व्यक्तित्व : सिस्टम के खिलाफ गुस्से की आवाज हैं परमजीत सिंह पम्मा

Personality: Paramjit Singh Pamma is the voice of anger against the system

अपने तीखे तेवरों और आक्रामक विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से पिछले 30 वर्षों से आम आदमी की आवाज को निरंतर बुलंद कर रहे परमजीत सिंह पम्मा ऐसा व्यक्तित्व हैं, जो संघर्ष, साहस और जनता की आवाज को बुलंद करने का प्रतीक बन चुका है। बीबीसी, एएनआई सहित देश के तमाम बड़े मीडिया समूह भी उनके इन विरोध प्रदर्शनों को प्रमुखता से कवर भी करते रहे हैं। 2015 में उन्हें ‘भारत का सबसे गुस्सैल आदमी’ का खिताब मिला था, जो 10 वर्ष बीतने के बाद भी उन्हीं के नाम दर्ज है। बीबीसी ने तब अपनी रिपोर्ट में लिखा था, ‘‘बीबीसी ने आखिरकार सबसे ग़ुस्सैल आदमी को खोज निकाला और यह व्यक्ति हैं परमजीत सिंह पम्मा, जो ‘दिल्ली की सड़कों पर विरोध की आवाज’ हैं।’’

योगेश कुमार गोयल

10 वर्षों से कायम है ‘एंग्री मैन’ का खिताब

अपने तीखे तेवरों और आक्रामक विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से पिछले 30 वर्षों से निरंतर आम आदमी की आवाज को बुलंद करते नेशनल अकाली दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष परमजीत सिंह पम्मा ऐसा व्यक्तित्व हैं, जो संघर्ष, साहस और जनता की आवाज को बुलंद करने का प्रतीक बन चुका है। उन्होंने जन-सरोकारों और विभिन्न सामाजिक व राष्ट्रीय मुद्दों पर दिल्ली की सड़कों से लेकर रामलीला मैदान जैसे प्रमुख स्थलों पर अपना प्रखर विरोध दर्ज कराते हुए सरकारों तक जनता की आवाज को पुरजोर तरीके से पहुंचाया है। उनकी यह विशेषता 2015 में तब व्यापक चर्चा का विषय बनी, जब एक प्रमुख सोशल मीडिया सर्वेक्षण के आधार पर उन्हें ‘भारत का सबसे गुस्सैल आदमी’ का खिताब दिया गया था। उस समय बीबीसी सहित देश के अन्य प्रमुख मीडिया समूहों ने भी इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था, जिसमें उन्हें ‘दिल्ली की सड़कों पर विरोध की आवाज’ कहा गया। इस खिताब को 10 वर्षों से भी अधिक समय तक अपने नाम दर्ज कराए रखने का श्रेय उनकी निरंतरता और सामाजिक मुद्दों पर अडिग रहने को जाता है। बीबीसी ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में लिखा था, ‘‘बीबीसी ने आखिरकार सबसे ग़ुस्सैल आदमी को खोज निकाला और यह व्यक्ति हैं परमजीत सिंह पम्मा, जो ‘दिल्ली की सड़कों पर विरोध की आवाज’ हैं और कुछ वर्षों से तमाम तरह के मुद्दों पर दिल्ली की सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन करते रहे हैं।’’

महज 16 वर्ष की उम्र में महज पांच फुट के छोटे से कद के परमजीत सिंह पम्मा ने अपने पिता जत्थेदार त्रिलोचन सिंह के साथ पहले विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था। यह वर्ष 1995 की बात है, जब उन्होंने जनता के हक की लड़ाई में अपना पहला कदम रखा था। पिता के आदर्शों से प्रेरित होकर उन्होंने 1996 में नेशनल अकाली दल की स्थापना की लेकिन अकाली दल की राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार से असंतुष्ट होकर उन्होंने अपनी अलग राह बनाई और आम आदमी के मुद्दों को अपनी प्राथमिकता बनाया। उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर कार्य को अपना सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य बनाया। पम्मा ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और समाज के अन्य गंभीर मुद्दों को भी अपने एजेंडे में शामिल किया। पैट्रोल, डीजल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों से लेकर बच्चों की शिक्षा, फल-सब्जियों की महंगाई, टीवी पर अश्लीलता जैसे विषयों पर उन्होंने सरकारों के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किए। उनके प्रयास केवल भारतीय सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि उन्होंने ब्रिटेन में सिख पगड़ी के सम्मान के लिए भी दिल्ली में जोरदार प्रदर्शन किए, ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर नस्लीय हमलों के खिलाफ आवाज उठाई, और अमेरिका में विस्कॉन्सिन के गुरुद्वारे पर हुए हमले का विरोध किया। उनके संगठन ने महारानी एलिजाबेथ के भारत आगमन पर उन्हें काले झंडे दिखाए थे, जिसके बाद अंततः ब्रिटेन सरकार ने उनको पत्र लिखकर कहा था कि उनकी मांग को स्वीकार कर पगड़ी का सम्मान किया जाएगा।

समाज के हित में पम्मा के उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने सम्मानित किया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित अनेक राजनीतिक दिग्गजों ने उनके प्रयासों की सराहना की। ब्रिटेन में पगड़ी के मुद्दे पर उनके प्रदर्शन का परिणाम यह हुआ कि ब्रिटेन सरकार ने उनकी मांगों को स्वीकार किया। पम्मा का कहना है कि उनका गुस्सा लोगों पर नहीं बल्कि सिस्टम और सरकार पर निकलता है। उनका यह गुस्सा तब परिलक्षित होता है, जब वे महंगाई, किसानों की समस्याओं या पाकिस्तान की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं। वह मानते हैं कि सरकार तब तक नहीं सुनती, जब तक जनता परेशान होकर आवाज नहीं उठाती। उनके अनुसार, उन्हें सबसे अधिक गुस्सा महंगाई और पाकिस्तान के हमारे सैनिकों पर हमलों को लेकर आता है। वे बताते हैं कि जब भी भारतीय सेना से जुड़े मुद्दे सामने आते हैं, उनका गुस्सा चरम पर होता है। पाकिस्तान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन उनके कार्यों का प्रमुख हिस्सा हैं।

बातचीत के दौरान पम्मा कहते हैं कि उनका उद्देश्य किसी राजनीतिक दल का हिस्सा बनकर राजनीतिक हित साधना नहीं है बल्कि वे सीधे जनता की समस्याओं को उठाने और समाधान की दिशा में प्रयासरत रहते हैं। निःशुल्क शिक्षा, हर छात्र के लिए कॉलेज में प्रवेश की व्यवस्था और सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकना उनके प्रमुख एजेंडे में शामिल हैं। विरोध प्रदर्शनों के दौरान पिछले तीन दशकों में उन्होंने विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की लाठियां झेली, वाटर कैनन का सामना किया और कई बार गिरफ्तारियां भी दी लेकिन अपने इरादों से कभी टस से मस नहीं हुए। उनकी आवाज सदैव बुलंद रही है और वे हर कदम पर जनता के हक के लिए संघर्ष करते रहे हैं। 2015 में उन्हें ‘भारत का सबसे गुस्सैल आदमी’ का मिला खिताब उनके संघर्ष और आक्रामकता का प्रतीक है। इस खिताब ने उन्हें देशभर में एक नई पहचान दिलाई और यह साबित भी किया कि उनका गुस्सा आम आदमी के हक और उनके मुद्दों के प्रति रहता है। यह खिताब पिछले 10 वर्षों से उनकी पहचान का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है। आम आदमी की परेशानियों को दर्शाते उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे और उनकी कार्यशैली यह दिखाती है कि केवल एक व्यक्ति भी सिस्टम के खिलाफ खड़ा होकर बड़ा बदलाव ला सकता है। उनका जीवन आम लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है और उनके प्रयास समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुए हैं।
(लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)