सिंधू जल संधि तोड़ना भारत का बड़ा कदम मगर आगे क्या…

Breaking the Indus Water Treaty is a big step by India but what next?

गोविन्द ठाकुर

“..फिलहाल भारत सरकार ने जो कदम उठायें हैं वह पूरी तरह से सधी हुई है.. पाकिस्तान हो सकता है सिंधू जल संधी को लेकर विश्व अदालत में जाये.. मगर भारत के लिए भी एक समस्या है कि रोके गये पानी को कैसे संरक्षित करे.. फिलहाल भारत के पास इसके लिए ना कोई डैम है और ना ही कोई संरक्षण की व्यवस्था… तो पानी के लिए पाकिस्तान तुरंत बेहाल हो जायेगा ऐसा नहीं है…मगर जो कदम उठाये गये हैं वह देर से ही सही मगर दुरुस्त है… “

भारत सरकार ने आखिरकार पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि तोड़ दी है। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान इस पर अंतरराष्ट्रीय पंचाट में जा सकता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा क्योंकि इस जल संधि में दोनों पक्षों के बाहर होने का प्रावधान है। यानी इसमें एक्जिट क्लॉज है, जिसका इस्तेमाल करके भारत बाहर हुआ है इसलिए कोई अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप इसमें नहीं होगा। लेकिन इसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर भारत को इतना समय क्यों लगा पाकिस्तान से इस संधि को खत्म करने में? पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध कितने तनावपूर्ण हैं यह किसी से छिपा नहीं है।

भारत ने खेल संबंध तोड़ दिए हैं। कारोबारी संबंध लगभग समाप्त हैं। सिनेमा, संगीत आदि के जरिए, जो सांस्कृतिक संबंध थे वह भी खत्म है। दोनों देशों में कूटनीतिक संबंध न्यूनतम स्तर पर है और पाकिस्तान के साथ संबंधों की वजह से ही सार्क जैसी संस्था का अस्तित्व ही समाप्त हो गया दिखता है।

सिंधु जल संधि और भारत की रणनीति
इसके बावजूद भारत ने सिंधु जल संधि को जारी रखा था। कई लड़ाइयों और अनगिनत आतंकी हमलों का इस पर कोई असर नहीं हुआ। यहां तक कि 2016 में उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान से नाराजगी जताते हुए सिंधु जल संधि का हवाला दिया था और कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता है।

उनके कहने का मतलब था कि अगर पाकिस्तान इसी तरह भारतीयों का खून बहाता रहा तो पानी बहना बंद करेंगे। लेकिन क्या हुआ? उरी के बाद पिछले आठ साल में अनेक हमले हुए। पुलवामा जैसा बड़ा कांड हुआ, जिसमें सीआरपीएफ के 40 से ज्यादा बहादुर जवान शहीद हुए। फिर भी सिंधु जल संधि जारी रही। खून और पानी साथ नहीं बहने के मोदी के बयान के आठ साल के बाद अब जाकर भारत ने यह संधि समाप्त की है।

लेकिन सवाल है कि सिंधु जल संधि समाप्त करने से क्या हासिल होगा? सबको ऐसा लग रहा था कि भारत ने इधर यह संधि तोड़ी और उधर पाकिस्तान में पानी के लिए त्राहिमाम शुरू हो जाएगा। ऐसा नहीं होगा। सिंधु जल संधि के तहत सिंधु, झेलम, चिनाब जैसी नदियों के पानी का बहाव का करार है। लेकिन मुश्किल यह है कि पाकिस्तान इन नदियों की डाउनस्ट्रीम में है। यानी पानी बह कर उसकी ओर जाएगा। चूंकि भारत ने पहले जल संधि समाप्त नहीं की इसलिए भारत के पास ऐसा कोई बुनियादी ढांचा नहीं है, जिससे इस पानी को रोका जा सके और भारत में इस्तेमाल किया जा सके।

किशनगंगा सहित दो पनबिजली परियोजनाएं हैं लेकिन भारत के पास जल संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। कोई डैम ऐसा नहीं है, जिसमें पानी रोका जा सके। इसलिए अभी तत्काल इस संधि को समाप्त करने का कोई असर पाकिस्तान पर नहीं होगा। फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह देर से उठाया गया बिल्कुल दुरुस्त कदम है। अब भारत को जल्दी से जल्दी कश्मीर में जल संरक्षण के उपाय करने चाहिए ताकि इन नदियों के पानी का इस्तेमाल भारत के अपने लोगों के लिए किया जा सके। जिस तरह से चीन पानी को हथियार बना रहा है, भारत को वैसा तो नहीं करना चाहिए फिर भी इस जल संधि से निकलने का कोई अर्थ तभी है, जब पानी के इस्तेमाल की व्यवस्था बने।