उत्तराखंड में जमीनों की लूट-खसोट पर लगेगी रोक

There will be a ban on land plundering in Uttarakhand

ओम प्रकाश उनियाल

देहरादून : उत्तराखंड ऐसा राज्य है जहां राज्य बनने के तुरंत बाद भूमाफियों ने अपनी जड़ें जमाना शुरु कर दी थी। जो कि इस कदर जमी की राज्य में जो भी सरकार सत्ता में आयी इतनी हिमाकत नहीं कर पायी कि इन पर शिकंजा कस सके। खंडूरी सरकार ने जरूर कदम उठाया था लेकिन उनकी सरकार जाने के बाद वही पूर्ववत स्थिति बन गयी। राज्य के मैदानी इलाकों में भूमाफियों ने ऐसा दबदबा बनाया कि जगह-जगह कालोनियां बसाकर सीमेंट-कंक्रीट के जाल बिछा डाले। इन कालोनियों में न तो किसी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की गयी ना ही नक्शे पास कराए गए। कहीं तो ऐसी संकरी गलियों वाली कालोनियां हैं जहां से एक वाहन भी गुजारने में परेशानी होती है। पहाड़ों तक नहीं बख्शा भूमाफियों ने। जहां-जहां सड़कों का विस्तार होता रहा वहा-वहां भूमाफिया और उनके दलाल अपना जाल बिछाते रहे। पहाड़ का विकास करने के बजाय सरकारों ने विनाश की लीला रची।

राज्य में भू-कानून को लेकर पहाड़वासियों ने कई बार आंदोलन छेड़ा। धामी सरकार अब भू-कानून को लेकर कसरत कर रही है।

राज्य सरकार का भू-कानून सुर्खियों में है। इसके सख्त प्रावधानों के कारण पहाड़ से लेकर मैदान तक जमीनों की लूट-खसोट पर नकेल कसने की उम्मीदें जगी है। अब सरकारी मशीनरी इन प्रावधानों के अनुरूप व्यवस्था बनाने में जुट गई है।

मुख्यमंत्र पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जनभावनाओं का सम्मान करते हुए सख्त भू-कानून विधान सभा में पारित कराया गया है। जनभावनाएं जिस तरह के सख्त भू-कानून के पक्ष में थीं, उसी अनुरूप इसमें प्रावधान किए गए हैं। इस ऐतिहासिक कदम से उत्तराखण्ड के संसाधनों, सांस्कृतिक धरोहरों और नागरिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो पाएगी।

उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) संशोधन विधेयक 2025 को राज्य सरकार ने बजट सत्र के दौरान सदन में पेश किया था, जो ध्वनिमत से पारित हुआ है। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के बाद राज्य सरकार का यह दूसरा बड़ा कदम है, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। उत्तराखण्ड के रजत जयंती वर्ष में राज्य सरकार के खाते में यह अहम उपलब्धि जुड़ गई है, जिसके दूरगामी परिणाम आने भी तय माने जा रहे हैं।

भूू-कानून में कृषि व बागवानी के लिए साढे़ बारह एकड़ भूमि खरीदने की छूट से जमीनों के खुर्द-बुर्द होने की शिकायतों पर सरकार ने करारी चोट की है। प्रदेश सरकार ने हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर को छोड़कर अन्य सभी 11 जिलों में इस छूट को पूरी तरह खत्म कर दिया है। यानी पर्वतीय जिलों में अब कृषि व बागवानी के लिए बाहरी व्यक्ति जमीन ही नहीं खरीद पाएगा। जिन दो जिलों हरिद्वार व उधमसिंहनगर में इस छूट को खत्म नहीं किया गया है, वहां पर भूमि खरीद की प्रक्रिया को कठिन बना दिया गया है। कृषि व बागवानी के लिए भूमि खरीद की अनुमति पहले डीएम स्तर से दे दी जाती थी। मगर अब इन दो जिलों में इसके लिए शासन से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा यह प्रावधान भी किया गया है कि कृषि व बागवानी के लिए भूमि खरीदने के जो इच्छुक (बाहरी व्यक्ति) हैं, उसे संबंधित विभाग से आवश्यकता प्रमाणपत्र भी उपलब्ध कराना होगा।

नगर निकाय और छावनी परिषद क्षेत्रों में भू-कानून को लागू नहीं किया गया है। बाहरी व्यक्ति यदि निकाय क्षेत्रों से बाहर आवास के लिए जमीन खरीदने का इच्छुक हो, तो उसके लिए भी प्रभावी व्यवस्था भू-कानून में कर दी गई है। ऐसा व्यक्ति सिर्फ एक बार ही जमीन खरीद पाएगा और उसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मीटर तक ही होगा। इसके लिए उसे अनिवार्य रूप से शपथपत्र भी देना होगा।

भू-कानून में प्रावधान किया गया है कि नगर निकाय क्षेत्रों के अंतर्गत भूमि का उपयोग निर्धारित भू-उपयोग के अनुरूप ही किया जाएगा। अन्यथा संबंधित भूमि राज्य सरकार में निहित कर ली जाएगी। भूमि खरीदने के लिए शपथपत्र की अनिवार्यता के पीछे यही मंशा है कि लूूट-खसोट न होने पाए। इसी तरह, पोर्टल के माध्यम से भूमि खरीद प्रक्रिया की निगरानी का प्रावधान रखा गया है। साथ ही सभी जिलाधिकारियों के लिए यह जरूरी किया गया है कि वह राजस्व परिषद और शासन को भूमि खरीद प्रक्रिया की नियमित रिपोर्टिग करेंगे।