्रदूषण के धुंध की मोटी परत छा गई है। एकबार फिर से यह पूरा क्षेत्र जहरीले वायु प्रदूषण के चलते तेजी से गैस चैंबर में बदलता जा रहा है। जिसको रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने इस क्षेत्र में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) की स्टेज – 4 को सख्ती से लागू करने के आदेश दिये हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते धरातल पर हॉट स्पॉट की निगरानी अब भी नहीं हो रही है। ग्रेप का चौथा चरण लागू होने के बाद भी वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए धरातल पर किसी दूरगामी ठोस कार्ययोजना का क्रियान्वयन होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। जहरीले वायु प्रदूषण के कारणों को जानने के बाद भी सिस्टम उनका स्थाई निदान नहीं कर रहा है। अब भी लोग बेखौफ होकर के ग्रेप – 4 की पाबंदियों को ठेंगा दिखाकर प्रतिबंधित काम निरंतर कर रहे हैं, बहुत सारे लोगों ने अभी भी निर्माण कार्य व तोड़फोड़ का कार्य जारी करवा रखा है। लोग अब भी निर्माण कार्य के लिए खुले में ही निर्माण सामग्री डाल रहे हैं। सरकारी तंत्र की लापरवाही से टूटी हुई सड़कों पर धूल का गुब्बार उठाते हुए वाहन चलने के लिए मजबूर हैं। कुछ फैक्ट्रियों की चिमनी से अब भी बेख़ौफ़ होकर के धूंआ निकल रहा है। अब भी लोग बेखौफ होकर के डीजल जनरेटर चला रहे हैं। ढाबे, रेस्टोरेंट, फार्महाउस व बैंकेट हॉल आदि में खुलेआम तंदूर चला रहे हैं। कुछ लोग कूड़े का उचित निस्तारण ना करके सड़क किनारे खुलेआम कूड़ा जला रहे हैं। सड़कों पर वाहन अपनी मियाद समाप्त होने का बाद भी चल रहे हैं। कुछ प्रतिबंधित वाहन बैखौफ होकर चल रहे हैं। जिस लापरवाही पूर्ण स्थिति के चलते हुए एकबार फिर से वायु प्रदूषण से दिल्ली-एनसीआर में स्थिति बेहद गंभीर बनती जा रही है। हालांकि इस पूरे क्षेत्र में जल, थल व नभ तरह-तरह के प्रदूषण से जूझ रहे हैं। लोगों के पास पीने के लिए ना तो स्वच्छ पेयजल है, ना ही सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु है, ना ही लोगों के पास खाने के लिए स्वच्छ गुणवत्ता पूर्ण शुद्ध आहार उपलब्ध है, वहीं इस क्षेत्र में रही-सही कसर समय-समय पर कानफोड़ू ध्वनि प्रदूषण पूरी कर देता है।

लेकिन चिंता जनक बात यह है कि पिछले वर्ष भी जहरीले वायु प्रदूषण के चलते नवंबर माह के शुरुआती दिनों में ही यह पूरा क्षेत्र भयावह रूप से जहरीले गैसों के चैंबर में तब्दील हो गया था, फिर भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। इस क्षेत्र में जहरीले वायु के प्रदूषण के नियंत्रण के नाम पर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश आदि राज्य एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा कर के अपने कर्तव्यों की कागज़ी खानापूर्ति हर वर्ष बखूबी से कर लेते हैं। पिछले वर्ष भी वायु प्रदूषण के इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया और न्यायालय की सख्त फटकार के बाद राज्य सरकारों का सिस्टम फाइलों से निकल करके वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए धरातल पर कुछ सक्रिय हुआ था, लेकिन इस वर्ष लोगों को उम्मीद थी कि पिछले वर्ष की न्यायालय की जबरदस्त फटकार का धरातल पर कुछ तो असर हुआ होगा, इस क्षेत्र के लोगों के अनमोल जीवन को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए कुछ तो ठोस कार्य धरातल पर बीते एक वर्ष में संपन्न हुए होंगे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस वर्ष भी जहरीले वायु प्रदूषण की स्थिति वहीं बनी हुई है, जहरीले वायु प्रदूषण के चलते इस क्षेत्र के लोगों की सांसों पर भयावह आपातकाल लगा हुआ है। अस्पतालों में वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव से जनित रोगों से पीड़ित रोगियों की बाढ़ आई हुई है, लोग असमय काल का ग्रास बन रहे हैं और देश व राज्यों के कर्ताधर्ता इसके लिए जिम्मेदार सिस्टम को समय रहते सख्ती से दिशा-निर्देश देने की जगह उसको भगवान भरोसे छोड़कर के चुनावों में विजय हासिल करने के प्रयासों में मस्त हैं।

मेरा अपनी इन चंद पंक्तियों के माध्यम से सरकार व सिस्टम से विनम्र निवेदन है कि –

“जीवन के लिए स्वच्छ हवा पाना हर जीव-जंतु व नागरिक का है अधिकार, निरोगी जीवन जीने के लिए कम से कम स्वच्छ सांसें तो दे दो सरकार।।”

इस वर्ष भी पूरे क्षेत्र में दिपावली पर सर्वोच्च न्यायालय के पटाखे बेचने व छोड़ने पर रोक होने के आदेश के बावजूद भी सिस्टम के मूकदर्शक बने रहने के चलते ही जमकर के पटाखे बेचने व छोड़ने का काम हुआ। लोगों की नादानी ने अपने आप ही जहरीले वायु प्रदूषण को न्योता देने का कार्य बखूबी किया था। जिसके चलते दीपावली के बाद एकबार फिर से दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत तेजी से खराब हो गया है। वायु प्रदूषण को दर्शाने वाला एक्यूआई का इंडेक्स 500-600 तक पहुंचकर के दिल्ली-एनसीआर में लोगों के जीवन को तरह-तरह के रोगों से ग्रस्त करके लीलने का कार्य कर रहा है। अगर समय रहते इस वर्ष भी सर्वोच्च न्यायालय सख्ती ना दिखाएं तो पिछले वर्ष की तरह ही इस वर्ष भी एक्यूआई अपने ही पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त करने में व्यस्त नज़र आता। हालांकि इस वर्ष तो इस क्षेत्र की जनता पराली जलाने के मौसम से पहले व दीपावली के पहले से ही वायु प्रदूषण से बार-बार परेशान हो रही थी, फिर भी हमारे सिस्टम ने सर्दियों में गंभीर वायु प्रदूषण ना हो उसके लिए कोई ठोस तैयारी धरातल पर नहीं की है, जिसका परिणाम अब एकबार फिर से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र गैस चैंबर बनने के रूप में सबके सामने है।

आज विचारणीय तथ्य यह है कि पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते हुए वायु प्रदूषण ने दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्र को बार-बार गैस चैंबर बनाकर के रख दिया है, जो स्थिति लोगों व जीव-जंतुओं आदि सभी के जीवन के लिए बेहद घातक है। अब तो वायु प्रदूषण लोगों का अनमोल जीवन लीलने लग गया है। इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण की इस भयावह स्थिति पर चिकित्सक कहते हैं कि – दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के चलते अब बेहद गंभीर प्रकृति की स्वास्थ्य समस्याओं का जबरदस्त जोखिम बना हुआ है। वायु प्रदूषण के चलते अब बच्चे, नौजवान, बुजुर्गों में तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्याएं स्पष्ट नज़र आने लग गयी हैं। लोगों में सिरदर्द, चिंता, चिड़चिड़ापन, सांस संबंधी समस्याएं तेजी से काफी बढ़ गई हैं। लोगों की आंखों में तेज जलन, आंखों से पानी बहना, सांस लेने की दिक्कत व सांस फूलने की दिक्कत आदि की समस्याएं आम होती जा रही हैं। अगर वायु प्रदूषण की यह स्थिति जल्द नहीं सुधरी तो सांसों पर लगा यह आपातकाल आने वाले दिनों में लोगों के लिए बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है, लोगों को गंभीर प्रकृति के वायु प्रदूषण की वजह से तरह-तरह की स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड़ सकता है, अस्थमा, काला दमा, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, हृदय रोग, लोगों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है, लोगों में बेचैनी की समस्या बढ़ सकती है, लोगों को गंभीर तंत्रिका तंत्र की समस्याओं से जूझना पड़ सकता हैं। जिस तरह से लोगों के बीच सांस संबंधित रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, फेफड़ों का कैंसर तेजी से बढ़ता जा रहा है, तरह-तरह के गंभीर रोग लोगों के बीच तेजी से पैर पसार रहे हैं, उस स्थिति के लिए कहीं ना कहीं यह वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार है।

