
निर्मल कुमार शर्मा
भारत में लगभग 80 से 85% गौरैया विलुप्त हो चुकीं हैं । अगर वनों और पेड़ों का विनाश इसी दर से जारी रहा…. । मोबाईल टावरों की संख्या ऐसे ही बढ़ती रही .। खेतों में रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग अंधाधुंध होता रहा..। नदियों ,तालाबों आदि प्राकृतिक जल श्रोतों को मानव इसी दर से प्रदूषित करता रहा तो वह दिन दूर नहीं , जब यह नन्हीं , प्यारी , हमारे घर-आंगन को अपनी मीठी आवाज से कानों में अमृत घोलने वाली यह चिड़िया इस पृथ्वी से सदा के लिए विलुप्त हो जायेगी..। तब इसे केवल किताबों में हमारे बच्चे इसके फोटो देखेंगे और यह कल्पना करेंगे कि यह चिड़िया हमारे घरों में और उसके आसपास जब रहती होगी , तो इसके “घर-आँगन में इधर-उधर फुदकती रहने” और “चीं चीं” करना कितना अच्छा लगता होगा….।
इन्हीं सारी बातों को सोचकर मैंने प्रतिज्ञा किया कि मेरा शेष जीवन इस पृथ्वी से इस नन्हें ,भोले ,प्यारे ,अदने से जीव को बचाने में अपनी सारी उर्जा क्यों न लगा दूँ ? पिछले बीस वर्ष से मेरे परिश्रम की सार्थकता रंग लाई । मैनें अपने घर के आसपास ग्यारह पेड़ आज से लगभग पन्द्रह वर्षों पूर्व लगाये थे ,उनकी खूब सेवा किया ,उन 15 पेड़ों में से तीन आज बड़े वृक्ष का रुप धारण कर चुके हैं , जिनमें गौरैयां दिन में खूब चहल-पहल करतीं रहतीं हैं । मेरे घर के पास एक अस्पताल की ऊँची बिल्डिंग पर मोबाईल टावर लगा था ,उससे निकलने वाली घातक रेडिएशन से गौरैयों को बहुत नुकसान होता है , सौभाग्य से उसे भी पिछले दिनों आये सुप्रीम कोर्ट के आर्डर से हटा दिया गया ।
गौरैया और उनके बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन बाज से सुरक्षाकवच बड़े पेड़ नहीं बन सकते क्योंकि पेड़ों की शाखाएं इतनी घनी नहीं होतीं कि उनमें ब़ाज से बचने के लिए वे उनमें शरण ले लें । उसके लिए घनी झाड़ियों जैसे पौधे चाहिये ,जिसमें गौरैया जैसी छोटी चिड़िया तो आसानी से घुस जाय, परन्तु उनका पीछा करता ब़ाज बाहर ही रह जाय ।
यह समस्या भी मेरे घर के पास दो खाली पड़े प्लाटों में लगी ड्यूटोनिया की घनी झाड़ियों ने पूरा कर दिया । मेरे आँखों के सामने कई बार यह घटना हो चुकी है.. जब ब़ाज तेजी से गौरैयों के झुंड पर हमला करता है(विशेषकर ब़ाज गौरैयों के शिशुओं को बड़ी तेजी से ,निर्दयतापूर्वक पकड़कर खा जाते हैं) ,तो सबसे पहले पहरे पर बैठे एक नर गौरैया एक अलग तरह की तेज आव़ाज करते हैं जिसको सुनते ही ब़ाज के पहुंचने के लगभग एक या डेढ़ सेकेंड पूर्व ही पूरा का पूरा झुंड उस घनी झाड़ियों में सुरक्षित पहुंच चुका होता है । अब तो मैं तीन-चार गुलेल और सैकड़ों मिट्टी की गोलियां बना कर अपनी गौरैयों की सुरक्षा के लिए हमेशा अपने साथ रखे रहता हूँ ,ज्योंही मुझे गौरैयों द्वारा ब़ाज (कोई दुश्मन) आने की तेज आवाज वाली सूचना मिलती है ,मैं गुलेल में गोली रखकर तैयार हो जाता हूँ ,ज्योंही ब़ाज आता है ,मैं उस पर तुरन्त गोली चला देता हूँ ,कई बार तो गोली ब़ाज को लग भी गई है । उससे अब वह कम आते हैं और गौरैयों के बच्चे उससे सुरक्षित हो गये हैं।
