गोपेन्द्र नाथ भट्ट
अपने शौर्य,पराक्रम,स्वाभिमान और त्याग के साथ ही पूरे जीवनकाल में मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं करने वाले तथा राष्ट्र समर्पण एवं स्वतंत्रता के सूरज माने जाने के लिए इतिहास में मशहूर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के मेवाड़ राजवंश के वारिसों और समर्थकों के मध्य उदयपुर के सिटी पैलेस में स्थित धूनी के दर्शन को लेकर पिछले कुछ दिनों से चल रहे विवाद का बुधवार शाम को पटाक्षेप हो गया।
इस विवाद की शुरुआत पूर्व महाराणा भगवत सिंह के बड़े पुत्र और चित्तौड़गढ़ से भाजपा के सांसद रहें महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र नाथद्वारा के भाजपा विधायक विश्वराज सिंह के, मेवाड़ की पुरानी राजधानी चित्तौड़गढ़ में हुए राजतिलक की रस्म के बाद सिटी पैलेस,उदयपुर में स्थित धूनी के दर्शन को लेकर हुआ था। यह धूनी वह स्थान है,जहां के सन्त ने चितौड़गढ़ पर बार बार होने वाले आक्रमणों के कारण जंगलों में भटकने के बाद मेवाड़ की सुरक्षित राजधानी की खोज में आए उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह को अपनी धूनी के चारों ओर महल एवं शहर बसाने की आज्ञा दी थी। मेवाड़ के महाराणाओं में राजतिलक के बाद इस धूनी और उदयपुर से करीब 20 किमी दूर एकलिंग नाथ जी के मन्दिर में दर्शन करने की परम्परा का चलन रहा है। मेवाड़ के सभी महाराणा, एकलिंग नाथ जी को मेवाड़ का अधिपति यानि राजा और स्वयं को उनका दीवान यानि सचिव मानते हैं ।
वर्तमान में पिछोला झील के किनारे स्थित उदयपुर का भव्य सिटी पैलेस पूर्व महाराणा दिवंगत भगवत सिंह के छोटे पुत्र अरविन्द सिंह मेवाड़ के आधिपत्य में हैं जबकि हाल ही स्वर्गवासी हुए महेन्द्र सिंह मेवाड़ और उनका परिवार उनकी धर्म पत्नी, विधायक विश्वराज सिंह, उनकी धर्म पत्नी राजसमंद की भाजपा सांसद महिमा कुमारी आदि वर्षों से सिटी पैलेस की तलहटी में स्थित समौर बाग में ही रहते आए है। देश के आजाद होने से पहले मेवाड़ के आखिरी महाराणा रहें महाराणा भूपाल सिंह द्वारा भीलवाड़ा के एक ठिकाने से गोद लिए गए पूर्व महाराणा भगवत सिंह ने 1984 में अपनी मृत्यु से पहले परम्परा के अनुसार अपने बड़े बेटे महेन्द्र सिंह को अपनी मृत्यु के बाद महाराणा बनाने की घोषणा करने के स्थान पर महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन नाम से एक ट्रस्ट गठित कर दिया और इसमें मध्य प्रदेश के सीतामऊ राजघराने में ब्याही गई अपनी पुत्री और छोटे पुत्र अरविन्द सिंह मेवाड़ और कुछ अन्य व्यक्तियों को इस ट्रस्ट में शामिल किया गया लेकिन राजघरानों की परम्परा अनुसार अपने बड़े पुत्र महेन्द्र सिंह मेवाड़ को इसका हिस्सा नहीं बनाया गया। इसका कारण यह बताया जाता है कि महेन्द्र सिंह द्वारा 1983 में अपने पिता महाराणा भगवत सिंह के खिलाफ राजघराने की संपतियों को बेचने,खुर्दबुद करने तथा कुछ अन्य आरोपों के साथ न्यायालय में मुकदमे दायर किए गए थे। इस कारण उन्हें इस ट्रस्ट में शामिल नहीं किया गया और तबसे अब तक अरविंद सिंह मेवाड़ और उनका परिवार ही इस ट्रस्ट और राजघराने की संपतियों की देखरेख कर रहा है। हालांकि महाराणा भगवत सिंह के 1984 में निधन के बाद महेन्द्र सिंह मेवाड़ की भी परम्परा अनुसार मेवाड़ के राव उमरावों और छोटे बड़े जागीरदारों ने मेवाड़ के 76 वें महाराणा के रूप में ताज पोशी की रस्म अदायगी की थी और उन्हें एकलिंग नाथ का दीवान भी घोषित किया था। बताते है तब भी दोनों भाइयों के परिवारों के मध्य भारी द्वंद हुआ था लेकिन ट्रस्ट के एक्जीक्यूटर होने तथा