सरस्वती माता की जय

Jai Saraswati Mata

विनोद कुमार विक्की

वित्तीय वर्ष (अप्रैल से मार्च) के दौरान भारत सरकार के लेखा-जोखा वाले वित्तीय प्रबंधन के आंकलन एवं क्रियान्वयन में चूक, त्रुटि अथवा कमी हो सकती है, किन्तु हमारे गाँव के टोला, मोहल्ले में मनाए जाने वाले सरस्वती पूजनोत्सव अर्थात वसंत पंचमी की धूम और उसके प्रबंधन में कभी कोई चूक नहीं हो सकती।

शिक्षा से बदर एवं विद्या से कोसों दूर मुहल्ले के लौंडे को वसंत पंचमी की प्रतीक्षा उसी प्रकार रहती है, जिस प्रकार रेलवे में वेटिंग टिकट पर सफर कर रहे यात्री को टिकट के कंफर्म होने का तथा एग्जिट पोल से प्रभावित नेता जी को चुनाव परिणाम घोषित होने का होता है। वसंत पंचमी के दौरान कुछ बेरोजगार युवाओं का स्वनिबंधित, नवयुवक क्लब सुरसा की तरह स्वतः उत्पन्न हो जाता है। माता के ऐसे सीजनल भक्त घर परिवार में अपने माता-पिता या विद्यालय में शिक्षकों का सम्मान भूले से भी ना किए हों, किंतु प्रति वर्ष वसंत पंचमी को माता वीणा पाणि के प्रति आस्था प्रदर्शन में कमी की भूल कतई नही करते। अपने जीवन काल में सरस्वती साधना सदृश पढ़ाई-लिखाई से हमेशा दूर रहने वाले ऐसे भक्त माता शारदे की पूजा पंडाल के व्यवस्था में तन-मन लगा देते है और जहाँ इन्होंने तन मन लगा दिया तो जबरिया चंदा के नाम पर धन का आगमन भी हो ही जाता है। सरस्वती पूजा के नाम पर इन भक्तों की कार्यकुशलता,आर्थिक उपार्जन, प्रसाद वितरण आदि कार्यो में तन्मयता व समर्पण के साथ अदभुत प्रबंधन भी देखने को मिलता है।

प्रति वर्ष संसद में बजट पेश करते वक्त वित्त मंत्री द्वारा आमद एवं खर्च का ब्यौरा प्रस्तुत किया जाता है, कमोबेश उसी तर्ज़ पर आधुनिक भक्तों द्वारा सरस्वती पूजा का आयोजन एवं क्रियान्वयन भी सुनियोजित तरीके से संपन्न किया जाता है।

संपूर्ण कैलेंडर वर्ष में निठल्ला घूमने वाले माँ के तथाकथित भक्तों की व्यस्तता वसंत पंचमी के पखवाड़ा में उतनी ही बढ़ जाती है जितनी मार्च क्लोज़िंग के वक्त भारतीय बैंक के कर्मचारियों की।

माता के आवाहन,स्थापना,डेकोरेशन,प्रसाद ,डीजे,

विसर्जन आदि से लेकर पूजा के नाम पर चंदा उगाही तक का दायित्व इन्हीं भक्तों के जिम्मेदार कंधों पर टिका होता है। पूजन पूर्व आयोजित बैठक में सर्व सम्मति से अति महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाता है।यथा, प्रसाद, पंडाल,निमंत्रण कार्ड पर कितना खर्चआएगा? मुहल्ले के धन्ना सेठ,दुकानदारों से लेकरएन.एचपर चलने वाले बस, ट्रक ड्राइवर आदि से कैसे और कितना चंदा आएगा? मितव्ययिता का ध्यान रखते हुए खर्च में कटौती कर डीजे अथवा रंगारंग कार्यक्रम पर व्यय का प्रबंधन आदि विशेष रूप से दो दिवसीय माता की भक्ति में लीन भक्त जनों का थकान दूर करने के लिए विसर्जन के दौरान अल्कोहल की व्यवस्था पर खास फोकस रहता है।

वैसे भी विसर्जन के दौरान बिना अल्कोहल द्विअर्थी भोजपुरी गाना पर कमरतोड़ डांस की कल्पना बेमानी सी लगती है। चंदा के नाम पर अतिरिक्त आय से कुछ दिनों तक इन लोगो के खाने-पीने का जुगाड़ हो जाता है।

बहरहाल धार्मिक चंदा के पैसे से खाने-पीने,कमर मटकाने वाले सरस्वती पूजनोत्सव से इन लोगो को कोई दोष अथवा पाप नही लगता, क्योंकि ‘माता शारदे की जय’ के उद्घोष मात्र से ही इनका सारा पाप मिट जाता है। रही बात माता की, वो तो दयालु और क्षमादायनी होती है उनका काम ही है बच्चों के दोष को क्षमा करना। आखिर माता विद्या दायिनी की कृपा से ही इन्हें इस तरह के आयोजन की सद्बुद्धि आती है।