मैंने अपनी छत पर सूखे पेड़ों की टहनियों को मजबूती से लोहे के तार से बांधकर कृत्रिम पेड़ का रूप दे दिया हूँ । इस तरह के मैनें अपनी छत पर पाँच कृत्रिम पेड़ बना दिया हूँ ,जिस पर मेरी प्रिय गौरैयां अपनी फुर्सत की क्षणों में बातचीत और मस्ती करती रहतीं हैं ।
वैसे तो मैंने अपना पूरा छत , बारामदा , जीना , और छज्जा ही गौरैयों के लिए पूर्णरूप से समर्पित कर दिया हूँ । इसके अतिरिक्त छत पर एक बड़ा मेज टाइप का मार्बल का चबूतरे का भी निर्माण करा दिया हूँ ताकि गौरैयां उस पर आराम से बैठकर खाने के दाने (ठंड के मौसम में बाजरा और गर्मी में पका चावल ,खिचड़ी या रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े) आराम से खा सकें ।
गौरैयां अपने घोसले बहुत ही तंग जगह में बनाना पसंद करतीं हैं । अगर आप बहुत बड़ा घोसला बना देंगे तो वह उसमें अपना घोसला नहीं बनायेंगी । घोसला किसी भी चीज का , यथा-जूते के डब्बे का साइज गौरैयों के दो घोसलों के लिए सबसे उपयुक्त होता है ।
उससे बड़े डब्बे का भी आप उपयोग कर सकते हैं परन्तु शर्त एक ही है कि उसका पार्टीशन उसी मानक आकार में होना चाहिये । इसप्रकार बड़े डब्बे में घोसलों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी । अगर आप सोचते हैं कि एक बहुत बड़े डिब्बे को केवल दो भाग यह सोचकर कर दें कि इसमें दो गौरैयों के जोड़े आ जायेंगे ,तो आपको इसमें निराशा होगी क्योंकि गौरैयां इतने बड़े स्पेस में घोसले नहीं बनायेंगी । समाधान यह है कि उस बड़े डिब्बे में उसके सही आकार में कई घोसले बनाने होंगे ।
घोसले बनाने के बाद उसे सही स्थान पर मजबूती के साथ टांगने की बात आती है । आपको बता दें कि इस नाजुक ,अदनी सी चिड़िया के बहुत दुश्मन हैं , जैसे जंगल में हिरनों के बहुत सारे दुश्मन होते हैं वैसे ही गौरैयों के बहुत दुश्मन होते हैं । इनके दुश्मनों की संख्या बहुत लम्बी है जैसे-ब़ाज,बिल्ली, नेवला,छुछुंदर, सांप ,बड़े चूहे… यहाँ तक कि गिलहरी को जिसे हम आप बहुत भोली-भाली जीव की कल्पना करते हैं वह भी इसके घोसले पर कब्जा करके उसके नन्हें बच्चों को खा जाती है । मैनें अपनी आँखो से यह बिभत्स दृश्य देखा है ।
अतः घोसले टांगने का सबसे उपयुक्त स्थान काफी ऊँचा अवस्थित होना चाहिये ,जिससे जमीनी दुश्मन जैसे बिल्ली, साँप आदि से इसके बच्चे सुरक्षित रहें । घोसले टांगने का सबसे सुरक्षित जगह आपके बारामदे या किसी भी खुली जगह पर काफी ऊँचाई पर स्थित छज्जे के ठीक नीचे का भाग है । यहाँ घोसले टांगने का एक और फायदा है , वह वर्षा ,आंधी में घोसला गिरने और भीगने से बच जाता है ।
गर्मियों में गौरैयों को रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े , चावल पकाकर या उसमें थोड़ा हल्दी,नमक डाल दें (खिचड़ी) ये बहुत मन से खातीं हैं । ठंड के दिनों में बाजरा खूब चाव से खातीं हैं । गौरैयों के खाने की पसंद में मैंने देखा है कि मनुष्य जो खाता है (मांस को छोड़कर) ये सारी उन चीजों को खा लेतीं हैं जो हम लोग खाते हैं जैसे- (नमकीन,बिस्कुट, मूंगफली आदि-आदि) सभी कुछ मेरे यहां खा लेतीं हैं ।
