आपराधिक चरित्र के महिमामंडन की कहानी फिल्म पुष्पा

Pushpa film is a story of glorification of criminal character

नरेंद्र तिवारी

साहित्य समाज का दर्पण है, यह साहित्य की सर्वमान्य परिभाषा है। साहित्य को पढ़कर उस दौर की सामाजिक सच्चाइयों को जाना जा सकता है। यहां बात वर्ष 2024 के अंत में रिलीज हुई फिल्म पुष्पा द रूल याने पुष्पा भाग 2 की है, जिसने अपने शुरुवाती दो सप्ताह में कमाई का रिकार्ड बनाया है। फिल्म की प्रसिद्धि का पता सोशल मीडिया पर बहुतायत में चल रहे संदेश, रील और साथ ही फिल्म देखकर आने वाले दर्शकों की प्रतिक्रियाओं से लगाया जा सकता है। हर कोई यह कहते नजर आ रहा है कि ’मैं झुकेगा नहीं साला।’ साउथ फिल्म के अभिनेता अल्लू अर्जुन, रश्मिका मंदाना और फहद फ़ासिल द्वारा अभिनीत फिल्म पुष्पा द राइज याने पुष्पा भाग एक वर्ष 2021 के दिसंबर में रिलीज हुई और भारत सहित विदेशों में भी धूम मचा दी थी। ऐसा ही हाल पुष्पा दो याने पुष्पा द रूल भी दर्शकों की पहली पसंद बनी हुई है। यानी पुष्पा के उदय भाग एक से पुष्पा द रूल हो जाने तक की कहानी भाग दो के माध्यम से फिल्म में दिखाई गई है।

फिल्म आंध्रप्रदेश की शेषचलम पहाड़ियों में होने वाली लाल चंदन की तस्करी पर आधारित है। फिल्म का नायक पुष्पा एक कुली है जो लाल चंदन के जंगल में काम करता है। जंगल कटाई में पारंगत होने ओर घने जंगल में जाने की निडरता के चलते पुष्पा लाल चंदन के तस्करों के साथ पार्टनर बनता है। अपने साहस और बेबाकी के चलते तस्करों के सिंडिकेट में शामिल होने में सफल हो जाता है। फिल्म के दूसरे भाग में वह सिंडिकेट का सरगना बन जाता है। कुलमिलाकर पुष्पा फिल्म के दोनों भाग लाल चंदन के तस्करों, नेताओं ओर पुलिस के गठजोड़ की आपराधिक कहानी है। फिल्म में धनबल, सत्ताबल और बाहुबल की गरिमा को स्थापित करने का प्रयास किया गया है।

फिल्म पुष्पा की कहानी कितनी सच और कितनी काल्पनिक है। यह कहना तो मुश्किल है किंतु यदि फिल्म की स्टोरी को आधा सच भी मान लिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि फिल्म से मिलती जुलती घटनाएं घटित हुई होगी। जिसे कहानी के लेखक ने आकार दिया होगा। आंध्रप्रदेश की शेषचलम पहाड़ियों पर चंदन के जंगलों की कटाई स्थानीय प्रशासन तंत्र की मिलीभगत से हुई होगी।

