- राज्य के बीकानेर सांसद और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने रखा था लोकसभा में बिल
अब जेपीसी के अध्यक्ष भी बने राजस्थान के पाली सांसद पी पी चौधरी - जेपीसी में राजस्थान के घनश्याम तिवाड़ी रणदीप सिंह सुरजेवाला और मुकुल वासनिक भी शामिल
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
देश में संसदीय और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने वाले बहुचर्चित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन (एक राष्ट्र एक चुनाव) प्रावधान वाले विधेयक को लोकसभा ने संसद की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी ) को भेज दिया हैं। इस विधेयक पर विचार के लिए संसद ने शुक्रवार को 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति का गठन कर दिया। जेपीसी की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय विधि और न्याय राज्य मंत्री एवं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद पी पी चौधरी करेंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक और जेपीसी में राजस्थान की भूमिका अहम बन गई है। राज्य के बीकानेर सांसद और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को लोकसभा में रखा था ।अब जेपीसी के अध्यक्ष भी राजस्थान के पाली सांसद पी पी चौधरी बन गए है। साथ ही
जेपीसी में राजस्थान के घनश्याम तिवाड़ी, रणदीप सिंह सुरजेवाला और मुकुल वासनिक को भी शामिल किया गया है तथा जे पी सी की रिपोर्ट में इन सभी के सुझाव और भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली हैं।
संसद द्वारा एक राष्ट्र-एक चुनाव विधेयक पर गठित संयुक्त संसदीय समिति के चैयरमेन का दायित्व राजस्थान के पाली लोकसभा के सांसद और पूर्व केन्द्रीय विधि और न्याय राज्य मन्त्री पीपी चौधरी को नियुक्त करने से चौधरी के साथ ही राजस्थान की प्रतिष्ठा भी बढ़ी है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विश्वास भी झलक रहा है। सांसद चौधरी पाली लोकसभा से लगातार तीसरी बार के सांसद है और उन्हें पूर्व में भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली हैं। पिछली बार वे विदेश मामलों की संसदीय स्थाई समिति के अध्यक्ष थे। केन्द्रीय राज्य मंत्री रहने के अलावा वे जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022 और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पर बनी संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष भी रहे।
चौधरी पिछले करीब पांच दशक से कानून विद रहने के साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में संवैधानिक कानून में विशेषज्ञ हैं और राजस्थान उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पेश हुए हैं। कानूनी और संवैधानिक मुद्दों की उनकी गहन समझ ने उन्हें कानूनी और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में बहुत सम्मान दिलाया है। इसी कारण उन्हें मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई । इसके अलावा वे लगातार प्रमुख संसदीय स्थाई समितियां का अध्यक्ष रहे है,जिनमें प्रमुख रूप से विदेश मामलों की संसदीय स्थाई समिति, फैलोशिप कमेटी एवं संयुक्त संसदीय स्थाई समिति ऑफिस ऑफ प्रोफिट शामिल है। इसके अलावा वे विभिन्न महत्वपूर्ण संसदीय समितियों में भी सदस्य बनते रहे है, जिनमें लोकसभा की प्राक्कलन समिति, वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति व्यवसाय सलाहकर समिति, लोकसभा और भारत सरकार के गृह मंत्रालय की परार्मशदात्री समिति आदि प्रमुख रूप से हैं।
उन्होंने अपनी सभी जिम्मेदारियों का कुशल निर्वहन के साथ ही अपनी कार्यशैली से न केवल पक्ष बल्कि प्रतिपक्ष के सांसदों का भी मन जीता और सभी सांसदोंने उनकी तारीफों के पूल बांधे हैं। जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022 और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पर बनी संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में पी पी चौधरी के कार्यशैली की समिति में शामिल कांगेस के वरिष्ठ नेता जयराम नरेश और मनीष तिवारी ने राज्यसभा एवं लोकसभा कार्यवाही में प्रशंसा की थी।
अब सांसद पी पी चौधरी की अध्यक्षता में बनी वन नेशन वन इलेक्शन पर बनी जे पी सी के कारण उनके कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। संसद द्वारा गठित जेपीसी के 39 सदस्यों में भाजपा के 16, कांग्रेस के पांच, सपा, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के दो-दो तथा शिवसेना, तेदेपा, जदयू, रालोद, लोजपा (रामविलास), जन सेना पार्टी, शिवसेना-यूबीटी, राकांपा-(सपा), माकपा, आप, बीजद और वाईएसआरसीपी के एक-एक सदस्य शामिल हैं।इस तरह समिति में राजग के कुल 22 सदस्य हैं जबकि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के 10 सदस्य हैं। बीजद और वाईएसआरसीपी सत्तारूढ़ या विपक्षी गठबंधन के सदस्य नहीं हैं।