बिना मुहूर्त निकलवाए कोई भी शुभ कार्य करने का दिन है अक्षय तृतीया

Akshaya Tritiya is the day to do any auspicious work without taking out the Muhurta

प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘अक्षय तृतीया’ पर्व मनाया जाता है, जो इस वर्ष 30 अप्रैल को मनाया जा रहा है। हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया को बहुत शुभ माना गया है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अक्षय तृतीया पर इस वर्ष कई शुभ योग बन रहे हैं।

योगेश कुमार गोयल

प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘अक्षय तृतीया’ पर्व मनाया जाता है, जो इस वर्ष 30 अप्रैल को मनाया जा रहा है। अक्षय तृतीया की शुरुआत 29 अप्रैल की शाम पांच बजकर 31 मिनट पर हो रही है, जो 30 अप्रैल की दोपहर दो बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए अक्षय तृतीया की पूजा और खरीदारी करना 30 अप्रैल को ही सबसे शुभ है। अक्षय तृतीया की पूजा के लिए 30 अप्रैल को प्रातः पांच बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक का समय बहुत शुभ है। मांगलिक कार्यों के लिए अक्षय तृतीया पर्व को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन स्वयंसिद्ध योग होते हैं और बिना मुहूर्त निकलवाए कोई भी शुभ कार्य आयोजित किया जा सकता है। यह पर्व आस्था, परंपरा और अध्यात्म का संगम है। सनातन धर्मानुसार, वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘अक्षय तृतीया’ या ‘आखा तीज’ कहते हैं।

पौराणिक शास्त्रानुसार, अक्षय तृतीया विवाह और अन्य शुभ कार्यों के लिए स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है। इस दिन किए गए शुभ कार्य, दान, उपवास और व्रत का अक्षय फल अर्थात संपूर्ण फल मिलता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन स्वयंसिद्ध योग होते हैं और इस दिन बिना मुहूर्त निकलवाए कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, इसीलिए लोग बिना पंचांग देखे अक्षय तृतीया के दिन विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यापार, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, घर, भूखंड या नए वाहन आदि की खरीदारी करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, इसी तृतीया तिथि को माता पार्वती ने अमोघ फल देने की सामर्थ्य का आशीर्वाद दिया था, जिसके प्रभाव से अक्षय तृतीया के दिन किया गया कोई भी कार्य निष्फल नहीं होता। पुराणों के अनुसार, इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान, दान, जप व स्वाध्याय करना शुभ फलदायी होता है।

भविष्यपुराण के अनुसार, अक्षय तृतीया को युगादि तिथि माना गया है, यानी इसी तिथि से सतयुग व त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु के तीन अवतारों, नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस वर्ष अक्षय तृतीया पर बहुत से शुभ योग बन रहे हैं। इन योग में लक्ष्मी पूजा करने से धन वृद्धि होती है। अक्षय तृतीया के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जो बहुत खास है। इसके अतिरिक्त, जो अन्य शुभ योग बनने वाले हैं, उनमें शोभन योग दोपहर 12 बजकर दो मिनट तक रहेगा। रवि योग शाम को चार बजकर 18 मिनट से शुरू होकर पूरी रात रहने वाला है। इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना गया है। अक्षय तृतीया तिथि संपूर्ण पापों का नाश करने वाली और समस्त सुख प्रदान करने वाली मानी गई है। विभिन्न शास्त्रों के अनुसार, इस दिन हवन, जप, दान, स्वाध्याय, तर्पण इत्यादि जो भी कर्म किए जाते हैं, वे सब अक्षय हो जाते हैं।

मान्यता है कि द्वापर युग इसी तिथि को समाप्त हुआ था, जबकि त्रेता, सतयुग और कलियुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ था, इसीलिए इसे ‘कृतयुगादि तृतीया’ भी कहा जाता है। भारत में कई स्थानों पर अक्षय तृतीया को ‘आखा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार, इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। इस तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती मानी गई हैं और इस दिन मां लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पृथ्वी पर देवताओं ने 24 रूपों में अवतार लिया था, जिनमें छठा अवतार भगवान परशुराम का था, जिनका जन्म अक्षय तृतीया के ही दिन हुआ था। ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य भी इसी दिन हुआ माना जाता है। भगवान विष्णु के चरणों से गंगा भी इसी दिन धरती पर अवतरित हुई थी। इस पर्व को लेकर लोक धारणा है कि इस तिथि को यदि चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल अच्छी होगी।
(लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)