प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता गठबंधन ( आईसीए) केअंतर्राष्ट्रीय सहकारिता सम्मेलन – 2024 का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का शुभारंभ औरस्मारक डाक टिकट भी जारी किया। भारत लगभग 128 साल बाद वैश्विक सहकारी सम्मेलन कानेतृत्व कर रहा है। यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतर्राष्ट्रीयसहकारिता वर्ष घोषित कर रखा है। भारत में सहकारिता आंदोलन को किस तरह से गति मिल रही है।
विवेक शुक्ला
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को राजधानी में अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता गठबंधन ( आईसीए) केअंतर्राष्ट्रीय सहकारिता सम्मेलन – 2024 का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का शुभारंभ और स्मारक डाक टिकट भी जारी किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मनाने का फैसला दुनिया भर के करोड़ों गरीबों व किसानों के लिए आशीर्वाद सिद्ध होगा। यह संयोग ही हैकि हजारों साल से सामुदायिक जीवन जी रहा भारत अब जाकर अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) के सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है। 19 अगस्त 1895 को आईसीए का पहला सम्मेलन लंदन में हुआ था, तब इंग्लैंड, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, इंग्लैंड, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड के साथ भारत के सहकारी प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। भारत लगभग 128 साल बाद वैश्विक सहकारी सम्मेलनका नेतृत्व कर रहा है। यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब संयुक्त राष्ट्र ने 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित कर रखा है।
बेशक, इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और सहकारिता मंत्री अमित शाह को श्रेय दिया जाना चाहिए, जिन्होंने भारत के सहकारी क्षेत्र का एक तरह से पुनरुत्थान कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सहकारिता मंत्रालय की अलग स्थापना और गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह द्वारा इस मंत्रालय को गतिशील बनाने का परिणाम अब सामने दिख भी रहा है। प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) कोसशक्त बनाने, उन्हें डिजिटल इंडिया से जोड़ने, ई-गवर्नेंस लागू करने और समितियों को आसानवित्तीय सेवाएँ प्रदान करके ग्रामीण भारत और किसानों की आर्थिक उन्नति में योगदानके जरिये समृद्ध भारत की कल्पना को साकार करने की दिशा में मोदी सरकार ने कदम आगे बढ़ाया है। यही नहीं भारतकी सहकारी समितियाँ स्थायी कृषि में भी योगदान दे रही हैं साथ ही प्राकृतिक खेतीको बढ़ावा दे रही हैं और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की खोज कर रही हैं।
मोदी जी सहकारी क्षेत्र में भारत को एक वैश्विक नेतृत्व के रूप में स्थापित करना चाहते हैं और यह भी लक्ष्य कर रहे हैं कि किसानोंकी आय दुगनी करने में सहकारिता क्षेत्र से सबसे ज्यादा योगदान लिया जाये। मोदी जी ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों का लक्ष्य रखा था, उसमें सहकारी क्षेत्र को आत्मनिर्भर एवं व्यापकबनाने का भी कार्यक्रम भी शामिल था। पिछले दिनों हीअमित शाह ने 2 लाख नए डेयरी एवं मत्स्य सहकारी समितियों के गठन की घोषणा के साथ श्वेत क्रांति 2.0 का शुभारंभकिया और यह दावा भी किया कि श्वेत क्रांति में महिलाओं की आत्मनिर्भरता एवं सशक्तिकरण के साथ-साथ कुपोषण के खिलाफ लड़ाईभी मजबूत होगी। दुग्ध उत्पादन में भारत को शीर्ष पर बनाये रखने के साथ अमित शाह इसे किसानों की आय का प्रमुख स्रोत बनाने मेंजुटे हैं। इस बीच एक बड़ी उपलब्धि यह हुई है की अब डेयरी से जुड़ीकोई भी मशीनरी विदेश से आयात करने की जरूरत नहीं पड़ रही है। इसका 100 फीसदी उत्पादन भारत में ही होने लगा है।