अदालत से यथा स्थिति बनाए रखने के निर्णय के कारण ट्रस्ट के अधीन आने वाले सिटी पैलेस और राजघराने की अन्य संपतियों की देखरेख अरविन्द सिंह मेवाड़ और उनका परिवार ही देख रहा है फिर भी विभिन्न अदालतों में चल रहे मुकदमों की वजह से दोनों पक्षों के मध्य संपतियों को लेकर वर्षों से विवाद और तनातनी की स्थिति बनी हुई हैं। महेन्द्र सिंह मेवाड़ और उनके परिवार के सदस्य राष्ट्रपति और अन्य वीवीआईपी को भी उदयपुर भ्रमण के दौरान सिटी पैलेस और कथित अन्य संबद्ध स्थानों का भ्रमण नहीं करने बाबत पत्र लिखते रहे है लेकिन इन विशिष्ठ लोगों द्वारा विश्व प्रसिद्ध उदयपुर की धरोहरों के अवलोकन का क्रम अभी तक रुका नहीं है।
पिछले 25 नवम्बर को मेवाड़ की प्राचीन राजधानी चित्तौड़गढ़ में हुए विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक की रस्म पूरी होने के बाद परंपरा का निर्वहन करने के लिए विश्वराज सिंह का अपने समर्थकों के साथ धूनी के दर्शन के लिए उदयपुर सिटी पैलेस के जगदीश मन्दिर की ओर वाले रास्ते से राजमहल के मुख्य दरवाजा के निकट पहुंचने का बाद वहां राजमहल के दरवाजे बंद मिलने से उत्पन्न हालातों के लिए दोनों पक्षों ने एक दूसरे और जिला प्रशासन को दोषी बताया । दूसरी ओर सिटी पैलेस प्रबंधन की ओर कहा गया कि पूरे प्रदेश के अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करवा कर किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति को सिटी पैलेस में प्रवेश पर निषेध की सूचना प्रकाशित कराने के बावजूद सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए दवाब बनाना कहां तक सही कहा जा सकता हैं ? उस दिन विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने समर्थकों के साथ धूनी के दर्शन के लिए उदयपुर के सिटी पैलेस के मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ने लगे । जिला प्रशासन और पुलिस द्वारा संभावित मुठभेड़ को रोकने के लिए बैरिकेटिंग और भारी पुलिस जाब्ता लगाया गया था । बावजूद सजीवभीड़ ने उन बैरिकेटिंग को हटा कर सिटी पेलेस की ओर कूच किया गया तथा कई लोग सिटी पेलेस के बंद दरवाजों को खोलने तथा राज महल की दीवारों पर चढ़ने का प्रयास भी करने लगे। इस दौरान पेलेस के अन्दर और बाहर मौजूद भीड़ की ओर से पत्थरबाजी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई जिसमें कुछ लोग घायल भी हो गए। जिला प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने स्वयं जिला कलेक्टर और एसपी आदि ने दोनों पक्षों से बात कर समझाइश का काफी प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी और देर रात तक विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने समर्थकों के साथ सिटी पेलेस के गेट के बाहर डटे रहें। इस मध्य जिला प्रशासन ने विवादित धूनी वाले स्थान को अधिग्रहीत कर सरकारी नियंत्रण में लेने का नोटिस भी राजमहल के गेट पर चस्पा कर दिया लेकिन धूनी दर्शन नहीं हो सका।आखिर बिना धूनी दर्शन किए देर रात विश्वराज सिंह और उनके समर्थक लौट गए।
दूसरे दिन दोनों पक्षों विश्वराज सिंह ने स्वयं और अरविन्द सिंह मेवाड़ के अस्वस्थ होने के कारण उनके पुत्र लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अपने-अपने पक्ष मीडिया के सामने रखें और जिला प्रशासन को पहली रात हुई दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति के लिए जिम्मेदार बताया लेकिन इसके बावजूद जिला प्रशासन स्थिति को सामान्य करने की मशक्कत करता रहा। राज्य सरकार ने भी राज्य के प्रमुख गृह सचिव और वरिष्ठ अधिकारियों को जयपुर से उदयपुर भेजा।
