बंगाल में तड़पता लोकतंत्र

Democracy in agony in Bengal

एडवोकेट दीपक शंखधर

“बंगाल” शब्द सुनते ही ना जाने कितने बुद्धिजीवियों का नाम स्मरण हो आता है, जिन्होंने बिखरी हुई स्वतंत्रता की लड़ाई को एकीकृत किया और स्वतंत्रता में एक अहम भूमिका निभाई। पर पता नहीं क्या हुआ कि बंगाल कम्युनिस्ट विचारधारा का शिकार होता चला गया और शायद अपनी मूल शक्ति “ज्ञान” से दूर होता चला गया।

बंगाल केवल एक राज्य और एक देश नहीं है बल्कि भारत का आयाम है, जिसके बिना भारत अधूरा है।बंगाल सुभाष चंद्र बोस, बंकिम चंद्र चटर्जी, रविन्द्रनाथ टैगोर, राम कृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद, राजा राम मोहन राय जैसी महान विभूतियों के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता, सामाजिक जागरण, राष्ट्र गान, राष्ट्र गीत, आजाद हिंद फौज और ना जाने कितनी अनगिनत उपलब्धियां समेटे हुए है।

बंगाल ने विभिन्न संस्कारों को स्वयं में स्थान दिया और बंगाल सबकी पहचान बना। ऐसे सबको स्वयं में स्थान देने वाला बंगाल आज इतना असहिष्णु कैसे हो गया कि वहां नृशंस हत्याएं, बलात्कार, लूटपाट, आगजनी जैसे अपराधिक कार्यों को लोक स्वीकार्यता मिल रही है। बंगाल लोकतांत्रिक रूप से ऐसी सरकार को अनवरत स्वीकार्यता दे रहा है जो अभिमानी है, सत्ता उन्मुखी है। लोकतंत्र में किसी व्यक्ति का महत्वकांक्षी और सत्ता उन्मुख होना लोकतांत्रिक व्यवस्था को विकृत करने जैसा है क्योंकि यहां लोक स्वीकार्यता से सब कुछ संभव है। भारत में लोक द्वारा स्वीकृत विधि स्थापित निकाय तो स्वीकार्य है पर व्यक्तिवादी विचार यहां पैर पसारे ये संभव है। क्योंकि ये बौद्धिक सम्पदा युक्त धरती हैं। ये दुनिया को शून्य देकर गिनती, वर्ण देकर भाषा और वेद देकर देव संस्कार देने वाली धरती है।

आज लोक स्वीकार्यता ऐसे हाथों में हैं जो हाथ शक्ति पूजा करने वालों को कुछ देना चाहते हैं, बंगाल की मूल संस्कृति और सभ्यता को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के समक्ष समर्पित कर देना चाहते हैं। राजनैतिक तुष्टिकरण हेतु बंगाल के बौद्धिक कौशल की बलि चढ़ा देना चाहते हैं।

लोकतंत्र में ऐसी सरकारें अभिशाप हैं जो अपराध को काबू नहीं कर सकतीं हैं। राजशाही के समापन और समाजवाद के उद्भव का मूल कारण असमानता ही है। आज बंगाल में कष्टप्रद स्थिति है। लोकतंत्र का फैसला स्वीकार नहीं है या फिर यूं कहें “कोई और प्रभावशाली” स्वीकार नहीं है। ख़ैर! कारण चाहे जो हो पर वर्तमान स्थितियों में केंद्र सरकार को चाहिए कि बंगाल की कमान स्वयं संभाल कर बंगाल को सही दिशा में ले जाने का काम करे वरना सत्ता के प्रति ममता की ममता से बंगाल खतरे में आ जाएगा। पूतना यदि गलत नियत से आती है तो कृष्ण को उसका वध करना ही पड़ता है।