ऋतुपर्ण दवे
यह न तो किसी फिल्म का हिस्सा है और न ही कोई स्टंट। फिल्म अदाकार सैफ अली खान अपने घर पर 16 जनवरी की आधी रात बाद बदनीयत से घुसे एक आरोपी के प्राणघातक हमले से बुरी तरह जख्मीं हो खून से लथपथ हो जाते हैं। शेरदिल सैफ अपने छोटे बच्चे के साथ ऑटो में बैठकर अस्पताल पहुंचते हैं। घायल सैफ को पहचानते ही अस्पताल में तहलका मचता है। हैसियत के अनुसार बेहतर इलाज मिलता है। खबरिया चैनलों में घटना को दिखाने की होड़ मचती है। देखते ही देखते एक सेलेब्रिटी पर हमला हर जुबान पर होता है। लोग अपने-अपने कयास लगाते हैं। मुंबई पुलिस पर उंगली उठती है। हड़बड़ाहट में पुलिस को जो सुराग, सबूत हाथ लगते हैं उसी पर काम शुरू हो जाता है। सी.सी.टी.वी. फुटेज मिलते ही पलक झपकते हर मोबाइल पर पहुंच जाती है।
कई घण्टे बल्कि दिन पुलिस खाली हाथ रहती है। धीरे-धीरे सुराग मिलने के दावे होते हैं। तीन संदेहियों की बात होती है। हद तो तब हो जाती है जब छत्तीसगढ़ जा रहे कथित आरोपी की फोटो जारी हो जाती है जिससे उसकी न केवल नौकरी चली गई बल्कि होने वाली शादी भी टूट गई। उससे हाथ कुछ नहीं लगा। काफी मशक्कत, किरकिरी और नाक के सवाल के बीच 35 पुलिस टीमों की 60 घण्टों की भागदौड़ से 19 जनवरी को कथित असली आरोपी हाथ लगता है। इसे बांगलादेशी घुसपैठिया शरीफुल इस्लाम शहजाद बताया जाता है। दूसरी ओर बांगलादेश में बैठा उसका पिता देखते ही साफ इंकार करता है कि सी.सी.टी.वी. में दिख रहा शख्स उनका बेटा नहीं है।
इसी बीच फुटेज और पकड़ाए आरोपी के अलग-अलग हुलिए पर नई बहस और कई तर्क-कुतर्क शुरू हो जाते हैं। वाकई दोनों अलग-अलग दिखते हैं जो पहली नजर में समझ आता है। देश की सबसे स्मार्ट कहलाने वाली मुंबई पुलिस अपने ही जारी वीडियो पर घिर जाती है। बात तकनीक से पहचान तक आती है। वहीं दूसरे आम जानकार भी सवाल उठाते हैं। आम और खास सभी फुटेज और गिरफ्तार आरोपी के चित्रों का मिलान करते हैं और संदेहों की झड़ी लग जाती है। सी.सी.टी.वी. में बाल काले हैं आरोपी के बाल थोड़े से सफेद हैं। दोनों की उम्र भी अलग-अलग झलकती है। पकड़ा गया उम्र दराज लगता है तो फुटेज वाला बनिस्बत युवा। माथे का आकार-प्रकार भी अलग-अलग दिखता है। सी.सी.टी.वी. वाले का माथा पकड़ाए आरोपी की तुलना में छोटा है। आँखों में भी साफ अंतर है।
पकड़ाए आरोपी की आँखें थोड़ी चौड़ी और बादाम के आकार सी है। सी.सी.टी.वी. में दिख रही आँखें गोल और छोटी हैं। दोनों की भौंहों का अंतर भी साफ-साफ झलकता है। दोनों की नाक का भी अंतर समझ आता है। गिरफ्तार की नाक चौड़ी है। फुटेज में नाक नुकीली और कम चौड़ी है। दोनों के होंठों में साफ-साफ अंतर दिख रहा है।
