नए सवेरे की आगोश में

In the wake of a new dawn

भूत की परछाइयों से कब तक यूं घबराओगे,
आने वाले सवेरे को कैसे फिर अपनाओगे।
छोड़ दो बीते पलों का बोझ मन की गठरी से,
वरना नए सपनों का आंगन कभी ना सजाओगे।

यादों की परतों में जो ठहर गए हैं पल,
उनमें बिखरी मुस्कानों से अब बाहर निकल।
हर आहट में नई उम्मीद की दस्तक है,
क्यों पुराने दरवाज़ों पर खामोश खड़े नतमस्तक है?

राहें बदलती हैं, मौसम भी साथ छोड़ते हैं,
दर्द के साये में कब तक यूं अकेले रोते हैं?
तुम्हारी हिम्मत की मशाल बुझी नहीं अब तक,
फिर क्यों अंधेरों से घबराकर कदमों को तोड़ते हैं?

आओ, मिटा दें वो लकीरें जो अतीत ने खींची थीं,
सपनों की तख्ती पर नई इबारतें लिखी थीं।
गुज़रे वक्त की राख से एक दीया तो जलाओ,
नए सवेरे की आगोश में खुद को फिर पाओ।

छोड़ दो शिकवे, छोड़ दो पुराने बहाने,
आंखों में बसा लो वो ख्वाब जो कल नहीं माने।
जीवन की ये बेमोल घड़ियां यूं ना गंवाओ,
आने वाले कल की बाहों में खुद को फिर समाओ।

तोड़ दो जंजीरें जो मन की गहराइयों में जकड़ी हैं,
वो आवाज़ें सुनो जो आसमान से उभरती हैं।
भूत की परछाइयों से बाहर आओ अब,
देखो, तुम्हारे हिस्से की सुबह अब खिलती है।

  • प्रियंका सौरभ