साफ मिट्टी के छिछले बर्तन में स्वच्छ पानी रखना आवश्यक है ,प्रतिदिन उन बर्तनों की सफाई भी जरूरी है क्योंकि सफाई में देर करने पर उन बर्तनों में हरी-हरी काई जम जाती है , जिसमें गौरैयां पानी पीना या नहाना पसंद नहीं करतीं । मैंने लगभग पन्द्रह मिट्टी और प्लास्टिक के पात्र इनके पानी पीने और नहाने के लिए रख रखा है ।
अब तक मैंने अपने घर गौरैयों के लगभग पाँच सौ पचास घोसले बना चुका हूँ । बहुत से घोसले गौरैया प्रेमी लोगों को भी “उपहार” में भेंट कर चुका हूँ ।इस देश के बिभिन्न शहरों में जहाँ मेरे परिचित या रिश्तेदार रहते हैं , उनके यहाँ भी जब पहुँचता हूँ , तो वहाँ भी एक-दो घोसले बनाकर आया हूँ । बाद में पता चला है कि गौरैयां वहाँ भी अपना आशियाना बनाईं हैं और उसमें भी उनके नन्हें बच्चों की “किलकारिंयां” गुंजित हो रहीं हैं । जैसे – गोरखपुर, लखनऊ ,कलकत्ता , इलाहाबाद और जबलपुर में मैं अपने परिचितों के यहाँ नमूने के तौर पर घोसले बना आया था । बाद में सूचना आई कि गौरैयों ने उसमें अपना बसेरा बना लीं हैं और उनके छोटे-छोटे बच्चे भी हो गये हैं ।
अत्यन्त खुशी के साथ आप सभी को यह सूचना है कि इस वर्ष हमारे घर लगभग 156 गौरैयों के नन्हें-मुन्ने बच्चे पैदा हुए और वे वयस्क होकर इस दुनिया में जी रहे हैं ….। यही मेरे जीवन की सार्थकता है कि अगर मेरी वजह से मेरे किये जाने वाले इस छोटे से प्रयास की वजह से अगर पृथ्वी से विलुप्ती के कगार पर खड़ी इस प्रजाति कुछ संख्या बच जाँँय और कुछ बढ़ जायें …। हो सकता है भविष्य में इस जीव को बचाने का और वृहद कार्ययोजना बने .. ज्यादे हरियाली ,कम प्रदूषण ,इनके लिए प्राणघातक मोबाईल टावरों का कोई विकल्प आ जाय , ऐसा जनजागृति हो कि इस संसार के हरेक व्यक्ति अपने घर इनका बसेरा (घोसला) बनाने लगें तो ये नन्हीं-मुन्नी “प्यारी चिड़िया,”गौरैया” बच ही जाँय और अपनी पूर्व स्थिति में आ जाँय ….।
आपको जानकर आश्चर्यजनक खुशी होगी कि इकलौती गौरैयों की सेवा करने से मेरे छत पर आजकल लगभग तेइस (23) तरह की बिभिन्न चिड़ियाँ खाना खाने और पानी पीने या नहाने के लिए आने लगीं हैं (एक तरह से उनका भी परोक्ष रूप से संरक्षण हो रहा है)जैसे -बुलबुल ,छोटा बसंत ,हुदहुद,मैना ,पवई ,तोते ,फाख्ते , तेलिया मुनिया ,लाल सिर वाली गंदम, भुजंगा(कोतवाल) ,पतरिंगा , मधुचूषक, बबूना , महालत , कोयल ,टिटहरी , शरीफन (छोटाकिलकिला) , कठफोड़वा , महोका (कूका) , सात भाई(घोंघई) ,कालचिड़ी, दैयार (दैया) कबूतर …………आदि-आदि ।
आप सभी “यूट्यूब” पर भी मेरे द्वारा गौरैयों के बिभिन्न क्रियाकलाप फिल्माकर “गौरैया संरक्षण” या “Sparrow Conservation” पर देख सकते हैं और उससे प्रेरणा लेकर अपने घर भी इस विलुप्ती के कगार पर खड़ी प्यारी चिड़िया गौरैया के लिए कम से कम एक घोसला अपने घर उपर्युक्त लिखित सही जगह पर टांग सकते हैं , हो सकता है , हम सभी के सामूहिक प्रयास से यह नन्हाँ पक्षी इस धरती पर बच ही जांयें….।
मैं तो प्रतिदिन प्रातःकाल इनसे प्रार्थना करता हूँ कि “लौट आओ गौरैया “…… ,”लौट आओ गौरैया”…. हो सकता है….मेरा परिश्रम और प्रार्थना ……सार्थक हो….जैसा कि अभी तक हो रहा है……।