अंतर्मन से होता है प्रसन्नता का आविर्भाव

Happiness emerges from within

सुनील कुमार महला

प्रसन्नता या खुशी मानव की एक सकारात्मक भावना है। वास्तव में, जब किसी व्यक्ति की किसी प्रकार की इच्छा की पूर्ति हो जाती है तो वह व्यक्ति विशेष बहुत ही खुश होता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इच्छाओं के अनुकूल काम होने पर व्यक्ति प्रसन्नता या खुशी का अनुभव करता है। इसके अलावा, किसी अचानक लाभ से लाभांवित होने,किसी जटिल समस्या का समाधान प्राप्त होने, मनमाफिक सफलता प्राप्त करने पर भी व्यक्ति को खुशी का अनुभव होता है।खुशी एक ऐसी चीज है जिसे हर कोई पाना चाहता है।सरल शब्दों में कहें तो आम तौर पर, खुशी एक भावनात्मक स्थिति है जो आनंद, संतुष्टि, संतोष और पूर्णता की भावनाओं से जुड़ी होती है।खुशी आनंद और प्रशंसा की तीव्र भावना ही तो है।सच तो यह है कि खुशी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं तथा खुशहाली की कुंजी हैं।यह भी एक तथ्य है कि खुशी संस्कृति, मूल्यों और जीवन के चरणों के साथ बदलती रहती है।कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि नकारात्मक भावनाओं की तुलना में अधिक सकारात्मक भावनाओं का अनुभव करना ही खुशी है।खुशी या प्रसन्नता जीवन में उद्देश्य और संतुष्टि की हमारी समग्र भावना को दर्शाती है। कहना चाहूंगा कि प्रसन्नता और खुशहाली की प्रबल भावना से हमारे रिश्ते बेहतर होते हैं, हमारा सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है और दूसरों के जीवन में योगदान भी बढ़ता है, साथ ही इसके कारण (खुशी के कारण) स्वस्थ शारीरिक खुशहाली में भी योगदान होता है। वास्तव में, खुशहाली हमारी खुशी और जीवन की संतुष्टि का मूल आधार है। खुशी हमारे भीतर से आती है। यह आंतरिक भावना है।यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और क्या करते हैं।कृतज्ञता का दृष्टिकोण विकसित करके, दूसरों की मदद करके,अच्छी नींद और व्यायाम के साथ सक्रिय बने रहकर और अपने शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखकर तथा अपने समाज,समुदाय से जुड़कर, माइंडफुलनेश का अभ्यास करके हम अपनी खुशियों में इज़ाफ़ा कर सकते हैं। कृतज्ञता तो बहुत बड़ी चीज है। सबसे बड़ा योगदान कृतज्ञता का ही होता है हमारी खुशियां बढ़ाने में। वास्तव में, कृतज्ञता का अभ्यास करने से हमें अपनी वर्तमान स्थिति को स्वीकार करने, स्वयं में (और दूसरों में) अच्छे गुणों की सराहना करने और अधिक खुश महसूस करने में मदद मिलती है। आदमी हमेशा खुशी की उम्मीद में जीवन जीता है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में कभी भी दुःखी या अप्रसन्न नहीं होना चाहता है। वास्तव में हम जो कुछ भी अपने जीवन में करते हैं, खुश रहने के लिए ही करते हैं। खुश रहने के लिए आदमी क्या नहीं करता ? वह मेहनत करता है।अपना सर्वोत्तम करने का प्रयास करता है। और तो और व्यक्ति अपने जीवन में खुश रहने के लिए अलग-अलग कलाओं और हुनर तक को अपनाता है। ऊपर बता चुका हूं कि खुशी आंतरिक होती है। खुशी कभी बाह्य नहीं हो सकती है। यदि खुशी बाह्य है तो उसे हृदय में उपजी खुशी नहीं कहा जा सकता है। बाह्य खुशी तो हमेशा दूसरों को दिखाने मात्र के लिए होती है। यदि हमारी अंतरात्मा खुश है, तो हम वास्तव में खुश हैं। जब हम खुश होते हैं तो हम ईश्वर से ही साक्षात्कार कर रहे होते हैं, क्यों कि खुशी और ईश्वर का ही स्वरूप है।आज मनुष्य को ज़रूरत इस बात की है कि वह खुशी को प्राप्त करना सीखे, क्यों कि इस ब्रह्मांड में चहुंओर खुशियां ही खुशियां बिखरी पड़ी हैं। वास्तव में खुशी के लिए हमें अंतर्मन, अपनी आत्मा में देखने, उसमें झांकने की जरूरत है। आप यकीन मानिए कि जब हम अपने भीतर झांककर देखते हैं और एक पल के लिए इससे हमें संतुष्टि का एहसास होता है और यह संतुष्टि ही वास्तव में हमें खुशी देती है। वास्तव में खुशी का स्रोत बाहरी नहीं है, आंतरिक है, हमारी अंतरात्मा है,हमारा मन है। सच तो यह है कि हमारी आंतरिक आत्मा आनंद और खुशियों से भरी हुई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आत्मा का अनुभव करने के लिए, आत्मा के करीब आने के लिए ही हमें योग और ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। योग और ध्यान से हमें शांति का अनुभव होता है और शान्ति में ही ईश्वर की असली अनुभूति हो सकती है। आत्मा का परमात्मा से मिलन का एक माध्यम है योग और ध्यान। यदि हमारे अंतर्मन में शान्ति होगी तो हम मानवता का दीप जलाने की ओर अग्रसर होंगे। मानव, मानव के लिए सहृदयता से, शान्ति से काम करेगा तो निश्चित ही हमें आनंद और खुशी की अनुभूति होगी। आज मनुष्य को ज़रूरत इस बात की है कि वह अपनी सोई हुई आत्मा को जगाए। हर मनुष्य के भीतर एक दिव्य ऊर्जा होती है। हमें जरूरत इस बात की है कि हम इस दिव्य ऊर्जा को जगाएं। योग और ध्यान हमें आत्म स्थिति तक ले जाने का काम करता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि योगिक अभ्यास भीतर की ओर मुड़ने का विज्ञान और तकनीक है। सच तो यह है कि मानव कल्याण और मुक्ति के लिए ‘अंदर ही एकमात्र रास्ता है।’वास्तव में, योग और ध्यान से हम भौतिकता से परे आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ते हैं और जब हम स्वयं को जान जाते हैं तो दुनिया को भी जान जाते हैं।