
कहाँ हैं वो जो कहते थे, उजाले बाँट देंगे,
यहाँ तो चीखते सपने, अंधेरे काट देंगे।
किताबें हैं मगर उर्दू-संस्कृत की शकल में,
गणित-बिजली के बच्चों को, कबाड़े बाँट देंगे।
जो स्कूलों को बँधक रख चले हैं राजधानी,
वही जाकर वहाँ बैठें, तो हम भी थाप देंगे।
कहाँ हैं वो गुरूजन जो किसी दिन तो पढ़ाते,
यहाँ कुर्सी नहीं खाली, वो सैलरी चाट देंगे।
ये फेल हुए हैं बच्चे या सिस्टम बेनकाब है,
जो उत्तर माँगते हैं अब, उन्हें ही डाँट देंगे।
अगर खामोश रह गए तो अगली बारी अपनी है,
ये साजिश वाले सब हमको, मज़हबी ठाठ देंगे।
- डॉ सत्यवान सौरभ