
ललित गर्ग
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में गुरुवार को 64 साल पुराने आयकर कानून-1961 के सरलीकरण और इसमें चले आ रहे बेवजह के प्रविधानों को समाप्त करने के उद्देश्य से नया इनकम टैक्स बिल-2025 पेश कर दिया। 622 पन्नों के इस विधेयक में 536 धाराएं शामिल हैं। जबकि आयकर कानून-1961 में 1647 पन्ने और 819 धाराएं रही है। इस विधेयक में कई पुराने और जटिल प्रावधानों को हटाकर करदाताओं के लिए इसे आसान और पारदर्शी बनाया गया है। नए कानून का उद्देश्य कर प्रक्रिया को स्पष्ट, सहज, सरल और कानूनी उलझनों से मुक्त बनाना है जिससे लंबे समय तक चलने वाले विवादों की संख्या कम हो। इसे लागू करने की संभावित तारीख 1 अप्रैल 2026 तय की गई है। निश्चित ही नये आयकर कानून से टैक्स व्यवस्था में पारदर्शिता और सरलता के नए दौर की शुरुआत होगी, यह आयकर कानून का नया सूरज है, जो जटिलताओं एवं पेचिदगियों की जगह सरलता एवं सहजता की रोशनी बनेगा।
मौजूदा आयकर कानून की तुलना में नया आयकर कानून शब्दों और धाराओं की संख्या के हिसाब से काफी छोटा है, पुराने इनकम टैक्स एक्ट में 5.12 लाख शब्द थे, जबकि नए बिल में सिर्फ 2.6 लाख शब्द हैं। एक्ट के अलग-अलग चैप्टर भी 47 से घटाकर 23 कर दिए गए हैं, नए कानून में 1,200 प्रावधान और 900 स्पष्टीकरण हटा दिए गए हैं। इन बदलावों का मकसद यह है कि लोग आसानी से आयकर के नियम समझ सकें और टैक्स भरने की प्रक्रिया पहले से आसान हो जाए। यह बिल आयकर प्रावधानों को सरल और आसान बनाने के बड़े मकसद से जुड़ा है, जिसका फायदा आने वाले वर्षों में दिख सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रारंभ से ही कम-से-कम कानूनों एवं सरल-व्यवस्था के हिमायती रहे हैं।
दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर देश में आर्थिक क्रांति का शंखनाद अनेक मोर्चें पर हो रहा है। न केवल भारत की अर्थव्यवस्था बदली है बल्कि हमारे आसपास की पूरी दुनिया बदल चुकी है। 1961 में बने आयकर कानून में बदलती जरूरत के मुताबिक नए-नए संशोधन होते रहे, जिससे इसकी जटिलता बढ़ती चली गई। यह जटिलता न केवल करदाताओं को उलझन में डालती थी बल्कि कानूनी प्रावधानों की कई तरह से व्याख्या अनेक उलझने एवं विवाद खड़ा करती रही है। इन जटिल होती परिस्थितियों का परिणाम यह हुआ कि अपने देश में टैक्स को लेकर विवाद लगातार बढते़ गये। इन लगातार बढ़ते विवादों के कारण ही इसे दुनिया की टैक्स विवादों की राजधानी कहा जाने लगा। खासकर पिछले करीब डेढ दशक में यह ट्रेंड बहुत तेजी से बढ़ा। नौबत ऐसी आ गई कि 2023-24 तक टैक्स संबंधी मुकदमों में विवादित रकम बढ़कर 15.4 लाख करोड़ रुपये हो गई, जिसका करीब 87 प्रतिशत हिस्सा डायरेक्ट टैक्स से जुड़ा है। संभावनाएं हैं एवं सराहनीय भी है कि नये कानून के लागू होने से विवाद भी कम होंगे एवं जनता भी राहत की सांस लेगी। निश्चित ही यह कदम स्वागतयोग्य है। इस कानून को लाकर मोदी सरकार और विशेषतः वित्तमंत्री ने अपने दायित्व का ईमानदारी से पालन किया है।
आयकर कानून-1961 की जटिलताओं के कारण विवादों का अंबार लगा रहा है। जबकि आयकर विभाग को इन विवादों से कोई फायदा भी नहीं होता है क्योंकि इनमें जीत का उसका रेकॉर्ड बड़ा खराब रहा है। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) की ओर से 34 देशों में टैक्स विवादों पर हुई एक स्टडी के मुताबिक 2015 में भारत में टैक्स विभाग को महज 11.5 प्रतिशत मामलों में ही जीत मिली थी। ओईसीडी देशों का औसत इस मामले में 65 प्रतिशत है। अवश्य ही यह स्थिति भारत के लिये चिन्ताजनक रही है। अब इस स्थिति में सुधार होने की संभावना है। आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो नए आयकर कानून से कर संहिता अधिक सरल हो जाएगी और वह आयकर अधिकारियों के साथ आयकरदाताओं को भी राहत प्रदान करेगी। इससे अच्छा और कुछ नहीं कि आयकरदाताओं को जटिल नियमों के साथ आसानी से समझ न आने वाली भाषा से छुटकारा मिले।
