
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में लोग स्नैचिंग/झपटमारी के जमकर शिकार हो रहे हैं। लोग झपटमारों/लुटेरों के आतंक से त्रस्त है। लेकिन दिल्ली पुलिस का दावा है कि पिछले तीन साल में मोबाइल फोन स्नैचिंग/छीनने की वारदात कम हुई हैं।
आंकड़ों की बाजीगरी-
वैसे सच्चाई यह है कि पुलिस द्वारा दर्ज अपराध के आंकड़े हमेशा हकीकत से कोसों दूर ही होते हैं। पुलिस द्वारा आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने की परंपरा है। अपराध कम दिखाने के लिए लूट/स्नैचिंग के सभी मामलों को सही दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा जारी है।
70 फीसदी फोन बरामद नहीं-
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में सांसद माथेश्वरन वी.एस. के सवाल के जवाब में बताया कि पुलिस ने वर्ष 2019 से 28 फरवरी 2025 तक की अवधि में मोबाइल फोन स्नैचिंग/छीनने के 33711 मामले दर्ज किए है। पुलिस ने इस अवधि में 10290 फोन बरामद किए हैं।
33711 मोबाइल छीने गए-
पुलिस ने मोबाइल फोन स्नैचिंग के साल 2019 में 3549, साल 2020 में 5580, साल 2021 में 6989, साल 2022 में 6382, साल 2023 में 5873, साल 2024 में 4749 और साल 2025 में 589 (28 फरवरी तक) मामले दर्ज किए।
10290 फोन ही बरामद-
पुलिस द्वारा साल 2019 में 1240, साल 2020 में 1668, साल 2021 में 1950, साल 2022 में 1919, साल 2023 में 1776, साल 2024 में 1572 और साल 2025 में 165 (28 फरवरी तक) मोबाइल फोन बरामद किए गए। पुलिस ने लगभग सत्तर फीसदी मोबाइल फोन बरामद ही नहीं किए।
पुलिस के हथकंडे- सच्चाई यह है कि पुलिस अपराध कम दिखाने के लिए डकैती/लूट, स्नैचिंग/झपटमारी, चोरी/जेबकटने/ठगी आदि अपराधों के ज्यादातर मामलों को भी या तो दर्ज ही नहीं करती या हल्की धारा में दर्ज करती है। अपराध को दर्ज ना करके तो पुलिस एक तरह से अपराधियों की ही मदद करने का गुनाह ही करती है।
एक ही रास्ता- अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता अपराध के सभी मामलों की सही एफआईआर दर्ज करना ही है। अभी तो हालत यह है कि मान लो अगर कोई लुटेरा पकड़ा गया, जिसने लूट/छीना झपटी की 100 वारदात करना कबूल किया है। लेकिन एफआईआर सिर्फ दस-बीस वारदात की ही दर्ज पाई गई। अगर पुलिस सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करे, तो अपराधी ज्यादा समय तक जेल में रहेगा। अपराधी को हरेक मामले में जमानत कराने और मुकदमेबाजी के लिए वकील को पैसा देना पड़ेगा, जिससे वह आर्थिक रूप से भी कमज़ोर हो जाएगा। ज्यादा मामलों में शामिल होने के कारण उसे जमानत भी आसानी से नहीं मिलेगी। अपराधी के अंदर सज़ा मिलने का डर बैठेगा।
पुलिस अगर अपराधों की सही एफआईआर दर्ज करें, तभी अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर भी सामने आ पाएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटा जा सकता है।
वीआईपी का फोन तुरंत बरामद-
आम आदमी की स्नैचिंग/लूट की एफआईआर तक आसानी से दर्ज नहीं करने वाली पुलिस सत्ताधारी नेताओं,आईपीएस/आईएएस अफसरों और विदेशी राजदूतों आदि के फोन तो चौबीस घंटों में ही बरामद करने में माहिर है। पुलिस अगर ईमानदारी से चाहे तो आम आदमी के फोन को भी तुरंत बरामद कर सकती है।
(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1989 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)