डॉ. वेदप्रताप वैदिक
इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के सदस्य 57 देश हैं। आश्चर्य है कि अभी तक सिर्फ 16 देशों ने ही अपनी प्रतिक्रिया दी है। दिल्ली में हुए पैगंबर-कांड पर शेष मुस्लिम राष्ट्र अभी तक क्या विचार कर रहे हैं, कुछ पता नहीं। शायद वे यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर भाजपा प्रवक्ता ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में वास्तव में कहा क्या है? जो कुछ टीवी चैनल पर कहा गया है और बाद में टवीट किया गया है, उसे पूरी तरह से हटा लिया गया है। इसीलिए अब उसके विरुद्ध जो कुछ भी कहा जाएगा, वह किसी अन्य स्त्रोत से जानकर कहा जाएगा। यह भारत-विरोधी अभियान अब वैसे ही चलेगा, जैसे कि अफवाहों के दम पर कई अभियान चला करते है। भारत सरकार के प्रवक्ता और हमारे राजदूतों ने सभी देशों को आगाह कर दिया है कि भारत सरकार का इस तरह के निरंकुश बयानों से कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन दुनिया के सभी इस्लामी देशों में भारत को बदनाम करने का अभियान अभी जोरों से चलता रहेगा। भारत सरकार इसकी काट करती रहेगी लेकिन उसको इससे डरने की कोई जरुरत नहीं है। यदि कोई देश भारत से संबंध तोड़ता है तो उससे भारत का नुकसान जरुर होगा लेकिन उस देश का नुकसान भारत से कहीं ज्यादा होगा। अंतरराष्ट्रीय संबंध कभी भी एकतरफा नहीं होते। जहां तक मोदी सरकार का सवाल है, उसने इस्लामी राष्ट्रों के साथ अपने संबंध काफी घनिष्ट बनाए हैं। यदि मोदी खुद भी एक बयान जारी करके इस्लामी राष्ट्रों की समझ को ठीक कर दें तो इसमें कोई बुराई नहीं है। जैसे उन राष्ट्रों ने भारत का विरोध करके एक औपचारिकता निभाई है, वैसे ही मोदी भी कूटनीतिक औपचारिकता निभा सकते हैं। इस मामले को लेकर कानपुर में जरुर तोड़-फोड़ हुई है लेकिन देश के हिंदुओं और मुसलमानों ने काफी संयम का परिचय दिया है। शिवलिंग और पैगंबर के बारे में कही गई आपत्तिजनक बातों को उन्होंने अपने जी से नहीं लगाया और वे सारा तमाशा भौंचक होकर देख रहे हैं। कुछ विपक्षी नेताओं के भड़काने का कोई खास असर दिखाई नहीं पड़ रहा है। एक सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि देश के हिंदु और मुसलमान किसी भी अन्य धर्म के लोगों को ठेस पहुंचाने के विरुद्ध हैं। जो 10-15 प्रतिशत लोग ऐसा नहीं मानते, उनका कहना है कि किसी को भी अच्छा लगे या बुरा, सच तो सच है। उसे बोलने और लिखने की आजादी सबको मिलनी चाहिए। मैं भी इस बात को मानता हूं लेकिन जो बुरा लगे, वह बोलकर आप किसका भला करते हैं? आपकी अच्छी बात का भी असर तो अच्छा नहीं होगा। इसीलिए जो कुछ भी बोला जाए, वह सच तो हो लेकिन प्रिय भी हो। इसे ही सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात् कहा गया है। झूठ मत बोलो। हमेशा सच बोलो लेकिन वह कटु न हो, यह भी जरुरी है। भारत के ज्यादातर लोग इसी बात में विश्वास करते हैं। इसीलिए यहां दर्जनों देशी और विदेशी धर्म और संप्रदाय सैकड़ों वर्षों से फल-फूल रहे हैं। क्या दुनिया का कोई अन्य देश ऐसा है, जिसमें इतनी विविधता हो और उसके साथ-साथ इतनी सहिष्णुता भी हो? इस अनन्य भारतीय संस्कार का ही परिणाम है कि भारत के मुसलमान, ईसाई, यहूदी, अहमदिया और बहाई लोग अपने विदेशी स्वधर्मियों के मुकाबले अधिक उदार, अधिक भक्तिमय और अधिक मानवीय हैं।