देश में ऐसी सरल कर प्रक्रिया की अपेक्षा रही है कि कोई भी आदमी कर चुकाने के मामले में जमीनी और कागजी, दोनों ही स्तरों पर आत्मनिर्भर हो। नया कानून इस बड़ी अपेक्षा की पूर्ति करते हुए बड़ी परेशानियों से मुक्ति की राह प्रशस्त कर रहा है। ऐसे में चाहे असेसमेंट ईयर के बदले टैक्स ईयर जैसी शब्दावली तय करने की बात हो या सैलरी डिडक्शन से जुड़े तमाम प्रावधानों को एक सेक्शन में रखने की या खेती से जुड़ी आमदनी संबंधी प्रावधानों पर स्पष्टता लाने की, प्रस्तावित बिल सही ढंग से अमल में आए तो यह देश की टैक्स व्यवस्था को मजबूती देने के साथ नया भारत, सशक्त भारत एवं विकसित भारत के संकल्प को भी बदल देगा। चूंकि आयकर विधेयक को संसदीय समिति के पास भेजने का निर्णय लिया गया है, इसलिए यह आशा की जाती है कि वहां उस पर व्यापक एवं स्वस्थ विचार-विमर्श के दौरान उसे वास्तव में सरल रूप देने में मदद मिलेगी। इस अपेक्षा के साथ ही यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता है, जिससे लोग स्वेच्छा से आयकर देने को प्रेरित हों और उनके मन में किसी तरह का भय न रहे।
यह भी समय की मांग है कि सरकार आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाने के उपाय करे। यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान में डेढ सौ करोड की आबादी वाले देश में आयकर देने वालों की संख्या चार करोड़ से भी कम है। इनमें मुख्यतः वे ही हैं, जो नौकरीपेशा हैं। आयकर विभाग को इतना चुस्त एवं दुरस्त करने की जरूरत है कि जो समर्थ होते हुए भी आयकर नहीं देते हैं, ऐसे लोगों का पता लगाये। आखिर जो संपन्न किसान एक सीमा से अधिक आय अर्जित करते हैं, उन्हें आयकर के दायरे में क्यों नहीं लाया जाना चाहिए? इसकी अनदेखी नहीं की जाए कि कृषि आय को टैक्स के दायरे से बाहर रखने के नियम का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। बहुत से लोग काफी समय तक दवा के स्थान पर बीमारी ढोना पसन्द करते हैं पर क्या वे जीते जी नष्ट नहीं हो जाते? खीर को ठण्डा करके खाने की बात समझ में आती है पर बासी होने तक ठण्डी करने का क्या अर्थ रह जाता है? समर्थ लोगों को स्वैच्छा से आयकर देने के लिये तत्पर होना चाहिए।
देश में आयकर का विषय विवादों से घिरा रहा है। अभी भी कुछ अर्थशास्त्री आयकर को दोहरा एवं गैर-जरूरी कराधान मानते हैं। लम्बे समय से ऐसे स्वर भी उभरते रहे हैं कि एक आम आदमी लगभग हर वस्तु और सेवा के लिये कर चुकाता है तो फिर उससे आयकर वसूलने की जरूरत क्यों है? भविष्य में इस पर भी सकारात्मक चिन्तन की अपेक्षा है। एक और बड़ी विसंगति का सामना आयकरदाता करता रहा है कि उसे आयकर विभाग हर मोर्चें पर सन्देह एवं शंका की नजर से देखता है। इसलिये जितना आवश्यक आयकर संबंधी नियम-कानून सरल करना है, उतना ही इस बात की अपेक्षा है कि आयकर विभाग लोगों से अनावश्यक रूप से न तो सवाल-जवाब करे और न ही किसी भूल-चूक पर उन्हें तंग करे। यह तब संभव होगा, जब आयकर अधिकारी आयकरदाताओं को संदेह की दृष्टि से देखना बंद करेंगे। उन्हें यह भी समझना होगा कि आयकर बचाने के उपाय अपनाने का मतलब कर चोरी करना नहीं होता। आयकर विभाग को उन कारणों का निवारण भी करना होगा, जिनके चलते लोग आय छिपाने के जतन करते हैं। इसी के साथ ऐसी भी व्यवस्था करनी होगी, जिससे आयकर का आकलन करने और उसकी वसूली में भ्रष्टाचार न होने पाए। आयकर विभाग को लोगों के विश्वास का उपभोक्ता नहीं अपितु संरक्षक बनना होगा। निश्चित ही नया आयकर कानून भारत की कर प्रणाली को आधुनिक और प्रभावी बनाएगा। इससे करदाताओं को अपनी जिम्मेदारियां निभाने में आसानी होगी, कर प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा और कानूनी उलझनों से बचा जा सकेगा।