
अशोक भाटिया
बलूचिस्तान में लिबरेशन आर्मी द्वारा क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक करने की 11 मार्च की घटना ने, बलूच और पाकिस्तानी शासन के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों की यादों को एक बार फिर से ताजा कर दिया है। BLA लड़ाकों द्वारा किया गया ये अटैक और हाईजैक बलूचों की स्वतंत्रता की लगातार मांग का नतीजा है। यह लड़ाई आर्थिक उत्पीड़न, राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेले जाने, सांस्कृतिक भेदभाव और स्टेट स्पॉन्सर्ड दमन के आरोपों का भी अंजाम है, जो 1947 में पाकिस्तान की स्थापना के बाद से ही चल रहा है।
बताया जाता है कि हाल ही में बलूच लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान पर सबसे बड़ा हमला कर दिया है। जिसके बाद कहा जा रहा है कि बलूचिस्तान अपनी आजादी के बेहद नजदीक पहुंच गया है। अब तो अमेरिका तक ने एक बड़ा ऐलान कर दिया है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने दावा किया है कि उसने पाकिस्तान की एक ट्रेन जाफर एक्सप्रेस को हाईजैक कर लिया है। इस ट्रेन में पाकिस्तान के 450 लोगों को बंधक बना लिया गया है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने चेतावनी दी है कि अगर पाकिस्तान की सेना ने जरा सी भी हरकत करने की कोशिश की तो सभी यात्रियों को मार दिया जाएगा। बलूचिस्तान के कच्छी जिले के माच टाउन के आब-ए-गम इलाके के पास ट्रेन को हाईजैक किया गया है। खबर के मुताबिक, करीब छह हथियारबंद लोगों ने ट्रेन पर गोलीबारी की, जिससे यात्रियों में दहशत फैल गई। जानकारी के अनुसार, बीएलए का मुकाबला करने के लिए पाक सेना एयर स्ट्राइक की तैयारी कर रही है और एयर एसेट तैनात किए गए हैं।
ट्रेन हाईजैक करते हुए बलूच आर्मी ने पाकिस्तान के 11 सैनिकों को मार दिया है। सबसे हैरान करने वाली बात तो ये है कि इस ट्रेन में पाकिस्तान की सेना, पाकिस्तान की पुलिस और पाकिस्तान के आतंकवाद निरोधक दल के अफसर व आईएसआई के अधिकारी भी बैठे हैं। बताया जा रहा है कि इस ट्रेन में बैठे पाकिस्तान के अधिकारियों की संख्या 182 से ज्यादा है। ये सभी अफसर छुट्टी मनाने के लिए पाकिस्तानके पंजाब प्रांत में जा रहे थे। बलूचों ने ट्रेन में बैठे इन पाकिस्तानी अधिकारियों को भी चेतावनी दी है कि जरा सी हरकत की तो सभी यात्रियों को मार दिया जाएगा। खबर सामने आ रही है कि बलूच आर्मी ने इस ट्रेन से महिलाओं और बच्चों को रिहा कर दिया है। बलूच लिबरेशन आर्मी की फिदायिन आर्मी और मजीद ब्रिगेड इस मिशन को लीड कर रही है।
गौर करने वाली बात ये है कि कुछ दिन पहले ही बलूच आर्मी ने ऐलान किया था कि वो पाकिस्तान पर अपने हमले के तरीकों को बदल देगा। कुछ दिन पहले ही बलूचिस्तान और सिंध प्रांत के पांच संगठनों ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हाथ मिला लिया था। इनमें तीन संगठन बलूचिस्तान के हैं और दो संगठन सिंध प्रांत के हैं। मकसद साफ है बलूचिस्तान और सिंध प्रांत को पाकिस्तान से अलग करना और काम शुरू भी हो चुका है। कुछ दिन पहले पाकिस्तान की संसद में भी बयान दिया गया था कि बलूचिस्तान से पांच से सात प्रांत खुद को आजाद घोषित करने वाले हैं।