लेकिन अफसोस हम और हमारा सिस्टम अब भी तमाशबीन बनकर के केवल तमाशा देख रहे हैं‌, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कारगर रणनीति बनाकर के उसको धरातल पर अमलीजामा पहनाने में ना नुकर कर रहे है। चिंताजनक बात यह है कि जहरीले वायु प्रदूषण के इस तरह के हाल पर शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा संकलित किये गये आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के लोग जिस खराब गुणवत्ता वाली वायु में सांस लेते हैं, उसके चलते इन लोगों का जीवन 11.9 वर्ष तक कम हो सकता है और अगर वायु प्रदूषण की यह स्थिति निरंतर इस तरह ही बनी रही, तो वर्ष दर वर्ष लोगों के जीवन पर यह खतरा बढ़ता ही जा रहा है। वहीं दिल्ली एम्स ने जानलेवा रसायनों से परिपूर्ण जहरीली हवा में सांस लेने के शरीर पर दुष्प्रभाव को पहली बार अपने एक लाइव डेमो में दिखाया है, चार अलग-अलग तरह की सांस की नली वाले इस डेमो में पीएम 10, पीएम 2.5, पीएम 1 और पीएम 1.5 आकार वाले अति सूक्ष्म प्रदूषकों के शरीर पर पड़ने वाले घातक परिणाम को साफ तौर पर देखा जा सकता है। वैसे भी आकंड़ों की मानें तो अकेले वर्ष 2021 में ही इस जहरीले वायु प्रदूषण ने भारत में 21 लाख लोगों के अनमोल जीवन को लीलने का कार्य किया है, क्योंकि पीएम 2.5 के कण रक्त प्रवाह के माध्यम से हमारे शरीर में घुसपैठ करके विभिन्न अंगों को प्रवाहित करते हैं और अस्थमा, हृदय रोग, तंत्रिका संबंधित रोग व स्ट्रोक आदि गंभीर बीमारियों की समस्या उत्पन्न करते हैं।

हालांकि वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर श्रेणी की होने पर सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद अब दिल्ली के नेताओं को चुनावी जुमलेबाजी से कुछ फुर्सत मिली है, वहीं दिल्ली सरकार भी कुंभकर्णी नींद से शायद जागी है, पर्यावरण मंत्री गोपाल राय आपात बैठक बुला रहे हैं, प्रदूषण कम करने के लिए केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र सिंह को पत्र भेजकर के लोगों को राहत दिलवाने के लिए पीएम से हस्तक्षेप करने का मांग करते हुए केंद्र सरकार से कृत्रिम बारिश करवाने की इजाजत मांग रहे हैं। लेकिन बेहद अफसोस की बात यह है कि जहरीले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए हर वर्ष बातें तो बहुत-बहुत बड़ी हुई हैं, लेकिन धरातल पर काम बहुत कम हुए हैं। इस बेहद ज्वलंत मुद्दे पर राजनेताओं में आरोप-प्रत्यारोप की नकारात्मक राजनीति जमकर के हुई है। इस मुद्दे पर भी राजनेताओं ने सिवाय जुबानी जंग, आरोप-प्रत्यारोप लगाने और अपनी जिम्मेदारी को दूसरे राज्य पर थोपने के अलावा, सिस्टम से दूरगामी रणनीति बनवा कर के कोई भी ठोस प्रभावी स्थाई कदम धरातल पर उठाने का कार्य नहीं किया है। जबकि पिछले कुछ वर्षों से निरंतर सर्वोच्च न्यायालय की नज़र वायु प्रदूषण के ज्वलंत मुद्दे पर बनी हुई है, उसके बावजूद भी सिस्टम ने सर्वोच्च न्यायालय की आंखों में सिवाय धूल झोंकने के अलावा धरातल पर कोई ठोस कारगर दूरगामी प्रयास नहीं किया है। वायु प्रदूषण पर सिस्टम की लापरवाही का आलम यह है कि दिल्ली के कर्ताधर्ता पड़ोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश के किसानों के द्वारा पराली जलाने को जिम्मेदार ठहरा कर के अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेते हैं। वायु प्रदूषण से परेशान राज्य बड़ी ही चतुराई से अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कर एक-दूसरे के माथे जिम्मेदारी मड़ रहे हैं। जिस नीयत के चलते ही इस पूरे क्षेत्र में जहरीले वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस दूरगामी रणनीति आज तक भी धरातल पर नहीं बन पाई है। हालात देखकर के लगता है कि देश में सरकार व सिस्टम में बैठे ताकतवर लोगों को आम जनमानस के स्वास्थ्य की जरा भी चिंता नहीं है, जिसके चलते ही जनता जल, थल व नभ के तरह-तरह के जहरीले प्रदूषणों को झेलते हुए जीवन जीने के लिए मजबूर है। इसलिए सरकार व सिस्टम में बैठे लोगों के साथ-साथ हम लोग भी अपनी जिम्मेदारियों को समय रहते समझें और देश को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए धरातल पर मिलकर के कार्य करें।