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अरविन्द भाई ओझा (कथा व्यास)
इसबार का कुम्भ महाकुम्भ व दिव्य, भव्य कुम्भ था। कुम्भ हमारी सनातन संस्कृति का प्रतीक है । ज्ञान,कर्म व भक्ति के संगम से प्राप्त वैराग्य जीवन की धन्यता है इसलिए संगम और प्रयागराज का हिन्दू समाज के लिए विशेष स्थान है। सबसे अधिक प्रसन्नता की बात है कि युवाओं ने इस कुम्भ में उत्साह के साथ तीर्थ स्नान किया जिनको पैदल चलना पड़ा ये उनके जीवन का तप है जो भविष्य में उनके जीवन का संस्मरण बनेगा।
मानस में कहा गया है “संत दरस दुर्लभ सतसंगा” कुम्भ में जहां हम अमृत स्नान करते हैं वहीं एक ही स्थान पर सन्तों के दर्शन व उनके साथ विभिन्न विषयों पर मंथन भी कर लेते हैं। संगम का ये वो स्थान है जहां भारद्वाज ऋषि ने याज्ञवल्क्य जी से सत्संग करते हुए पूछा था राम कौन हैं। उसी भूमि पर मेरा कुम्भ वास व कथा कार्यक्रम राष्ट्रीय परशुराम परिषद के शिविर में हुआ। जहां पर सुनील भराला (पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री) व महेंद्र कानोडिया द्वारा परशुराम कथा व यज्ञ का आयोजन किया गया था। जिसके माध्यम से अनेकों संतों के द्वारा परशुरामजी के जीवन पर मंथन हुआ और समाज में ये बताने का प्रयास किया गया कि परशुरामजी भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। इसलिए उन्हें किसी जाति या वर्ण से नहीं बांधा जा सकता भगवान सर्व समाज के कल्याण के लिए अवतार लेते हैं। साथ ही समाज मे फैली इस भ्रामकता को भी दूर करना चाहिए कि उन्होंने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया वे क्षत्रिय विरोधी थे। भगवान परशुरामजी ने समतामूलक समरसतायुक्त समाज की स्थापना के लिए अवतार लिया था और जो राजा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते थे उनको परशुरामजी ने सत्ता से बाहर किया। भगवान शिव का धनुष राजा जनक के यहाँ रखा था। राजा जनक, विश्वामित्र और परशुरामजी ने धुनष यज्ञ के माध्यम से राम के गुणों को समाज के सामने प्रगट करने का कार्य ही किया था। राम के अवतार का विश्वास होने पर वे तप के लिए चले गए और कल्कि अवतार की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
जहां तक अपनी माता के शीश को काटने का प्रश्न है तो उन्होंने अविवेकी शीश को काटकर माता के विवेक को जगाने का काम किया था।
पहले भी मेरा कुम्भ में जाना हुआ है पर इसबार की व्यवस्था बहुत सुंदर थी इस कुम्भ को हरित कुम्भ व डिजिटल कुम्भ के नाते जाना जाएगा। कचरा मुक्त कुम्भ के लिए अखाड़ों व सामाजिक संस्थाओं ने स्वेच्छा से स्वीकार किया और प्लास्टिक व कूड़े से मुक्त करने का प्रयास किया। शौचालयों के मल को समाप्त करने के लिए बैक्टीरिया का प्रयोग किया गया जो मल को सड़न से मुक्त कर मिट्टी में बदलते हैं।
कुम्भ के आलोचकों का लिए मेरा कहना है कि आप भी सनातन का अंग हैं इसलिए सत्ता की आलोचना करें पर कुम्भ को बदनाम न करें इससे हिन्दू समाज की भावनाएं व आस्थाएं जुड़ी हैं। ये मंथन के अमृत का स्थान है सत्ता और विपक्ष सकारात्मक मंथन कर समाज के उत्थान के लिए अमृत प्रदान करें।
कुम्भ में जो हादसा हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था ऐसा नहीं होना चाहिए था इस घटना के कारण जो जन प्रभावित हुए उनके व परिवार के प्रति मेरी संवेदना है। समाज को ऐसे समय में विवेक का उपयोग करते हुए तीर्थ का पुण्य लेना चाहिए । मेरा मानना है आगामी कुम्भ में वीवीआईपी की तरह बुजुर्ग व दिव्यांगों के लिए भी कोई व्यवस्था होनी चाहिए। संगम के जल को लिफ्ट कर सभी घाटों पर पहुंचने की व्यवस्था करने से भीड़ को संगम नोज पर पहुंचने से नियंत्रित किया जा सकता है।
इस कुम्भ में कथा के माध्यम से मुझे भी अपनी वाणी को पवित्र करने का अवसर मिला ऐसे तीर्थ स्थानों पर कथा जहां समाज को दिशा देने के लिए कहि जाती हैं वहीं कथा व्यास द्वारा अपने जीवन की नई ऊर्जा के संचार करने में भी ये कथाएं परमात्मा की कृपा प्रसाद होती है। जिन्होंने भी इस आयोजन में सहभागिता की उनपर भी परमात्मा की कृपा बनी रहे यही मेरा आशीष है।