चुनाव परिणाम : सत्ता पक्ष को फिर मिला जनादेश

Election results: The ruling party again got the mandate

सुरेश हिंदुस्तानी

देश के दो राज्यों के साथ कुछ राज्यों के उपचुनाव के परिणाम ने सत्ता पक्ष के प्रति अपना जनादेश दिया है। हर चुनाव में सत्ता के प्रति जनता में किसी न किसी बात पर आक्रोश रहता है, लेकिन महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव में ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया। जनता ने फिर से उन्हीं सरकारों को फिर से सत्ता संभालने की जिम्मेदारी दी है, जो सत्ता में थी। खास बात यह है कि महाराष्ट्र और झारखण्ड में सत्ता धारी गठबंधन को पहले से ज्यादा सीटें मिली हैं। यह जनादेश न तो किसी के उछलने का मार्ग तैयार करता है और न ही किसी को नकारने की स्थिति पैदा करता है। जहां तक खुशियाँ मनाने की बात है तो महाराष्ट्र में भाजपा नीत गठबंधन जीत की खुशी मना रहा है तो झारखण्ड में इंडी गठबंधन के गले में विजयी माला पहनाई गई है। वहीं उपचुनाव में सबको ख़ुशी और सबक दोनों ही दिए हैं।

महाराष्ट्र और झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद अपने हिसाब से राजनीतिक विश्लेषण किए जा रहे हैं। राजनीतिक दलों के लिए इन चुनावों में प्रादेशिक रूप से जय और पराजय दोनों ही सन्देश प्रवाहित हो रहे हैं। किसी के लिए ख़ुशी तो किसी के लिए गम की स्थिति पैदा करने वाले परिणाम ने यह तो साबित कर दिया है कि देश में किसी एक राजनीतिक दल का न तो व्यापक प्रभाव है और न ही कम सीट प्राप्त करने वाले को कमतर आँका जा सकता है। इस चुनाव की सबसे ख़ास बात यह मानी जा सकती है कि कोई भी पार्टी अकेले दम पर बहुमत का आंकड़ा प्राप्त नहीं कर सकी, जिससे यह सन्देश निकल रहा है कि अब भविष्य की राजनीति की दिशा और दशा गठबंधन के सहारे ही तय होगी। वर्तमान में राजनीति दो विचार धाराओं के बीच है, जिसमें एक तरफ भारतीय जनता पार्टी के साथ समन्वय बनाकर चलने वाले राजनीतिक दलों का विचार है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के विचारों से तालमेल रखने वाले दलों की बानगी है। इतना ही नहीं इन चुनावों एक दूसरे के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया गया, वह राजनीतिक हिसाब से भले ही जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन आम नागरिकों के समक्ष भ्रम जैसी स्थिति को ही प्रादुर्भित करती हैं।

महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम भाजपा के लिए निश्चित ही अच्छे कहे जा सकते हैं, लेकिन झारखण्ड में सरकार बनाने का सपना लेकर मैदान में उतरी भाजपा को फिर से तैयारी करनी होगी। झारखण्ड के परिणाम को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति उपजी सहानुभूति को आधार बताया जा रहा है। पिछले दिनों झारखण्ड में हुए भ्रष्टाचार के आरोप में हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से अलग होना पड़ा था। जिसके बाद हेमंत सोरेन ने चुनाव में इसी को अपना राजनीतिक हथियार बनाया था और चुनाव में अपने पक्ष में वातावरण बनाया। ऐसा लगता है कि झारखंड में भाजपा अपनी ताकत और कमजोरी को भाँपने में विफल हो गई। झारखण्ड में भाजपा इतनी अप्रभावी नहीं कही जा सकती, जैसा उसका इस चुनाव में प्रदर्शन रहा है। पिछले विधानसभा के चुनाव में भाजपा के प्रादेशिक नेताओं की तनातनी जगजाहिर थी, जिसका परिणाम भाजपा के लिए ठीक नहीं था। हालाँकि इस चुनाव में भाजपा ने पिछली गलती को सुधारने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह सत्ता के सीढ़ी का निर्माण कर पाने में असफल रही। अब झारखण्ड में फिर से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की सरकार बनेगी और मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन फिर मुख्यमंत्री होंगे, यह भी तय लगता है।

परिणाम के बाद अब महाराष्ट्र के चुनावों के बारे में जो राजनीतिक निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं, उसके अनुसार यही कहा जा रहा है कि झारखंड और महाराष्ट्र में राजनीतिक हवा अलग अलग दिशा में बह रही थी। जिसने हवा का रुख भांप लिया, वह हवा के साथ ही चला और सत्ता प्राप्त करने में सफलता हासिल की। महाराष्ट्र में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विभाजन के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस के साथ रहने वाले शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को जनता ने नकार कर शायद यही सन्देश दिया है कि यह सत्ता के लिए किया गया बेमेल गठबंधन ही था। महाराष्ट्र में ऐसे जनादेश का क्या अर्थ होना चाहिए कि एक गठबंधन जीत गया तो दूसरा गठबंधन हार गया। इसी प्रकार झारखण्ड में भी जनादेश की भी समीक्षा की जाने लगी है।

पिछले पांच साल में महाराष्ट्र में जिस प्रकार की राजनीतिक उठापटक हुई थी, उसके केंद्र में कौन था, यह ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता, लेकिन इंडी गठबंधन की मानें तो उसने इसका सारा ठीकरा भाजपा के मत्थे मढ़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। इस राजनीतिक धमा चौकड़ी में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिव सेना ने अपने विभाजन के रूप में चुकाई। जो धड़े अलग हुए वे भाजपा के साथ जाकर खड़े हो गए और महाराष्ट्र में सरकार बनाई। कहा जा रहा है कि जनादेश ने भाजपा के साथ वाली शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को असली होने का प्रणाम पत्र दे दिया है। अब महाराष्ट्र में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन की ही सरकार बनेगी, यह तय है, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा, इसके कयास भी लगने लगे हैं, क्योंकि महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर भाजपा ने शानदार वापसी की है। ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि एकनाथ शिंदे ही फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे।

इसके पीछे राजनीतिक कारण यह भी माना जा रहा है कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सहयोगी दलों की जरुरत है, इसलिए भाजपा अपने सहयोगी दलों को अब नाराज नहीं कर सकती। दूसरी बात यह भी है भाजपा ने एकनाथ शिंदे को जिस प्रकार से चौकाने वाले अंदाज में मुख्यमंत्री बनाया था, वह हर किसी के लिए आश्चर्य ही था। अब यह भी हो सकता है कि भाजपा ने जिस प्रकार से पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री बनाया, वही प्रयोग शिंदे के साथ भी किया जा सकता है।