बलूचिस्तान में पिछले एक साल में आतंकवादी हमलों में वृद्धि देखी गई है। नवंबर 2024 में क्वेटा रेलवे स्टेशन पर हुए आत्मघाती धमाके में कम से कम 26 लोग मारे गए थे और 62 अन्य घायल हुए थे। तेल और खनिज संपन्न बलूचिस्तान, पाकिस्तान का क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा लेकिन सबसे कम आबादी वाला प्रांत है। ईरान और अफगानिस्तान की सीमा से लगा बलूचिस्तान लंबे समय से हिंसक अलगाववाद से जूझ रहा है। बलूच विद्रोही समूह अक्सर सुरक्षा कर्मियों, सरकारी परियोजनाओं और क्षेत्र में 60 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत वाली चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजनाओं को निशाना बनाकर हमले करते रहते हैं।
गौरतलब है कि भारत में इससे पहले अगस्त, 2016 में बलूचिस्तान का मुद्दा जोरदार ढंग से चर्चा में आया था और तब इसकी वजह यह थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के मौके पर लाल किले से दिए अपने भाषण में बलूच लोगों पर पाकिस्तान के अत्याचारों का जिक्र किया था। तब प्रधानमंत्री की टिप्पणी पर पाकिस्तान की ओर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई थी जबकि बलूचिस्तान के नेताओं ने इस मुद्दे को उठाने के लिए मोदी को धन्यवाद दिया था।
ज्ञात हो कि इस समय पाकिस्तान में क्षेत्रफल के लिहाज से बलूचिस्तान सबसे बड़ा सूबा है लेकिन यहां आबादी कम है और बाकी प्रांतों के मुकाबले यहां के लोग गरीब हैं। यहां रोजगार के मौके भी बहुत कम हैं लेकिन प्राकृतिक संसाधन विशेषकर तेल यहां बहुत ज्यादा है और इसलिए यह सूबा पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है।
बलूचिस्तान के इतिहास के अनुसार 1947 में भारत के विभाजन के बाद जब पाकिस्तान बना तभी से बलूचिस्तान के लोगों ने पाकिस्तानी आर्मी और हुकूमत के द्वारा की जा रही हिंसा, कत्लेआम और उनकी आवाज को दबाने के लिए की गई कार्रवाइयों को देखा है। 1947 से पहले बलूचिस्तान में मकरान, लस बेला, खारन और कलात इलाकों के सरदार शामिल थे। ये सभी ब्रिटिश हुकूमत के प्रति वफादार थे। इन सभी में कलात का सरदार सबसे शक्तिशाली था और बाकी इलाकों के सरदार उसके अधीन थे।जब भारत से ब्रिटिश शासन का अंत होने वाला था तब कलात के अंतिम ‘खान’ सरदार अहमद यार खान ने एक स्वतंत्र बलूच राष्ट्र की मांग को उठाया। अहमद यार खान ऐसा मानते थे कि उनके और मोहम्मद अली जिन्ना के संबंध बेहद अच्छे हैं और इस वजह से उन्हें पाकिस्तान में शामिल करने के बजाए एक अलग देश की मान्यता मिलेगी। 1947 में पाकिस्तान ने उनके साथ एक मैत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि अंग्रेज चाहते थे कि कलात का पाकिस्तान में विलय हो जाए।
अक्टूबर, 1947 में पाकिस्तान ने एक चतुराई भरा खेल खेला और कलात का पाकिस्तान में विलय करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। 17 मार्च, 1948 को पाकिस्तान की सरकार ने कलात के तीन इलाकों को अपने साथ शामिल कर लिया। इसी दौरान ऑल इंडिया रेडियो पर यह अफवाह फैल गई थी कि कलात के खान भारत में विलय करना चाहते हैं। इस वजह से 26 मार्च, 1948 को पाकिस्तान की सेना बलूचिस्तान में घुस गई और इसके अगले दिन कलात के विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए गए। लेकिन इस विलय के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
बलूचिस्तान की आजादी के लिए अब तक पांच युद्ध (1948, 1958-59, 1962-63, 1973-1977 और 2003 से जारी) लड़े गए हैं, जिनमें से पहला युद्ध 1948 में शुरू हो गया था। पाकिस्तान की सेना के लिए बलूच विद्रोहियों से निपटना बेहद मुश्किल साबित हुआ है। पाकिस्तान की सेना और वहां की हुकूमत ने बलूच विद्रोहियों का निर्दयता से दमन किया है, इस तरह के आरोप अलग बलूचिस्तान की मांग करने वाले लोगों की तरफ से लगातार लगाए जाते हैं।
