डॉ. गनी राजेंद्र विजय, जैन मुनि: आदिवासी समाज के मसीहा, एक आध्यात्मिक नेता और सामाजिक सुधारक

Dr. Ghani Rajendra Vijay, Jain Muni: Messiah of the tribal society, a spiritual leader and social reformer

निलेश शुक्ला

गुजरात के छोटा उदेपुर जिले के हरे-भरे पहाड़ों और ग्रामीण बस्तियों के बीच, एक ऐसी आशा की किरण है जो आदिवासी समाज के जीवन को रोशन कर रही है। बलद गाँव में एक आदिवासी परिवार में जन्मे डॉ. गनी राजेंद्र विजय, जिन्हें अब जैन मुनि के रूप में जाना जाता है, एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और सामाजिक सुधारक के रूप में उभरे हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया है। मात्र 11 वर्ष की आयु में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की थी और पिछले 30 वर्षों से वे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और नशामुक्त जीवन जैसे क्षेत्रों में कार्य करते हुए आदिवासी समाज को उन्नत करने के लिए सतत प्रयासरत हैं।

दृष्टिवान नेतृत्वकर्ता की पहल
आज जैन मुनि, गुजरात के एक सुदूर गाँव कवाट में स्किल यूनिवर्सिटी और फूड प्रोसेसिंग पार्क की स्थापना कर स्थायी परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इन पहलों का उद्देश्य आदिवासी युवाओं की कौशल क्षमताओं को विकसित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। जहां सरकार और राजनेता सालों से आदिवासियों के लिए कई वादे करते आए हैं, वहीं जैन मुनि का यह प्रयास एक ठोस और व्यावहारिक समाधान के रूप में सामने आया है।

दृष्टि और क्रिया के धनी
जैन मुनि की यात्रा एक सुदूर गाँव के सामान्य बालक से लेकर वैश्विक आध्यात्मिक नेता बनने तक की है। आदिवासी समाज से आने के कारण वे उसकी पीड़ा को गहराई से समझते हैं। बलद गाँव के साधारण परिवेश में पले-बढ़े, उन्होंने देखा कि कैसे अशिक्षा, बेरोजगारी, नशा और बुनियादी सेवाओं की कमी आदिवासियों के जीवन को प्रभावित करती है। इन समस्याओं को जड़ से मिटाने का संकल्प लेकर उन्होंने समाज की सेवा का मार्ग अपनाया।

पिछले तीन दशकों में उन्होंने छोटा उदेपुर और उसके आस-पास के क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार और नशामुक्ति के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं। उनके कार्यों ने हजारों आदिवासी परिवारों को गरीबी और अज्ञानता के चक्र से बाहर निकलने की दिशा दी है।

उनकी लोकप्रियता सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं है, बल्कि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों तक फैली हुई है। आत्मनिर्भरता, शिक्षा और एकता का उनका संदेश सभी वर्गों में समान रूप से प्रभावशाली रहा है।

आदिवासी समाज की चुनौतियाँ
भारत का आदिवासी समाज दशकों से अनेक समस्याओं से जूझता रहा है। अशिक्षा, हिंसा, नशाखोरी, अंधविश्वास, पुरानी कुरीतियाँ और आर्थिक अवसरों की कमी जैसी समस्याएँ आज भी इन समाजों में व्याप्त हैं। सरकारों द्वारा समय-समय पर अनेक वादे किए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव बहुत कम देखने को मिला है।

जैन मुनि ने इन समस्याओं को बहुत पहले पहचान लिया और स्वयं आदिवासी समाज के बीच रहकर उनकी समस्याओं को समझा। उन्होंने केवल दूर से सुझाव नहीं दिए, बल्कि समाज का हिस्सा बनकर उसमें बदलाव लाने की ठानी।

एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूल की स्थापना
आदिवासी समाज के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूल (EMRS) की स्थापना है, जो कवाट गाँव में स्थित है। इस स्कूल का उद्देश्य आदिवासी बच्चों को गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करना है। यह स्कूल आज उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक बन गया है।