आखिर काफी प्रयासों के बाद बुधवार को गतिरोध टूटा और विश्वराज सिंह मेवाड़ ने न केवल मेवाड़ के अधिष्ठाता एकलिंग नाथ जी के मन्दिर जाकर भगवान के दर्शन किए वरन शोक निवारण के अन्य दस्तूर भी पूरे किए । शाम होते होते विश्वराज सिंह मेवाड़ ने अपने पांच चुनिंदा प्रतिनिधियों और जिला कलेक्टर, एसपी, आईजी आदि के साथ भारी पुलिस बंदोबस्त के मध्य सिटी पेलेस, उदयपुर में प्रवेश कर धूनी के दर्शन की परम्परा को भी पूरा किया। बताते है कि विश्वराज सिंह मेवाड़ ने करीब चालीस वर्षों के बाद सिटी पैलेस के उस हिस्से में प्रवेश किया।
धूनी के दर्शन कर लौटने के बाद उनके समर्थकों ने विश्वराज सिंह मेवाड़ का एक खुले वाहन में विजय जुलूस निकाला और जोश भरे बारों के साथ काफी पटाखे भी छोड़े गए। अपने निवास समौर बाग पहुंचने पर भी विश्वराज सिंह का उनके परिवार जनों ने तिलक लगा कर परम्परागत ढंग से अगवानी की ।
इस सारे घटनाक्रम में उदयपुर और मेवाड़ के वाशिंदों को सदियों बाद मेवाड़ की पुरानी राजधानी चित्तौड़गढ़ में मेवाड़ राजघराने के भव्य राजतिलक की शानदार झलक देखने को भी मिली। बताते है कि मेवाड़ राजपरिवार के इतिहास में 493 वर्षों बाद चितौड़गढ़ में ऐसा कोई भव्य राजनीतिक समारोह आयोजित हुआ । इसके साथ ही चितौड़गढ़ के इतिहास में भी सोमवार को एक नया अध्याय जुड़ गया। नाथद्वारा विधायक और महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतह प्रकाश महल के प्रांगण में राजतिलक का यह भव्य कार्यकम लंबे समय तक याद रखा जाएगा । परंपरा के अनुसार, सलूम्बर के रावत देवव्रत सिंह ने अपनी तलवार से अंगूठे को चीरा लगाकर रक्त से विश्वराज सिंह मेवाड़ के माथे पर राजतिलक किया गया। महाराणा बनने के बाद विश्वराज सिंह, मेवाड़ के 77वें दीवान भी घोषित हुए। मंगलाचार गायनों के बाद उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई।
हालाँकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 1947 में देश के आजाद होने और उसके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा राज्यों के एकीकरण तथा 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी द्वारा देश के राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स और विशेषाधिकार समाप्त करने के उपरान्त एवं आजादी के 75 वर्षों के बाद भी देश में राजतिलक आदि रस्में किसी प्रकार से सामयिक और प्रासंगिक नहीं कही जा सकती लेकिन आम लोगों की अभी भी अपने-अपने राज परिवारों के प्रति सम्मान, श्रद्धा और परंपरागत रस्मों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। कुछ लोग इस प्रकार के महिमा मंडन समारोह के आयोजन को उदयपुर राजघराने से सम्बद्ध दो रॉयल सदस्यों के केन्द्र एवं प्रदेश के सत्ताधारी दल के विधायक और सांसद होने से भी जोड़ कर देख रहें हैं तथा इसे एक सोची समझी रणनीति के तहत चला गया सुनियोजित कदम भी बता रहे है। वैसे स्वयं अरविन्द सिंह मेवाड़ के पुत्र लक्ष्यराज सिंह ने भी मीडिया के समक्ष बिना किसी का नाम लिए पदों पर बैठे लोग शब्द का प्रयोग करते हुए दवाब बनाने का जिक्र किया है।
दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर में महाराणा प्रताप के वंशज और मेवाड़ राजघराने के इन दो राज परिवारों का कोर्ट से हट कर सड़कों पर आया यह ताजा विवाद देश भर में चर्चा का विषय बन गया है तथा इसका विश्व प्रसिद्ध उदयपुर के नाम और पर्यटन पर भी असर हुआ है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का वाकई यही पटाक्षेप हो गया है अथवा आगे भी बहुत कुछ होना बाकी है?