फिल्म मनोरंजन का सुलभ माध्यम है। उसमें सच्चाई के साथ काल्पनिकता का पुट भी डाला जाता है। यह सिर्फ पुष्पा फिल्म की बात नहीं है अमूमन भारतीय फिल्म जगत इस प्रकार की कहानियों से भरा पड़ा है। पुष्पा फिल्म देखकर लाल चंदन की तस्करी के अलग–अलग तरीकों से तो अवगत हुआ जा सकता है। इस फिल्म में धनबल से सरकार का तख्ता पलट, तस्करी के सिंडिकेट से पुलिस और नेताओं की निकटता को भी देखा जा सकता है। फिल्म को महज मनोरंजन के तौर पर देखने पर फिल्म की सराहना की जा सकती है। अल्लू अर्जुन, फहद फ़ासिल और रश्मिका मंदाना के अभिनय की तारीफ भी की जा सकती है। किन्तु फिल्म से समाज को क्या संदेश मिल रहा है, यह सोचने पर महज भटकाव पैदा होता है। भारतीय समाज को यह फिल्म क्या परोस रही है। इस बात पर गौर किए जाने की आवश्यकता है। साहित्य समाज का दर्पण होता है। फिल्में भी साहित्य की एक विधा के तौर पर जन सामान्य का सिर्फ मनोरंजन ही नहीं करती अपितु समाज को सकारात्मक संदेश भी देती रही है। पुष्पा फिल्म को दर्पण के तौर पर देखने पर फिल्म निर्माता का अदम्य साहस दिखाई देता है। वह तात्कालीन समाज में लाल चंदन के अवैध कारोबार का भंडाफोड़ तो करता ही है। यह भी बताता की पूरा सिस्टम सिंडिकेट के इर्दगिर्द अपनी अवैध कमाई पर ध्यान देता है। नेता रुपयों के लिए किसी भी हद तक जा सकते है, पुलिस अधिकारी भी अपनी जिद और धनबल के लिए नतमस्तक है। जनता भी लाल चंदन के तस्कर पुष्पा की जय जयकार में लगी हुई है। क्या पुष्पा फिल्म में दिखाया गया आपराधिक गठजोड़ हमारे समाज की सच्चाई बयान कर रहा है। क्या राजनीति में अवैध धन का इस्तेमाल सरकार गिराने राज्य का मुख्यमंत्री बदलने के काम को अंजाम देता है। बड़ा सवाल यह है कि पुष्पा के चरित्र का अधिकांश भाग अपराध की दुनिया से जुड़ा है। पुष्पा खुद एक आपराधिक चरित्र के रूप में दिखाया गया है। फिर यह फिल्म कमाई का रिकार्ड क्यों बना रही है। क्या इस फिल्म में हमारे समाज की कड़वी सच्चाई को दिखाया है जो हमारे इर्दगिर्द घटित होती रहती है। भारतीय समाज में अक्सर देखा जाता है कि अपराध से जुड़े बड़े चेहरे जो सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देते है, राजनीति में आते है और जनता में नायक के रूप में देखे जाते है। पुष्पा भी तो तस्कर होने के बाद नायक की भूमिका में फिल्म में दिखाया गया है। बतौर मनोरंजन अल्लू अर्जुन के पुष्पा फिल्म में किए अभिनय को सराहा जा सकता है। पुलिस अधिकारी भंवर सिंह शेखावत के अभिनय की तारीफ की जा सकती है। किंतु फिल्म से मिल रहे सामाजिक संदेश की गणना करने पर सोचना पड़ता है। फिल्म का सामाजिक संदेश शून्य है। बेशक साउथ की अनेकों फिल्मों ने समाज को बेहतर संदेश दिया है। पुष्पा भाग एक के आसपास वर्ष 2022 में रिलीज निर्माता निर्देशक एसएस राजमौली द्वारा निर्देशित फिल्म आरआरआर ने जहां देशभक्ति के संदेश दिया। रामचरण और जूनियर एनटीआर दोनों की सराहनीय भूमिका रही थी। फिल्म के गाने भी संदेश प्रदान थै। इस फिल्म के नाचो–नाचो गाने से भी राष्ट्रप्रेम का अलख जगाया था। आरआरआर और पुष्पा की तुलना करने का मकसद किसी की तारीफ ओर आलोचना करना बिल्कुल नहीं है। अभिनय एक कला है। अभिनेता कहानी के हिसाब से अपने अभिनय को अंजाम देता है। फिल्म में अल्लू अर्जुन ने श्रेष्ठ अभिनय किया है। फहद फ़ासिल भी अच्छे कलाकार साबित हुए। पुष्पा फिल्म भरपूर मनोरंजक फिल्म है। जिसका सामाजिक संदेश शून्य है। फिल्में इससे पूर्व भी ऐसी बन चुकी है, बनेगी भी पर पुष्पा की चर्चा इसलिए क्योंकि जनता इसे देख रही है, फिल्म कमाई के रिकार्ड बना रही है। एक ऐसी फिल्म जिसमें आपराधिक चरित्र को महिमामंडित किया गया है और आपराधिक गठजोड़ को दिखाया गया है।