वक्फ संशोधन पर कितना भ्रम, कितना सच?

How much confusion and how much truth on Wakf amendment?

सुरेश हिंदुस्तानी

आज देश में राजनीति के मायने परिवर्तित होते हुए दिखाई दे रहे हैं। देश का प्रत्येक राजनीतिक दल अपना राजनीतिक प्रभुत्व बनाए रखने के लिए ही राजनीति कर रहा है। ऐसे में यह भी स्पष्ट नहीं हो पाता है कि कौन सही है और कौन गलत। इसका कारण यही है देश की जनता के समक्ष यह राजनीतिक दल ऐसा वातावरण बना देते हैं, जिससे तस्वीर का वास्तविक रूप दिखाई ही नहीं देता। अभी वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से जो तीर चलाए गए, उससे किसको फायदा या नुकसान होगा, यह हम नहीं कह सकते, लेकिन सत्ता पक्ष ने इस कदम को गरीब मुसलमानों के लिए हितकर बताया है, वहीं तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों ने वक्फ संशोधन विधेयक को मुस्लिम विरोधी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जबकि यह विधेयक निश्चित रूप से यही दर्शाता है कि अब वक्फ बोर्ड किसी भी ज़मीन पर एकदम यह दावा नहीं कर सकेगा कि यह वक्फ की संपत्ति है। उल्लेखनीय है कि अब तक देश में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिन पर वक्फ ने अपना दावा किया है, जबकि वह ज़मीन या तो सरकारी है या फिर किसी और की। चूँकि वक्फ द्वारा दावा करने के बाद उसकी जांच भी वक्फ बोर्ड ही करता था, तब उसकी न्याय व्यवस्था पर सवाल भी उठ रहे थे। वास्तव में इन्हीं सवालों का जवाब इस विधेयक में है। यह विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद अब कानून का रूप लेगा। ज़ब यह कानून बन जाएगा, तब इसका पालन सभी को करना चाहिए।

हम जानते होंगे कि देश में वक्फ के पास कई संपत्तियां ऐसी भी हैं, जिन पर सरकार या व्यक्तियों द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई हैं, लेकिन सवाल यह है कि वक्फ को मिले असीमित अधिकार के कारण इस पर कोई सवाल खड़े नहीं कर सकता है। हालांकि कई मामलों में कानूनी प्रक्रिया चल रही है। अकेले लखनऊ में ही कई ऐतिहासिक भवनों के बारे में वक्फ का दावा है कि यह इमारत वक्फ की है। ऐसे दावे गलत को सही ठहराने का ही कदम माना जा सकता है। हालांकि हम यह भी जानते होंगे कि देश के लिए नासूर बन चुकी धारा 370 के हटाने को लेकर भी कई राजनीतिक दलों और मुस्लिम नेताओं ने इसे इस्लाम विरोधी बताने में किसी प्रकार का परहेज नहीं किया। जबकि जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद जो बदलाव आया है, उसका मुसलमान भी साथ दे रहे हैं। उनके जीवन में व्यापक बदलाव आया है। हमें याद होगा कि ज़ब जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दरजा मिला था, तब आतंकियों के इशारे पर युवाओं को भ्रमित करने का खेल खेला गया। इनकी सक्रियता के कारण काश्मीर का व्यापार पूरी तरह से ठप रहा। आज सब कुछ सामान्य है। इसलिए सब बातों को गलत ठहराने की राजनीति अब बंद होना चाहिए। क्योंकि आशंका हमेशा सही नहीं होती। उसकी सही तस्वीर आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

वक्फ बोर्ड की स्थापना देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद नहीं, बल्कि इसको सत्ता प्राप्त करने के लिए वक्फ अधिनियम 1954 के तहत 1964 में स्थापित किया गया। 1995 में वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार दिए गए। यही असीमित अधिकार मुसलमानों के बीच अमीर और गरीब की खाई पैदा करने वाला था। वर्तमान केंद्र सरकार ने इसी अधिकार में बदलाव किया है। हम यह जानते ही होंगे कि इन्हीं असीमित अधिकार के चलते ही वक्फ बोर्ड ने देश की कई पुरातात्विक संपत्ति पर वक्फ के होने का दावा किया। ख़ास बात यह है कि इस दावे के प्रमाण देने की आवश्यकता वक्फ बोर्ड की नहीं थी, जिसकी ज़मीन है, वही इसका प्रमाण प्रस्तुत करेगा। यही कारण है कि देश में कई पुराने भवन ऐसे भी हैं, जिनके कागजी प्रमाण नहीं हैं, ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय वक्फ के दावे को सही ठहराने वाला ही होता था। वर्तमान सरकार ने इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए ही कानून बनाया है। इसमें गलत क्या है? यह कदम न तो इस्लाम के विरोध में है और न ही वक्फ की ज़मीन को हथियाने का माध्यम है।

ज़ब यह गलत नहीं है तो फिर क्यों उकसावे की राजनीति की जा रही है। यह समझ से परे है। वक्फ के नए संशोधन का जिस प्रकार से विरोध हो रहा है, उसके पीछे मात्र राजनीति ही है, इसके अलावा कुछ नहीं। कुछ राजनीतिक दल मुसलमानों को केवल वोट बैंक की दृष्टि से देखता है, इसी कारण उनकी यह राजनीतिक मजबूरी बनती है कि उनको मुस्लिम वोट प्राप्त करने के लिए यह सब करना पड़ता है। दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि जो वक्फ बोर्ड का संचालन करते हैं, उनको वक्फ संपत्ति से करोड़ों का फायदा होता है। वह अपने सगे सम्बंधियों को इसके माध्यम से उपकृत करने की भरसक चेष्टा भी करते हैं। इतना ही नहीं मुस्लिम समाज के संपन्न व्यक्ति वक्फ के नाम पर अपनी संपत्ति को बचाने की चेष्टा भी करते हैं। सुनने में यह भी आ रहा है कि मुस्लिम समाज के नेता ओवैसी की बहुत सारी संपत्ति वक्फ के नाम से संचालित की जा रही है। इसमें सच क्या है, यह सामने आना चाहिए। वक्फ का खेल अपनी संपत्ति बचाने के लिए किया जा रहा है। जबकि वक्फ बोर्ड का काम सारे मुसलमानों की भलाई करना है। जबकि असलियत में ऐसा नहीं हो रहा।

वक्फ विधेयक का विरोध देश के सारे मुसलमान कर रहे हैं, ऐसा नहीं है। कई स्थानों पर इसके समर्थन में भी स्वर उभरे हैं। विरोध केवल वे ही कर रहे हैं, जो मुस्लिम वर्ग के मठाधीश बने बैठे हैं। वे ही समाज को गुमराह कर रहे हैं। मुसलमान समाज राजनीति का शिकार होता रहा है। वर्तमान में भी उसके साथ वैसा ही खेल खेला जा रहा है, जैसा हमेशा राजनीतिक दलों ने खेला था। आज की स्थिति अलग है, वास्तव में वर्तमान संशोधन गरीब मुसलमानों के हित में है। इसलिए मुस्लिम समाज देश की मुख्य धारा में आकर आगे बढ़ने का प्रयास करें, इसी में मुसलमानों की भलाई है।