क़ुर्बानियाँ रंग लाएगी…!

Sacrifices will bear fruit…!

वो चिंगारी अब ज्वाला बनकर छाएगी,
ये पहलगाम की क़ुर्बानियाँ रंग लाएगी।
कायरों ने फिर एक बार लाशें बिछा दी,
माँगों का सिंदूर उन काफिरों उजाड़ दी।
अब धरती माँ फिर से रक्तरंजित हुई है,
निर्दोषों पे कहर से गुस्से में लाल हुई है।

वो चिंगारी अब ज्वाला बनकर छाएगी,
ये पहलगाम की क़ुर्बानियाँ रंग लाएगी।
क्यों? सैलानियों की बद्दुआएं लेके गए,
अपना जीवन प्रमाण-पत्र छोड़कर गए।
जिसका अब कोई उपयोग हीं न होगा,
ये देश खंगालेगा रूह को काँपना होगा।

वो चिंगारी अब ज्वाला बनकर छाएगी,
ये पहलगाम की क़ुर्बानियाँ रंग लाएगी।
अब कैसा हश्र होगा? सोच ना पाओगे,
भाग-भागकर थककर चूर हो जाओगे।
आँकाओं की मांद भी इतनी बड़ी नहीं,
औकात तिनके के सामने भी खरी नहीं।

संजय एम तराणेकर