
ट्विंकल सिंह तोमर
•जीवन कोरस की तरह ही तो है। कोरस में किसी एक का भी सुर गलत हो जाए तो पूरा गाना बेसुरा हो जाता है।
•मोटर गाड़ी जब तक चलते हैं, सफर आसान होता है, खराब हो जाएं, तो मरे हाथी के बराबर वजन हो जाता है।
•आपदाओं के भंवर में गरीब-गुरबों की ही नाव पलटती है, सक्षम तो किनारे लग जाते हैं।
•सफलताओं से अर्जित यश अगर किसी के काम न आ सके तो व्यर्थ है।
•खामोशी से दो तरंगे निकलती हैं, इकरार की और इन्कार की। पक्ष में, विरोध में।
•समंदर में भटके जहाज के कैप्टन को जब आकाश में कोई पंछी उड़ता हुआ दिखता है तो बड़ी राहत मिलती है।
आप सोच रहे होंगे कि मैंने इतनी सारी कोट्स क्यों लिखी हैं। दरअसल किसी भी पुस्तक को पढ़ते समय मेरी उंगलियों की साथी होती है एक पेंसिल। एक पुस्तक में उसी पेंसिल द्वारा अंडरलाइन की गई कुछ पंक्तियाँ हैं ये।
सुनील सक्सेना जी का कहानी संग्रह ‘तुम कैसी हो’ प्राप्त हुआ। सुनील जी से मेरा परिचय तब हुआ था जब ममता कालिया जी के संपादन में प्रकाशित ‘वर्तमान साहित्य’ में मेरी एक कहानी आयी थी। उन्होंने इसे पढ़कर अपनी सराहना और शुभकामनाएं मुझे प्रेषित की थीं। उसके बाद इनसे जुड़ना और धीरे धीरे इन्हें जानना हुआ।
सुनील सक्सेना जी बहुत ही विनम्र, खामोशी से अपना काम करते रहने वाले, कलाकार हृदय, साहित्य प्रेमी व्यक्ति व लेखक हैं। इनका व्यक्तित्व बहुआयामी है, समय समय पर इनके हास्य-व्यंग्य, कहानियाँ, कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। व्यंग्य विधा में इन्हें ‘आचार्य चाणक्य सम्मान’ भी प्राप्त हो चुका है। इसके अतिरिक्त ये रंगमंच पर भी सक्रिय हैं, आकाशवाणी, दूरदर्शन, वेब सीरीज़ में अभिनय कर चुके हैं, एक फीचर फिल्म की स्क्रिप्ट में संवाद-लेखन में व्यस्त हैं।
कहानी संग्रह ‘तुम कैसी हो’ में पच्चीस छोटी-बड़ी कहानियाँ हैं, जो समय समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं। विशेष बात यह है कि किशोर वय में लिखी गयी कहानी से लेकर आज तक लिखी गयी कहानियाँ इस संकलन में सम्मिलित की गई हैं। संग्रह का शीर्षक इनकी एक कहानी ‘तुम कैसी हो’ पर ही आधारित है। इस कहानी में एक पति के द्वारा आजीवन पत्नी को ‘फ़ॉर ग्रांटेड’ लेने के बाद, जब पत्नी जीवन संध्या में दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के बाद अपनी सेवा सुचारूरूप से नहीं दे पाती है, तब उसे पत्नी की अहमियत समझ में आती है। उसे अनुभव होता है उसने तो आजीवन पत्नी से पूछा ही नहीं ‘तुम कैसी हो?’
सुनील सक्सेना जी की कहानियाँ सरल, सहज, बोधगम्य भाषा में गढ़ी गयीं हैं। वह स्वयं कहते हैं कि उन्होंने कहानी के कहन को जटिलता और दुरूहता से बचाने का भरकस ख्याल रखा है ताकि रचना पठनीय बनी रहे। भूमिका में उनके द्वारा कही गयी एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी- ‘जीवन कभी भी एल्गोरिथ्म के अनुसार नहीं चलता है।’
सुनील सक्सेना जी की कहानियों एक विशेष बात जिसने मुझे प्रभावित किया वह है उनके कैनवस का विस्तृत होना। उनकी कहानियों के विषय में ताजगी और नयापन है। दूसरी बात शासकीय सेवा से रिटायर होने के बाद परिपक्व उम्र में भी उनकी समाज में घट रही सभी घटनाओं और बदलाव पर उनकी पैनी दृष्टि है। वे ‘मिलेनियम जेन’ से भी परिचित हैं, आज की पीढ़ी के कार्य करने के तौर तरीके के भी महीन जानकार हैं।
इस संग्रह की सबसे सुंदर कहानी मुझे ‘आठ सिक्के’ लगी जो कथादेश लघुकथा प्रतियोगिता में विजयी रह चुकी है। मेरे अनुसार इस संग्रह का शीर्षक यही होना चाहिए था। इसके अतिरिक्त ‘खंडित व्यक्तित्व’ ने भी बहुत प्रभावित किया। ‘तुम कैसी हो’ ‘चोरी का गमला’ ‘दरार पर टंगा फ़ोटो’ ‘चिंटू का बर्थडे’ ‘डांस बार’ ‘एक अंतहीन यात्रा’ कहानियाँ भी अच्छी लगीं। इसके अतिरिक्त अन्य कहानियाँ भी पठनीय हैं, समाज की कई घटनाओं को कवर करती हैं, उन पर दृष्टि डालने को मजबूर करती हैं।
न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित इस संग्रह की काग़ज़ क्वालिटी बहुत ही उम्दा है, इसके साथ ही फ़ॉन्ट, छपाई भी उत्कृष्ट स्तर की है। सालों-साल सफ़ेद बने रह सकने वाले पृष्ठ हैं। बस कहीं कहीं वर्तनी में कुछ त्रुटियाँ हैं, जिन्हें अनदेखा किया जा सकता है।
सुनील सक्सेना जी को अभिनय करते मैंने देखा नहीं, पर देखने की इच्छा है। इसी प्रकार वे सक्रिय रहें, ऊर्जावान बने रहें, उनके जगमग भविष्य की मैं कामना करती हूँ।
कहानी संग्रह – तुम कैसी हो
लेखक – सुनील सक्सेना
प्रकाशक – न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन
मूल्य -रु 225/-