हालांकि स्कूल एक दूरस्थ क्षेत्र में स्थित है, फिर भी यहाँ अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है जिससे छात्र आधुनिक दुनिया की प्रतिस्पर्धा में पीछे न रहें। आश्चर्य की बात यह है कि यह स्कूल छात्रों से किसी भी प्रकार की फीस नहीं लेता। शिक्षा, भोजन और आवास सब कुछ मुफ्त उपलब्ध कराया जाता है। इससे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को वह शिक्षा मिल पाई जो उनके लिए कभी सपना थी।

इस स्कूल की आधारभूत संरचना उत्कृष्ट है और बच्चों का उत्साह स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है। कई छात्र इस स्कूल से पढ़कर डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य पेशेवर बन चुके हैं। यह साबित करता है कि सही अवसर मिलने पर आदिवासी बच्चे किसी भी क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकते हैं।

कौशल विकास और रोजगार की दिशा में अग्रसर
शिक्षा के साथ-साथ जैन मुनि ने आदिवासी युवाओं के लिए कौशल विकास और रोजगार को भी प्राथमिकता दी है। वे वर्षों से कवाट गाँव में एक स्किल यूनिवर्सिटी की स्थापना की मांग कर रहे हैं, जहाँ आदिवासी युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जा सकेगा ताकि वे स्थायी रोजगार प्राप्त कर सकें।

इसके अलावा, वे एक फूड प्रोसेसिंग पार्क की भी योजना बना रहे हैं। यह पहल स्थानीय किसानों और आदिवासी लोगों को उनके कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और बिक्री के ज़रिए बेहतर आमदनी दिलाने में सहायक होगी। साथ ही, यह लघु उद्योगों को बढ़ावा देने और आदिवासी समुदाय को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

पर्यावरण और जल संरक्षण के लिए समर्पण
जैन मुनि की सेवा शिक्षा और रोजगार तक सीमित नहीं है। वे पर्यावरण संरक्षण के भी प्रबल समर्थक हैं। जलवायु परिवर्तन और जल संकट को देखते हुए उन्होंने “हर बूँद बचाओ” का नारा दिया है। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि उनकी गहन चिंता का प्रतीक है।


वे जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, वनों की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, वे गौसंरक्षण के लिए भी सक्रिय हैं और गौशालाओं की स्थापना का समर्थन करते हैं, जिससे गायों की रक्षा की जा सके।

आध्यात्मिक नेता और सामाजिक सुधारक
डॉ. गनी राजेंद्र जैन मुनि का कार्य केवल आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है। उनके अनुयायियों के लिए वे एक पूज्य गुरु हैं, लेकिन वे एक प्रभावशाली सामाजिक सुधारक भी हैं। उनके उपदेश आत्मनिर्भरता, अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारी पर आधारित हैं। वे मानते हैं कि शिक्षा, कौशल विकास और आत्मनिर्भरता के माध्यम से ही आदिवासी समाज का समग्र उत्थान संभव है।

गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और पंजाब में उनका प्रभाव व्यापक है। उनके अनुयायी उन्हें केवल आध्यात्मिक गुरु नहीं बल्कि आशा की एक जीवंत मिसाल और आदिवासी समाज के मसीहा के रूप में देखते हैं।

नव निर्माण की ओर अग्रसर
डॉ. गनी राजेंद्र विजय जैन मुनि का जीवन और कार्य इस बात का प्रमाण हैं कि एक व्यक्ति भी सामाजिक बदलाव ला सकता है। गुजरात से लेकर अन्य राज्यों तक, उनके कार्यों ने हजारों परिवारों की किस्मत बदली है। शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में उनका योगदान अत्यंत प्रभावशाली है।

हालाँकि उनका कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है। स्किल यूनिवर्सिटी और फूड प्रोसेसिंग पार्क की स्थापना के साथ वे आदिवासी युवाओं के लिए उज्ज्वल भविष्य की नींव रख रहे हैं। उनका लक्ष्य स्पष्ट है — आदिवासी समाज को गरीबी और अज्ञानता की बेड़ियों से मुक्त कर एक स्वावलंबी और सशक्त भविष्य की ओर ले जाना।

आदिवासी समाज के लिए जैन मुनि केवल एक आध्यात्मिक नेता नहीं, बल्कि एक सच्चे मसीहा हैं। उनकी दूरदृष्टि, समर्पण और निस्वार्थ सेवा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी और समाज को एक बेहतर कल की ओर ले जाती रहेगी।