यही नहीं दो लाख प्राथमिक सहकारी समितियों के पंजीकृत हो जाने के बाद एक भी पंचायत ऐसी नहीं बचेगी जहां पैक्स, डेयरी या मत्स्य सहकारी समितियां नहीं होंगी। तो क्या मोदी सरकार अपने इस कार्यकाल मेंकिसानों की आय वास्तव में दोगुनी करने में सफल होगी? अफसोस कि आजादी के 70 वर्षों तक सरकार नेसहकारिता के जरिये ग्रामीण एवं कृषि विकास पर जोर नहीं डाला। अंततः प्रधानमंत्री मोदी ने एक स्वतंत्र सहकारिता मंत्रालय की स्थापना का निर्णय लिया और अपने सबसेविश्वासपात्र अमित शाह को देश का पहला सहकारिता मंत्री बनाया। अब वही सहकारिता मंत्रालय बेहतर परिणाम दिखा रहा है। इससमय देश के 29 प्रमुख क्षेत्रों में सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं, आठलाख से ज्यादा रजिस्टर्ड संस्थाएं हैं। गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़और असम जैसे राज्य में सबसे सहकारी संस्थाओं की संख्या ज्यादा है। इस समय भारतीय सहकारी क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़ा है। देश के लगभग 30 करोड़ से अधिकलोगों सहकारिता के सदस्य हैं। देश की 20 प्रतिशत से अधिक आबादीसीधे इससेलाभान्वित है। दुनिया की जिन 300 सबसे बड़ी सहकारी समितियों टर्नओवर सबसे ज्यादाहै, उनमें से 15 भारत की हैं। भारत का इफको 72वें स्थान पर, अमूल90वें स्थान पर है। 140 करोड़ के देश में रोजगार उपलब्ध कराने के साथ साथ देश कीसमृद्धि को बढ़ाने वाला और लोगों को आत्मसम्मान के साथ जीने में सक्षम बनाने वालासबसे बड़ा क्षेत्र सहकारिता का ही हो सकता है। मोदी सरकार ने पिछले तीन वर्षों में 60 से अधिक नई पहल की है। हाल ही में सहकारिता मंत्रालय ने दो लाख एमपीएसीएस, डेयरीऔर मत्स्य सहकारी समितियों का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार कर के पूरे देश में भेजाथा, जिन्हें राज्यों ने स्वीकार भी कर लिया। यह लगातार कहाजा रहा है, बाजार आधारित अर्थव्यवस्था से ग्रामीण और शहरीलोगों के बीच आर्थिक विकास असमानताएँ बढ़रही हैं। इस पर देश में समय समय पर चिंता जाहिर की जाती रही है। पर इस चिंता कोकाफी हद तक सहकारी क्षेत्र दूर कर सकता है, क्योंकिपशुधन, वानिकी और मत्स्य पालन के साथ साथ कृषि औरग्रामीण उद्योग सहकारिता से जुड़े हैं और ये ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था के आधार भीहैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण रोजगार केसबसे बड़े प्रदाताओं में भी सहकारीसंस्थाएं ही हैं। हाँ सहकारीक्षेत्र की कुछ कमज़ोरियों को दूर करना आवश्यक है। नई प्रौद्योगिकी के जरिये कामकाज में पारदर्शिता लाना और सहकारीसमितियों की बाज़ार हिस्सेदारी में बढ़ोतरी के लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था करनाबहुत आवश्यक है। 2024 के बजट में सहकारी क्षेत्र के विकास के लिए एक व्यवस्थित औरसर्वांगीण नीति की घोषणा की गयी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेज़ गति प्राप्तकरने के लिए 1.54 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। इस नीति का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था केविकास को तेज़ गति देना और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करना रखा गया है। मोदी सरकार नेसहकारी क्षेत्र के लिए कई सुधार और प्रोत्साहन की योजनाएं शुरू की है। जैसे 1 से 10 करोड़ रुपये की आय वाली सहकारीसमितियों के लिए सरचार्ज 12 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया। सहकारी समितियों के लिए एमएटी 18.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत किया गया ताकि सहकारी समितियों और कंपनियों के बीच समानता रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह आह्वान किया है कि सहकारी समितियों को वित्तपोषित करने के लिए एक वैश्विक वित्तीय सं स्थान केमॉडल की संभावना तलाशी जाये ताकि सहकारी आंदोलन को एक चक्रीय अर्थव्यवस्था सेजोड़ने और इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा मिले। मोदी ने कहाहै कि भारत के लिए सहकारिता संस्कृति औरजीवन शैली का आधार है और भारत अपने भविष्यके विकास में सहकारी समितियों की बड़ी भूमिका देखता है। मोदी और शाह की जोड़ी ने देश की सहकारी समितियोंके पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने का जोअभियान शुरू किया है, उम्मीद की जानी चाहिए कि यह ग्रामीण भारत की तक़दीर बदलने में कामयाब होगा।