बीजद ने एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर अभी अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है जबकि वाईएसआरसीपी ने इस कदम का समर्थन किया है। जेपीसी में लोकसभा के जिन 27 सांसदों को नामित किया गया है उनमें भारतीय जनता पार्टी से पीपी चौधरी, सीएम रमेश, बांसुरी स्वराज, पुरुषोत्तम रुपाला, अनुराग ठाकुर, विष्णु दयाल शर्मा, भर्तृहरि महताब, संबित पात्रा, अनिल बलूनी, विष्णु दत्त शर्मा, बैयजंत पांडा और संजय जायसवाल शामिल हैं। कांग्रेस से प्रियंका गांधी वाद्रा, मनीष तिवारी और सुखदेव भगत को इस समिति का हिस्सा बनाया गया है। समाजवादी पार्टी से धर्मेंद्र यादव और छोटेलाल, तृणमूल कांग्रेस से कल्याण बनर्जी, द्रमुक से टी एम सेल्वागणपति, तेलुगु देशम पार्टी से हरीश बालयोगी, शिवसेना (उबाठा) से अनिल देसाई, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) से सुप्रिया सुले, शिवसेना से श्रीकांत शिंदे, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) से शांभवी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के के. राधाकृष्णन, राष्ट्रीय लोक दल के चंदन चौहान और जन सेना पार्टी के बालाशौरी वल्लभनेनी को शामिल है। इसी प्रकार उच्च सदन राज्यसभा से इस समिति में भाजपा के घनश्याम तिवाड़ी, भुनेश्वर कलिता, के. लक्ष्मण, कविता पाटीदार, जनता दल (यूनाइटेड) के संजय झा, कांग्रेस के रणदीप सिंह सुरजेवाला और मुकुल वासनिक, तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले, द्रविड़ मुनेत्र कषगम के पी विल्सन, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, बीजू जनता दल के मानस रंजन मंगराज और वाईएसआर कांग्रेस के वी विजय साई रेड्डी को शामिल किया गया है।
जे पी सी को आगामी बजट सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है। केन्द्रीय विधि और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार ) अर्जुन राम मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में संविधान का 129वां संविधान संशोधन विधेयक 2024 विधेयक पेश किया था जिसके पक्ष में 263 वोट जबकि विरोध में 198 वोट पड़े थे। इसके बाद केन्द्रीय मंत्री मेघवाल ने ध्वनिमत से सदन की मिली सहमति के बाद ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को भी पेश किया था। कानून मंत्री मेघवाल सा द्वारा रखे गए इन दोनों विधेयकों का कांग्रेस एवं उनके सहयोगी दलों ने विरोध किया था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था। उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने इस पर विचार रखा।एक देश, एक चुनाव’ पर सुझाव देने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने इस वर्ष मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी। कोविंद समिति ने अहम सिफारिशें देते हुए
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव की सिफारिशें को दो चरणों में कार्यान्वित किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएगे। दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) किए जाएंगे। इसके तहत सभी चुनावों के लिए समान मतदाता सूची तैयार की जाएगी। इसके लिए पूरे देश में विस्तृत चर्चा शुरू की जाएगी। वहीं एक कार्यान्वयन समूह का भी गठन किया जाएगा। माना जा रहा है कि ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए संविधान में संशोधनों और नए सम्मिलनों की कुल संख्या 18 है।
कोविंद समिति की रिपोर्ट को 18 सितंबर को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी। संसद के शीतकालीन सत्र के बीच 12 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी और केंद्र सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में इसे सदन में पेश किया।
पी चौधरी की अध्यक्षता में बनी जे पी सी का काम इस बिल का अध्ययन करना. इसका मकसद यानी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता और रूपरेखा पर गहन विचार करना होगा. तमाम पहलुओं को देखने और गहन विचार करने के बाद यह समिति अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा भारत में नयी नहीं है। संविधान को अंगीकार किए जाने के बाद, 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित किए गए थे। यह परंपरा इसके बाद 1957, 1962 और 1967 के तीन आम चुनावों के लिए भी जारी रही। हालाँकि, कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में एक साथ चुनाव कराने में बाधा आई थी। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, फिर 1971 में नए चुनाव हुए। पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पांच वर्षों का अपना कार्यकाल पूरा किया। जबकि, आपातकाल की घोषणा के कारण पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल अनुच्छेद 352 के तहत 1977 तक बढ़ा दिया गया था। इसके बाद कुछ ही, केवल आठवीं, दसवीं, चौदहवीं और पंद्रहवीं लोकसभाएं अपना पांच वर्षों का पूर्ण कार्यकाल पूरा कर सकीं। जबकि छठी, सातवीं, नौवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं सहित अन्य लोकसभाओं को समय से पहले भंग कर दिया गया।
पिछले कुछ वर्षों में राज्य विधानसभाओं को भी इसी तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा है। विधानसभाओं को समय से पहले भंग किया जाना और कार्यकाल विस्तार बार-बार आने वाली चुनौतियां बन गए हैं। इन घटनाक्रमों ने एक साथ चुनाव के चक्र को अत्यंत बाधित किया, जिसके कारण देश भर में चुनावी कार्यक्रमों में बदलाव का मौजूदा स्वरूप सामने आया है।
देखना है पी पी चौधरी की अध्यक्षता में गठित के पी सी अपनी क्या रिपोर्ट देती है और एक देश एक चुनाव का सपना कब देश में साकार हो पायेगा?