
सुरेश हिंदुस्तानी
पाकिस्तान की ओर से भारत के पहलगांव में हुए आतंकी हमले के बाद आखिरकार युद्ध विराम हो गया है, लेकिन इस युद्ध विराम के बाद फिर से सवाल उठने लगे हैं कि क्या आतंक को संरक्षण देने वाले पाकिस्तान पर विश्वास किया जा सकता है। यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है, क्योंकि पूर्व में ऐसा कहने के बाद भी हर बार पाकिस्तान की ओर से कश्मीर में आतंकी घटनाएं की जाती रही हैं। पहलगांव की घटना में आतंकवादियों ने निर्दोष 26 हिन्दु पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद भारत की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान पस्त हो गया। पाकिस्तान सरकार की ओर से युद्ध विराम के बारे में कहा गया कि इस समय पाकिस्तान को बचाने की जरूरत है। इस कथन का बहुत ही स्पष्ट आशय यह भी निकाला जा सकता है कि अगर युद्ध जारी रहता तो पाकिस्तान नाम का देश इस धरती पर नहीं रहता। इसलिए पाकिस्तान ने अपने देश को बचाने के लिए ही यह रास्ता चुना। अमेरिका ने इस मामले में दखल देते हुए दोनों देशों के बीच सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की ओर से हमेशा यही कहा गया कि भारत आतंकवाद को समाप्त करने के लिए अपना अभियान चला रहा है। इस मामले में विश्व के अधिकांश देश भारत के साथ खड़े होते दिखाई दिए, वहीं पाकिस्तान अकेला हो गया था। इससे पाकिस्तान निराश हो गया। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी माना जा सकता है कि पाकिस्तान के ऊपर ग्रे सूची में आने का खतरा बढ़ता जा रहा था। एफएटीएफ की ओर से पाकिस्तान का ऐसी चेतावनी भी दे दी गई थी। अगर पाकिस्तान ग्रे सूची में आता तो उस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लग सकते थे, जो पाकिस्तान के हित में नहीं होते। युद्ध विराम का एक बड़ा यह भी हो सकता है, क्योंकि आर्थिक रूप से बदहाल हो चुके पाकिस्तान को अब कर्ज भी मिल सकता है। जिसकी उसे बहुत आवश्यकता है।
अब पाकिस्तान, भारत की जवाबी कार्यवाही से बच गया। लेकिन पाकिस्तान के अंदर ही अंदर जो लावा सुलग रहा है। पाकिस्तान की सरकार को उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है। भारत की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई के दौरान ब्लूचिस्तान ने अपनी आजादी की लड़ाई को जारी रखते हुए पाकिस्तान की सेना को अपना निशाना बनाया। यानी पाकिस्तान एक तरफ भारत से लड़ाई लड़ रहा था, वहीं दूसरी ओर उसे अपने ही देश में ब्लूचिस्तान की ओर से कड़ी चुनौती मिल रही थी। पाकिस्तान का आरोप था कि ब्लूचिस्तान को भारत भड़का रहा है। इसे इसलिए भी सच नहीं माना जा सकता, क्योंकि ब्लूचिस्तान ऐसी लड़ाई लम्बे समय से लड़ रहा है। अभी कुछ महीने पहले ही बीएलए के सैनिकों ने पाकिस्तान की ट्रेन को हाईजैक करके पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। अब यही कहा जा सकता है कि ब्लूचिस्तान शायद ही पाकिस्तान में रहे। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या पाकिस्तान विभाजन के रास्ते पर चल रहा है? क्योंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी ऐसी ही स्थिति दिखाई देती है। कई विशेषज्ञ यह दावा भी करते दिख रहे हैं कि पाकिस्तान चार टुकड़ों में विभाजित हो जाएगा। यह इसलिए भी कहा जा रहा है कि पाकिस्तान के अंदर यही स्थिति बन रही है।
वर्तमान में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहवाज शरीफ अपने ही देश की जनता के निशाने पर हैं। इसके अलावा पाकिस्तान की सेना और सेना के साथ कदम मिलाने वाले आतंकी संगठन सरकार के युद्ध विराम वाले निर्णय से नाखुश हैं। इसका परिणाम क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताने में समर्थ होगा। लेकिन यह पाकिस्तान की वास्तविकता है कि युद्ध जैसी स्थिति बनने के बाद सेना और आतंकियों ने सरकार के समक्ष गंभीर संकट पैदा किया है। यहां तक कि सेना ने सरकार को अपदस्थ करके खुद सत्ता का संचालन किया है। दूसरी बात यह भी है कि जंग के हालात पैदान करने के लिए पाकिस्तान की जनता सरकार और सेना प्रमुख को ही पूरी तरह से दोषी बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर ने पहलगांव की घटना से तीन दिन पूर्व कहा था कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ कभी नहीं रह सकते। इसके साथ ही यह भी कहा कि भारत का कश्मीर पाकिस्तान के गले की नस है। सेना प्रमुख का यह बयान मुसलमानों को भड़काने जैसा ही था। इसलिए पहलगांव की घटना को इसी बयान की प्रतिक्रिया स्वरूप माना जा रहा है।
पहलगांव की आतंकी घटना के बाद भारत की ओर से आपरेशन सिन्दूर चलाकर पाकिस्तान स्थिति आतंकी शिविरों को नष्ट करके पाकिस्तान के आक्रमण की योजना को असफल कर दिया। भारत की ओर की गई जवाबी कार्रवाई में सौ से ज्यादा आतंकी मारे गए। यह पाकिस्तान के लिए जबरदस्त आघात ही था, क्योंकि पाकिस्तान की सरकार और सेना इन्हीं आतंकियों की दम पर भारत को आंखें दिखा रहा था। इसके अलावा पाकिस्तान के हर आक्रमण को भारत ने असफल कर दिया। जिसके बाद पाकिस्तान बेदम सा होता चला गया। अब हालांकि युद्ध विराम हो गया है, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या पाकिस्तान पर विश्वास किया जा सकता है। विश्वास करना इसलिए भी कठिन सा लग रहा है, क्योंकि पाकिस्तान में जो आतंकी शिविर चल रहे हैं, उनमें केवल और केवल भारत के विरोध में नफरत का पाठ पढ़ाया जाता है। यह नफरती फौज भविष्य में भारत में आतंक फैलाने के लिए ही तैयार की जा रही है। पाकिस्तान अगर वास्तव में ही युद्ध विराम को लागू करना चाहता है तो उसे पाकिस्तान में चल रहे आतंकी शिविरों को समाप्त करना होगा। जब तक पाकिस्तान ऐसा नहीं करेगा। तब तक उस पर विश्वास करना कठिन ही है। खैर… कुछ भी हो, पाकिस्तान अंदर से तो टूट ही रहा है, अब युद्ध विराम के बाद वहां की सरकार, सेना और जनता अलग अलग राग अलाप रहे हैं। इसकी परिणति पाकिस्तान के लिए खतरनाक भी हो सकती है।
सुरेश हिंदुस्तानी, वरिष्ठ पत्रकार