पाकिस्तान की सेना पर बलूचिस्तान के लोगों का अपहरण करने, उन पर अत्याचार करने, मनमानी गिरफ्तारी करने और हत्याओं तक को अंजाम देने के आरोप लगते रहे हैं। इस बारे में कोई सटीक आंकड़ा नहीं है कि 1948 से अब तक पाकिस्तान की सेना ने बलूचिस्तान के कितने नागरिकों को मारा है। लेकिन एनजीए के मुताबिक, 2001 और 2017 के बीच लगभग 5,228 बलूच नागरिक लापता हो गए और यह मान लिया गया है कि वे अब जिंदा नहीं हैं।
इसी कारण पाकिस्तान की सेना की हिंसा के जवाब में बलूचिस्तान की लड़ाई लड़ रहे संगठनों ने भी हिंसा का सहारा लिया है। उन पर ऐसा आरोप लगता है कि उन्होंने गैर-बलूच लोगों की हत्याएं की हैं और बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है।इस्लामाबाद के एनजीओ की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बलूच विद्रोही गुटों, मुख्य रूप से बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) ने 2023 में बलूचिस्तान में 78 हमले किए, जिसमें 86 लोग मारे गए और 137 लोग घायल हुए। ये हमले मुख्य रूप से बलूचिस्तान के मध्य, दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों के 19 जिलों में हुए और इनमें बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया।’
एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि बलूचिस्तान की अलग मांग को किस वजह से समर्थन मिला। इसके पीछे दो बातें सामने आती हैं। पहला भेदभाव होना। बलूचिस्तान के लोगों का इतिहास, भाषा और संस्कृति एक जैसी है लेकिन यह बात कही जाती है कि पाकिस्तान बनने के बाद से ही वहां सिर्फ पंजाब के लोगों का दबदबा है। पंजाब के लोगों का पाकिस्तान की नौकरशाही, सारे संस्थानों पर जबरदस्त कब्जा रहा है। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम में भी पंजाबियों का दबदबा है और इस वजह से बलूचिस्तान के लोग ऐसा महसूस करते हैं कि उनके साथ भेदभाव हुआ है।
दूसरी वजह है कि बलूचिस्तान के लोग मानते हैं कि उनके संसाधनों पर कब्जा हो रहा है और उनके साथ अन्याय किया जा रहा है। बलूचिस्तान का इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है और यह ईरान और अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर स्थित है और इसलिए भी यह पाकिस्तान के लिए रणनीतिक लिहाज से अहम है लेकिन पाकिस्तान के बाकी हिस्सों की तुलना में यहां के लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
इस वजह से बलूचिस्तान के लोगों के मन में यह बात बैठ गई है कि पाकिस्तान में उनके साथ नाइंसाफी हो रही है और उन्हें अलग देश दिया जाना चाहिए जिससे वे अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर सकें। उनका तर्क है कि बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादातर फायदा पाकिस्तान के पंजाब के लोगों को मिलता है। उदाहरण के लिए जैसे चीन के द्वारा बनाए जा रहे ग्वादर पार्ट में अरबों रुपए का निवेश हुआ है लेकिन इससे बलूचिस्तान को फायदा नहीं मिला है बल्कि पंजाबी और सिंधी इंजीनियरों को यहां काम पर रखा गया। इस वजह से कई बार बलूच लड़ाकों ने पंजाब के लोगों को निशाना बनाया है।अब लगता है कि बलूची आर पार की लड़ाई के मूड में है और वह अलग बलूचिस्तान लेकर ही मानेंगे
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार