ललित गर्ग
देश का दिल कहे जाने वाली राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव-2025 का बिगुल बज चुका है, कड़कड़ाती सर्दी में भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस केे बीच राजनीतिक दंगल के आगाज के साथ राजनीतिक पारा भी चढ़ने लगा है। उम्मीद की जा रही है कि ठण्ड का पारा गिरने-चढ़ने का रिकॉर्ड बनाने वाली दिल्ली इस बार मतदान का नया रिकॉर्ड बनाने के साथ राजनीति उठापटक का भी नया इतिहास बनायेगी। दिल्ली में चुनावों के ऐलान के साथ ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। एक दूसरे की कलई खोलने की कोशिशें हो रही हैं। ‘आप’ दिल्ली में हैट्रिक लगाने की तैयारी में है, तो भाजपा सत्ता विरोधी लहर, शीश महल, भ्रष्टाचार के आरोप को आधार बनाकर उसे रोकना चाहती है। कांग्रेस अपनी खोयी जमीन को पाने की जद्दोजहद में जुटी है। सबसे दिलचस्प एवं रोमांचक इस चुनाव में देखना है दिल्ली की जनता किसके सर पर ताज पहनाती है?
चुनाव की घोषणा से पहले ही तीनों राजनीतिक दल आम मतदाता को लुभाने के लिये तरह-तरह की घोषणाएं करते हुए जनता से मुखातिब हो रहे हैं, जनता के बीच जा रहे हैं, सभाएं कर रहे हैं, यात्रा निकाल रहे हैं। ‘आप’ तमाम तरह की संकट एवं संघर्षपूर्ण स्थितियों के बावजूद मजबूती बनाये हुए है, क्योंकि आप-सरकार की योजनाएं और कार्यक्रम, जैसेकि सरकारी स्कूलों का कायाकल्प, मोहल्ला क्लीनिक और मुफ्त बिजली, साथ ही महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा और वरिष्ठ नागरिकों को फ्री में तीर्थ यात्रा कराना उसकी ताकत बनी हुई है। नयी घोषणाओं के साथ वह अपनी इस ताकत को बढ़ाते हुए ‘आप’ ने महिलाओं को 2100 रुपये हर महीने देने, बुजर्गों को फ्री इलाज, ऑटो चालकों को 10 लाख का बीमा देने, पंडितों एवं ग्रंथियों को 18 हजार प्रतिमाह जैसी कई योजनाओं का ऐलान किया है, जो पूरे चुनाव का रुख मोड़ सकती हैं। ‘रेवड़ी पर चर्चा’ जैसी मुहिम से ‘आप’ हर वोटर के घर तक पहुंच रही है। पब्लिक को बार-बार याद दिला रही है कि उनकी सरकार ने क्या-क्या काम किए हैं। लेकिन ‘आप’ के खिलाफ सरकार में 10 साल रहने की वजह से सत्ता विरोधी लहर काफी बढ़ गई है। कई वोटर बदलाव की जरूरत महसूस करते हैं। दिल्ली का विकास अवरुद्ध है, वायु प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है, यमुना प्रदूषित हो चुकी है, जनता को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है, सड़के गड्डों में तब्दील हो चुकी है। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया समेत पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं की भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी हुई है। ‘शीश महल’ विवाद ने अरविंद केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाया है। इससे पार्टी की साफ सुथरी छवि धूमिल हुई है। इसके अलावा मतभेद की वजह से कई नेता छोड़ गए, इससे केजरीवाल की जीत की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है। लगता है कि ‘आप’ की उलटी गिनती तो शुरु हो गयी है, देखना है वह कहां जाकर रूकती है।
दिल्ली में जीत के नये कीर्तिमान गढ़ने वाली नई नवेली ‘आप’ ने साल 2013 में अपने पहले चुनाव में 70 में से 28 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। उस समय भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन ‘आप’ ने कांग्रेस से मिलकर सरकार बनाई। लेकिन यह सरकार सिर्फ़ 49 दिनों तक चल पाई। अरविंद केजरीवाल ने फ़रवरी 2014 में ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि दिल्ली विधानसभा में संख्या बल की कमी की वजह से वो जन लोकपाल बिल पास कराने में नाकाम रहे हैं, इसलिए फिर से चुनाव बाद पूर्ण जनादेश के साथ लौटेंगे। 2015 में जब चुनाव हुआ तो दिल्ली की राजनीति में इतिहास रचते हुए ‘आप’ ने 70 में से 67 सीटें जीत लीं। वर्ष 2020 में भी आप ने जीत का कीर्तिमान बनाते हुए 62 सीटें जीती। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव काफ़ी रोचक होने वाला है लेकिन यह ‘आप‘ के लिये चुनौतीपूर्ण होने के साथ संकटपूर्ण है। जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना आंदोलन के बीच से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ, इसी मुद्दे पर भाजपा केजरीवाल को घेरने की पुरज़ोर कोशिश कर रही है। आप को भाजपा ही नहीं, कांग्रेस से भी बड़ा खतरा है। भाजपा ने अभी अपने पूरे उम्मीदवारों की सूची भी जारी नहीं की है लेकिन चुनाव प्रचार अभियान के लिए पार्टी ने अपने स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उतार दिया है और उन्होंने अपनी पहली ही चुनावी सभा में आम आदमी पार्टी पर आक्रामक हमला बोलते हुए उसे दिल्ली के लिये ‘आप-दा’ यानी बड़ा संकट कह दिया है। आप के नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, एलजी ऑफिस के साथ टकराव और कई अन्य फैसले ‘आप’ की विश्वसनीयता एवं सुदृढ़ता को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
दिल्ली विधानसभा का चुनाव इसलिए ज्यादा ही महत्वपूर्ण है कि इसका असर राष्ट्रव्यापी होता है। दिल्ली सरकर की सांविधानिक शक्तियां भले ही सीमित हों, मगर राष्ट्रीय मीडिया के केंद्र में होने के नाते इसके नेताओं को तुरंत राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान बन जाती है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि दिल्ली को एक मॉडल स्टेट बनना चाहिए था, मगर न यह विकास का मॉडल बन सका और न ही सुचारू सुशासन प्रणाली का। दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ-व्यवस्था एवं विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर देश की राजधानी की दुर्दशा एवं ठहरा हुआ विकास एक बदनुमा दाग है, विडंबना यह है कि इसके लिए ‘आप’ सरकार दोषी होते हुए भी क्या आम जनता की अदालत में दोषी साबित होगी? भाजपा, कांग्रेस और आप तीनों के लिए यह विधानसभा चुनाव करो या मरो की स्थिति वाला है। पिछले तीन लोकसभा चुनावों से केंद्र में सरकार बनाने वाली और दिल्ली की सभी संसदीय सीटें लगातार जीतने के बावजूद भाजपा पिछले 26 वर्षों से राजधानी की सत्ता से दूर है। यही नहीं, दिल्ली नगर निगम में दशकों से कायम उसकी सत्ता भी छिन चुकी है। ऐसे में इस टीस को वह इस विधानसभा चुनाव में जरूर दूर करना चाहेगी और इसके लिये उसकी तैयारी ही केजरीवाल के लिये संकट का बड़ा कारण है। विश्लेषकों का कहना है कि यह चुनाव इसलिए भी रोचक होने जा रहा है क्योंकि इसके नतीजे राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेंगे और सबसे ज्यादा, आम आदमी पार्टी के भविष्य को तय करेंगे।
दिल्ली की यह चुनावी लड़ाई इस मायने में खास नहीं कही जाएगी कि इस बार भी वही तीनों दल प्रमुखता से मैदान में हैं, जो पिछले चुनावों में थे। ‘आप’ के अस्तित्व में आने के बाद से यहां ़ित्रकोणिय मुकाबला ही हो रहा है। यह अलग बात है कि इस अपेक्षाकृत नई पार्टी ने एक बार वर्चस्व स्थापित होने के बाद यहां अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने दी। पिछले दो चुनावों में उसे दिल्ली की जनता से शानदार बहुमत मिला। नई और दो राज्यों में सत्तारूढ़ होने के बावजूद ‘आप’ ने मुफ्त की संस्कृति एवं आक्रामक शैली की राजनीति से अपनी अलग पहचान बनाई है। इस आक्रामकता एवं मुफ्त की संस्कृति ने जहां ‘आप’ को नई धार दी है, ताकत दी, पहचान दी वहीं अन्य दलों के साथ उसके संबंधों को भी सहज-सामान्य होने से रोका है। धीरे-धीरे उसकी यही ताकत उसकी कमजोरी बनती जा रही है। भाजपा एवं कांग्रेस भी उस पर हमले करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही। इसमें खास बात सिर्फ यही है कि छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आप दोनों ही विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन में शामिल थे और भाजपा पर संयुक्त हमला कर रहे थे। जाहिर है, इनके बीच की तीखी बयानबाजी इंडिया गठबंधन के अंदर असहजता पैदा कर रही है और शिवसेना (यूबीटी) जैसे दल इनसे संयम बरतने की अपील भी कर चुके हैं। जिस तरह से विधानसभा चुनाव-2025 लड़ा जा रहा है, उससे साफ है कि नतीजा चाहे जो भी हो उसके निहितार्थ दूर तक जाएंगे। दिल्ली की सत्ता ‘आप’ के आंतरिक समीकरण के लिहाज से भी अहम है। ऐसे में वह हर हाल में अपनी कामयाबी दोहराना चाहेगी। लेकिन इस चुनाव में परीक्षा सिर्फ इन राजनीतिक पार्टियों की नहीं, बल्कि दिल्ली के मतदाताओं की भी होगी कि वे अपनी समस्याओं के प्रति कितनी सजगता दिखाते हैं? इस बार दिल्ली की जनता को अपने हित की बजाय दिल्ली के हित में सोचना है। देखना है कि क्या जनता स्वहित के चलते आधे इंजन की सरकार बनायेगी या दिल्ली के समग्र एवं भ्रष्टाचारमुक्त शासन के लिये डबल इंजन की सरकार बनायेगी।