अणदाराम बिश्नोई
भारत में बेरोजगारी के सबसे बड़े कारणों में प्रमुख कारण कार्य क्षेत्र के मुताबिक युवाओं में स्किल्स का भी नहीं होना है। साफ है कि कौशल को बढ़ाने के लिए खुद युवाओं को आगे आना होगा। क्योंकि इसका कोई टॉनिक नहीं है, जिसकी खुराक लेने पर कार्य कुशलता बढ़ जाए। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद युवाओं को लगता है कि कॉलेज के बाद सीधे हाथ में जॉब होगी। ऐसे भ्रम में कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा हर दूसरा स्टूडेंट रहता है
आंखें तब खुलती है, जब कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद बेरोजगारों की भीड़ में वो स्वत: शामिल हो जाते है। क्योंकि बिना स्किल्स के कॉर्पोरेट जगत में कोई इंटरव्यू तक के लिए नहीं बुलाता है, जॉब ऑफर करना तो बहुत दूर की बात है।
इंडियन एजुकेशन सिस्टम की सबसे बड़ी कमी- सिर्फ पुरानी प्रणाली से खिसा-पीटा पढ़ाया जाता है। प्रेक्टिकल पर फोकस बिल्कुल भी नहीं या फिर ना के बराबर होता है। और जिस तरीके से अभ्यास कराया जाता है, उसमें स्टूडेंट्स की दिलचस्पी भी उतनी नहीं होती। नतीजन, कोर्स का अध्ययन के मायनें सिर्फ कागजी डिग्री लेने के तक ही सीमित रह जाते है
बेरोजगारों की भीड़ को कम करने के लिए भारत सरकार ने 2015 में कौशल विकास योजना शुरू की, जिसका असर भी युवाओं के जीवन में कुछ खास नहीं दिख रहा है। अगर असर होता तो प्लेसमेंट स्कोर 54 फीसदी की जगह कुछ और होता. ये आंकड़ा खुद कौशल विकास योजना के पॉर्टल का है।
एक तरफ जहां युवा बिना स्किल्स के जॉब पाने के लिए मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहे है, तो दूसरी तरफ बेरोजगारों की भीड़ युवाओं में कंपटीशन का खौफ पैदा कर रही है। हालांकि ये कहना ठीक नहीं होगा कि प्रतिस्पर्धा नहीं है। क्योंकि देशभर में हर साल निजी और सरकारी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में एक करोड़ से ज्यादा युवा ग्रेजुएट होकर रोजगार की पाने वालों की भीड़ शामिल हो जाते है। वहीं रोजगार कार्यालय में हर साल 4 करोड़ युवा रजिस्ट्रेशन करवाते है।
इन दोनों आंकड़ों पर गौर करे तो दो पहलू सामने आते है. पहला- भारत में शिक्षा का प्रसार हो रहा है। तो वहीं निराशा इस बात की है कि पढ़े-लिखे युवाओं को आसानी से जॉब नहीं मिल पा रही है। कई सालों तक सरकारी नौकरी की तलाश में समय व्यतीत करते है।
देश की अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली प्रतिष्ठित निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के ताजा आंकड़ें चौंकाने वाले है। देश में 2022 के अप्रैल महीने में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.83 फीसदी हो गई है, जो मार्च में 7.60 फीसदी थी। हालांकि ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर घटी है तो वहीं शहरी क्षेत्र में लगातार तीसरे महीने इजाफा हुआ है, जो चिंताजनक है।
भले ही युवा सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है, लेकिन प्लान बी के तौर पर उनके पास स्किल्स का होना आज के दौर बहुत महत्वपूर्ण है। ताकि सरकारी नौकरी में बात नहीं बैठने पर अपने पैशन के मुताबिक स्किल्स होने पर करियर को संवार सके। सरकारी नौकरी की भीड़ ये भी दर्शाती है कि ज्यादातर युवा भेड़ चाल में उलझे हुए है. इसकी बजाय उन्हें अपने पैशन को खोजकर स्किल्स पॉलिशिंग पर ध्यान देना चाहिए. तो वहीं नीति निर्माताओँ को सुधार करने की दरकरार है, ताकि युवा अपनी स्किल्स गैप को भरकर करियर में चार चांद लगा सके.
कंटेंट क्रिएटर और युवा पत्रकार