बात सिर्फ आरोपी की हो तो भी समझ आता है। लेकिन सैफ के डिस्चार्ज के वक्त आए वीडियो ने तो जैसे हंगामा बरपा दिया। चूंकि उन पर चाकू से इतने वार हुए कि एक टुकड़ा टूटकर पीठ में जा घुसा जो सर्जरी से निकला। जाहिर है जख्म गहरे होंगे और सैफ बेइंतिहा दर्द से गुजरे होंगे। साधारणतया फांस घुसने या नाखून के साथ किनारे जमीं चमड़ी कट जाने पर कई-कई दिन लोगों को तकलीफ रहती है। वहीं बुरी तरह जख्मी सैफ की सेहत में हैरानी भरा सुधार और इतना कि अस्पताल से पैदल चलकर हीरो माफिक निकलना खुद ही बड़ा सवाल बन गया? जबकि डॉक्टरों की हिदायत पूरी तरह से आराम यानी बेड रेस्ट की रही।
परिस्थितियों और बाद के घटनाक्रम ने संदेह और बढ़ाया। आम तो आम खास भी सवाल उठाने लगे। महाराष्ट के मंत्री नितेश राणे ने चुभते सवाल उठाए। पूछा कि क्या वाकई में चाकू से हमला हुआ या महज एक्टिंग थी? शिवसेना नेता संजय निरूपम भी कई सवाल उठाते हैं। सैफ पाँच दिन में ऐसे फ़िट कैसे हो गए? उद्धव गुट के सांसद संजय राउत फिटनेस को मेडिकल चमत्कार मान डॉक्टरों को श्रेय देते हैं।
इधर लहरें टीवी का सोशल मीडिया हैंडल एक पुराना वीडियो शेयर करता है। उसमें सैफ 1994 में दिल्ली में हुए हमले का खुलासा करते हैं। फिल्म मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी के प्रीमियर के बाद सैफ कुछ दोस्तों संग एक नाइट क्लब गए। वहां दो लड़कियां साथ डांस करने को कहती हैं। सैफ के इंकार पर लड़कियों के पुरुष दोस्त को बुरा लगा। बात चेहरा बिगाड़ने तक पर आ गई। सैफ पर हमला हुआ। वो सिर की चोट का निशान भी दिखाते हैं। लेकिन केस क्यों नहीं किया के जवाब में कहते हैं कि मामले को ज्यादा पब्लिसिटी नहीं देना चाहते थे वरना लोग उन्हें ही दोषी ठहराएंगे। इस बार ऐसा नहीं हुआ। चोटिल और इलाज के बाद निकलते सैफ किसी सुपरस्टार से कम नहीं लगे। 17 जनवरी की तड़के से अब तक सुर्खियां इतनी कि थमने के बजाए रोजाना कुछ न कुछ नई थ्योरी के साथ सामने होती हैं। हमले के वक्त घर पर कौन-कौन था, करीना लेकर अस्पताल क्यों नहीं पहुंची? साथ में वाकई कौन गया बेटा या कोई और?
निश्चित रूप से सैफ पर हमला, पकड़ाए आरोपी पर संदेह, सेहत में हैरानी भरा सुधार हर रोज नए-नए खुलासे, तर्क-वितर्क के बीच सच क्या और झूठ क्या है इस पर ऊहापोह की स्थिति है। कभी यह सुनाई देता है कि घटनास्थल से कलेक्ट किए गए नमूनों में से 19 नमूने आरोपी के फिंगरप्रिंट से मेल नहीं खा रहे। अब यह कि फेशियल रिकग्निशन टेस्ट में आरोपी शरीफुल का चेहरा और सैफ के घर में मिले सीसीटीवी के कैद आरोपी का चेहरा एक ही है। यह एक तरह से बायोमेट्रिक पहचान तकनीक है जो तीन भागों में विभाजित है। चेहरा पहचानना, चेहरा ट्रैकिंग और चेहरे को मिलाना। इस तकनीक से मुख्य रूप से यह पता किया जाता है कि दो तस्वीरों में मौजूद व्यक्ति एक ही व्यक्ति है या नहीं?
इतना तो तय है कि घटना की गुत्थियां, पेचीदगियां और रहस्य कहीं न कहीं महाराष्ट्र पुलिस, सरकार और सेलीब्रिटीज के लिए लंबे अरसे तक सिरदर्द जरूर रहेंगी। सच-झूठ सिवाय सैफ-करीना के कौन जानता है यह भी अनसुलझा सवाल बन चुका है?
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)