उस्ताद जाकिर हुसैन- अब किसे कहेंगे ‘वाह उस्ताद’

Ustad Zakir Hussain- Now who will we call 'wah ustad'

आप जानते हैं कि उस्ताद जाकिर हुसैन नहीं रहे। मैंने उनके कई यादगार कार्यक्रमों को राजधानी में देखा। एक कार्यक्रम में उनकी पंडित शिव कुमार शर्मा के साथ जुगल बंदी को भी देखा। यह बात 2012 की है।

विवेक शुक्ला

उस्ताद जाकिर हुसैन का एक चित्र महान कथक नृतक बिरजू महाराज के राजधानी के शाहजहां रोड के फ्लैट में ड्राइंग रूम में लगा हुआ था। उसमें उस्ताद जाकिर हुसैन और बिरजू महाराज खिलखिला रहे हैं। उसे देखकर बिरजू महाराज कहते थे, उस्ताद जाकिर हुसैन से बेहतर तबला वादक अब कोई पैदा नहीं होगा। ये दोनो ही अपनी-अपनी कलाओं के महारथी थे, और जब वे साथ में प्रस्तुति करते, तो एक जादुई माहौल बन जाता था। उस्ताद जाकिर हुसैन की मृत्यु से सारा देश उदास है। वे सर्वप्रिय थे।

उस्ताद जाकिर हुसैन अपनी अद्भुत तकनीक और तबले पर महारत के लिए सदैव याद किए जाएंगे। उनकी लय और ताल की समझ अविश्वसनीय थी। वे जटिल तालों को भी सहजता से बजाते हैं, जिससे संगीत में एक अलग ही रंगत आ जाती थी। जाकिर हुसैन का संगीत सिर्फ तकनीकी कौशल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भावनाओं की गहराई भी है। उनकी हर थाप में एक कहानी छिपी होती है, जो दर्शकों के दिलों को छू जाती है।

वो फरवरी का महीना था और साल था 2012 । दिल्ली में जाड़ा पड़ रहा था। उस दिन राजधानी के शास्त्रिय संगीत के रसिया नेहरू पार्क का रुख कर रहे थे उस्ताद जाकिर हुसैन के जादू को देखने के लिए। उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपनी उंगलियों और हथेलियों से ऐसी ध्वनियाँ निकालीं, जो पहले कभी नहीं सुनी गईं थीं। दरअसल उस दिन तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन को नेहरू पार्क में शिव कुमार शर्मा के साथ जुगलबंदी पेश की थी। करीब 500 संगीत प्रेमियों के बीच जब दोनों उस्तादों ने तान छेड़ी तो फिर जो समां बंधा उसे कौन शब्दों में बयां कर कर सकता है। करीब दो घंटे की गुगलबंदी में दोनों उस्तादों ने अपने चाहने वालों की भरपूर तालियां बटोरीं। अफसोस कि उस जुगलबंदी के दोनों उस्ताद अब संसार में नहीं रहे।

उस्ताद जाकिर हुसैन दिल्ली में बीती आधी सदी से भी अधिक से समय से अपने कार्यक्रम दे रहे थे। भारतीय संगीत को उनके खास अंदाज की वजह से अतंर्राष्ट्रीय पहचान मिली थी। उन्होंने दिल्ली में दर्जनों कंसर्ट पेश किए। वे दशकों से दिल्ली में आ रहे थे।

जाकिर हुसैन ने कमानी सभागार में 2019 में एक यादगार प्रस्तुति दी थी। मौका था श्रीराम कला केन्द्र के संस्थापक लाला चरत राम की याद में आयोजित एक कार्यक्रम का। उसमें श्रीराम कला केन्द्र की प्रमुख शोभा दीपक सिंह ने बताया था कि जाकिर हुसैन श्रीराम कला केन्द्र के कार्यक्रमों में अपने पिता उस्ताद अल्लाह रखा खान के साथ आते थे। उस समय वे 15-16 के थे। जाकिर हुसैन ने जब दिल्ली के कमानी सभागार में प्रस्तुति दी, तो वह एक अविस्मरणीय शाम थी। उनके तबले की गूंज पूरे सभागार में छा गई और दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कला मर्मज्ञ डॉ. रविन्द्र कुमार उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन का समाचार सुनकर गमगीन हो गए। कहने लगे, जाकिर हुसैन का कोई सानी नहीं था। उनकी उंगलियां तबले पर ऐसे चलती थी जैसे कोई जादू हो। उनकी लयकारी और ताल की समझ अद्भुत थी। वे हर ताल को नए अंदाज में पेश करने में माहिर थे ।

उस्ताद जाकिर हुसैन की लय पर पकड़ अद्भुत थी। उनकी उंगलियां तबले पर इस तरह नाचती थी कि हर ताल और लय स्पष्ट और सटीक होती थी। वह पारंपरिक तबला वादन में तो माहिर थे ही, साथ ही उन्होंने अपनी तकनीक में कई नए तत्वों को भी जोड़ा भी। वे विभिन्न प्रकार की तालों और लय में कुशलता से तबला बजाते थे। उनकी गति अविश्वसनीय थी। वे बहुत तेज गति से तबला बजा सकते थे, लेकिन उनकी सटीकता और स्पष्टता कभी कम नहीं होती।

जाकिर हुसैन सिर्फ तबला नहीं बजाते, बल्कि संगीत के साथ संवाद करते थे। वे अन्य संगीतकारों के साथ मिलकर शानदार संगीत बनाते थे।उनके तबले वादन में गहरी भावनाएं होती थीं। वे अपनी कला से खुशी, दुख, उत्साह और शांति जैसे विभिन्न भावों को व्यक्त कर सकते थे । वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ जैज़ और फ्यूजन संगीत में भी माहिर थे। उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों के संगीत को एक साथ मिलाकर एक नई शैली बनाई।

जाकिर हुसैन ने कई युवा तबला वादकों को प्रेरित किया। उन्होंने तबला वादन को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया। वे हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करते थे। उन्होंने तबले वादन के क्षेत्र में कई नए प्रयोग किए और इस कला को आगे बढ़ाया।

वे दुनिया के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित तबला वादकों में से एक थे। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान जीते हैं। इतने बड़े कलाकार होने के बावजूद, जाकिर हुसैन बहुत ही सरल और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अपने संगीत के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे और हमेशा सीखने के लिए तैयार रहते थे। वे अपने संगीत और दर्शकों के प्रति गहरा प्यार रखते थे। वे दर्शकों के सवालों के जवाब देते थे, उनसे बतियाते थे।

उस्ताद जाकिर हुसैन को भारत और दुनियाभऱ में बसे उनके चाहने वाले सदैव याद रखेंगे।