परशुराम जी की उपस्थिति आज भी प्रासंगिक है

The presence of Parshuram ji is relevant even today

आज के दौर में परशुराम की शिक्षा और आदर्श हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके संघर्ष, न्याय के प्रति समर्पण और अत्याचार के खिलाफ उठाए गए कदम आज भी प्रासंगिक हैं। जब समाज में भ्रष्टाचार, अन्याय और असमानता बढ़ती जा रही है, परशुराम के फरसे की धार की आवश्यकता महसूस होती है। उनके जीवन से यह सिखने की जरूरत है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए। आज हमे अपने भीतर के परशुराम को जगाकर, समाज में फैले अंधकार और अन्याय से मुकाबला करना होगा।

  • प्रियंका सौरभ

आज जब हम भगवान परशुराम की जयंती मना रहे हैं, तब हमें यह समझना होगा कि उनका जीवन और उनका संदेश सिर्फ इतिहास की पंक्तियों में कैद नहीं है। उनका चरित्र, उनके आदर्श और उनके संघर्षों की गूंज आज भी हमारे समाज में मौजूद है। परशुराम ने केवल अन्याय के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ा, बल्कि उन्होंने यह भी सिखाया कि धर्म, सच्चाई और मानवता के लिए खड़ा होना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

आज के समाज में न्याय, सत्य, और धर्म की तलाश एक ऐसे संघर्ष की तरह है जिसे मानो हमने खुद ही भूल दिया हो। हमें सही राह दिखाने वाला कोई नहीं है। क्या हमें सच में यह मान लेना चाहिए कि हमें बस चुप रहकर, सिर झुका कर, देखता रहना है? नहीं! हम उठेंगे। हम आवाज़ उठाएंगे। हम कोई और नहीं, हम वही लोग हैं जिन्हें हमारे ही समाज ने भुला दिया है। हम युवा हैं, हम जागरूक हैं, हम जानते हैं कि न्याय सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि हर गली, हर सड़क पर होना चाहिए।

हमने देखा है कि इस कलियुग में सत्ता के खेल, भ्रष्टाचार के जाल, और राजनीति के चक्रव्यूह ने समाज को बुरी तरह जकड़ लिया है। जहाँ सत्य को कुचला जाता है, वहाँ अन्याय फलता-फूलता है। हर कदम पर हमें धोखा मिल रहा है, हर मोड़ पर हम ठगे जा रहे हैं। ऐसे में, यह पुकार है: हे परशुराम, अब कब तक तुम हमारे बीच नहीं आओगे? कब तक हम अन्याय और अत्याचार का सामना करते रहेंगे? कब तक हमें झूठ के इस जाल में उलझने दिया जाएगा?

आज हर गली, हर मोहल्ले में, हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर, बुराई और कुकृत्य की लहरें उठ रही हैं। पेड न्यूज़ से लेकर सोशल मीडिया ट्रेंड्स तक, हर जगह झूठ का साम्राज्य है। लेकिन हम चुप नहीं रह सकते। हम एक नई आवाज़ उठाएंगे, एक आवाज़ जो कुत्सित सिस्टम को चुनौती देगी। हम तुमसे बस यही सवाल करते हैं, हे परशुराम, क्या तुम फिर से धरती पर धर्म की स्थापना करने के लिए तैयार हो?

क्या हम यह समझ लें कि सच्चाई को कभी नहीं मिलेगा? क्या हमें अपने बच्चों को यह सिखाना होगा कि दुनिया केवल चापलूसी, भ्रष्टाचार और छल से चलती है? नहीं! हम यह नहीं मानते। हम जानते हैं कि अगर किसी में ताकत है तो वह तुम हो, परशुराम! तुम्हारा फरसा वही हथियार है जो हमे आज चाहिए। वह फरसा जो अत्याचार और दमन को रौंद कर हमें फिर से इंसानियत और सत्य का रास्ता दिखाए। क्या तुम अपना फरसा उठा कर फिर से इस दुनिया को एक मौका दोगे?

आज की तारीख में, यह कोई ढूंढी हुई कहानी नहीं, बल्कि यह हमारी हकीकत है। जब इस राष्ट्र में हर एक नागरिक सच्चाई की तलाश में है, जब न्यायालय के दरवाजों पर प्रतीक्षा का अंधकार फैला हुआ है, जब विधायिका और कार्यपालिका दोनों ही स्वार्थ में लिप्त हैं, तब कोई तो चाहिए जो यह सब खत्म कर सके। हम आशा करते हैं कि कोई परशुराम आएगा। पर हम यह भी जानते हैं कि यह परिवर्तन सिर्फ स्वर्गीय नहीं, बल्कि हमारे भीतर से ही आना चाहिए।

क्या तुम आओगे, परशुराम? हम तुम्हारे फरसे का इंतजार नहीं करेंगे, हम अब खुद को संगठित करेंगे। हम अपनी आवाज़ को बुलंद करेंगे। हम वह बदलाव लाएंगे, जो कभी तुम्हारे युग में हुआ था। आज एक नायक की जरूरत नहीं है, आज एक सामूहिक चेतना की जरूरत है। यह युवा पीढ़ी उठ खड़ी हो चुकी है, हमें सच्चाई और न्याय का अधिकार चाहिए, और हम इसे किसी कीमत पर छोड़ने वाले नहीं हैं। हम यह लड़ाई सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए लड़ेंगे जिसे न्याय से वंचित किया गया है। हम उस समाज के खिलाफ खड़े होंगे, जहाँ आत्म-सम्मान और मानवाधिकार सिर्फ शब्द बनकर रह गए हैं।

सच की राह पर हमें फिर से चलाओ। अंधेरे में फिर से वह दीप जलाओ, जो मानवता को रोशन कर सके। तुम्हारा फरसा हमारी उम्मीद है, और उस फरसे से हम समाज के हर झूठ को काट डालेंगे। हम अब चुप नहीं रहेंगे, हम आवाज़ उठाएंगे, हम धरती को फिर से सच्चाई से भर देंगे। यही वक्त है, यही जगह है, यही लड़ाई है—हमारे लिए और हमारे बच्चों के लिए।
परशुराम की जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक अवसर है जब हम अपने समाज को पुनः धर्म, सत्य और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। यह समय है जब हमें उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है।