
सुप्रिया सत्यार्थी
युवा लेखक नृप की लेखनी संवेदना की तहों को इस कुशलता से छूती है कि पाठक भावनाओं के अदृश्य प्रवाह में बहता चला जाता है। उनकी पाँचवीं कृति “ज़िंदगी का उजास” न केवल कहानियों का संग्रह है, बल्कि यह अनुभवों, विचारों और आत्मचिंतन की गहराइयों में उतरने का आमंत्रण भी है। प्रत्येक कहानी उनके सजग सामाजिक दृष्टिकोण, मानवीय संवेदनाओं की समझ और साहित्यिक परिपक्वता का प्रमाण है।
“ज़िंदगी का उजास” एक अत्यंत संवेदनशील कहानी-संग्रह है, जिसमें उन्होंने समाज, मानसिक स्वास्थ्य, आधुनिकता और जीवन के विविध पहलुओं को अत्यंत सूक्ष्मता से उजागर किया है। यह पुस्तक न केवल पाठकों को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती है, बल्कि समाज को एक दर्पण दिखाने का कार्य भी करती है। “ज़िंदगी का उजास” में कुल 14 कहानियाँ हैं, और प्रत्येक कहानी जीवन के किसी न किसी पहलू पर रोशनी डालती है। हर कथा अपने भीतर एक गहरा संदेश समेटे हुए है, जो सोचने और अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती है।
पुस्तक की शीर्षक कहानी’ ज़िंदगी का उजास’ आत्म-स्वीकृति की महत्ता पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि व्यक्ति को अपनी कमियों को स्वीकार करना चाहिए, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। जब तक हम अपनी समस्या को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक हम उसका समाधान नहीं खोज पाएंगे। साथ ही, यह भी दर्शाया गया है कि बुरे समय में हमारा परिवार और मित्र हमारी सबसे बड़ी ताकत होते हैं। यदि वे हमारे साथ हों, तो कठिन से कठिन समय भी आसान हो सकता है,बस आवश्यकता है पहला कदम बढ़ाने की।
दूसरी कहानी ‘त्याग का दीपक’ इस बात को उजागर करती है कि यदि मन में दृढ़ निश्चय हो और आत्मानुशासन बना रहे, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। कठिनाइयों का रोना रोने से समस्याएँ हल नहीं होतीं, बल्कि समाधान की दिशा में कार्य करना आवश्यक होता है। सच्ची निष्ठा और कर्म के प्रति ईमानदारी ही व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाती है। ‘माटी की याद’ कहानी आधुनिकता की अंधी दौड़ में खोते जा रहे मानवीय मूल्यों और जड़ों की ओर ध्यान आकर्षित करती है। इंसान चाहे जितनी भी प्रगति कर ले, उसे अपने संस्कारों, परंपराओं और बड़ों के सम्मान को नहीं भूलना चाहिए। आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में सुकून के दो पल अपने अपनों के साथ बिताना भी जरूरी है। यह कहानी पाठकों को अपनी मिट्टी से जुड़े रहने की सीख देती है।
‘भूख की तड़प’ कहानी एक सामाजिक विषमता और रूढ़िवादी सोच पर प्रहार करती हुई कहानी है। इसमें यह दर्शाया गया है कि किस प्रकार समाज की कुरीतियों को तोड़कर आगे बढ़ा जा सकता है। यह एक सशक्त सामाजिक टिप्पणी है, जो परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित करती है। ‘भावनाओं का खेल’ कहानी रिश्तों की उलझनों, उनके बीच बढ़ते तनाव, टकराव और उनमें छुपी संवेदनाओं को बड़ी संजीदगी से प्रस्तुत करती है। कहानी बताती है कि भावनाओं को समझना और उन्हें महत्व देना हर रिश्ते की बुनियाद होती है।
एक और सुंदर कहानी ‘अनोखा युद्ध’ नवीनीकरण एक सकारात्मक प्रक्रिया है और हम वर्तमान में समृद्धि तथा प्रौद्योगिकी के स्वर्णिम युग में जी रहे हैं। तकनीकी विकास ने जीवन को सहज, तीव्र और सुगम बनाया है। लेकिन यदि हम हर कार्य के लिए मशीनों, रोबोटों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर पूरी तरह निर्भर हो जाएँ, तो यह स्थिति अत्यंत घातक सिद्ध हो सकती है। अति-आधुनिकीकरण की यह अंधी दौड़ हमें हमारी मानवता, संवेदनाओं और आत्मनिर्भरता से दूर ले जा रही है। इसलिए समय रहते इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण पाना आवश्यक है, अन्यथा भविष्य में इसका दुष्परिणाम समाज को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, परंतु मानसिक रूप से स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है। “ज़िंदगी का उजास” की प्रत्येक कहानी जीवन के किसी न किसी सच को उजागर करती है और आत्मविश्लेषण की ओर प्रेरित करती है। यह कहानी-संग्रह केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक विचार-यात्रा है, जो पाठकों को भावनात्मक रूप से झकझोरते हुए एक नई चेतना जागृत करने का प्रयास करता है। यह पुस्तक हमें यह सिखाती है कि आधुनिकता आवश्यक है, परंतु अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को छोड़कर नहीं। “ज़िंदगी का उजास” वास्तव में आज के समाज के लिए एक जरूरी पुस्तक है, जो भीतर की रोशनी जगाने का सामर्थ्य रखता है।
पुस्तक: ज़िन्दगी की उजास
लेखक: नृपेंद्र अभिषेक नृप
प्रकाशन: समृद्ध पब्लिकेशन, नई दिल्ली
मूल्य: 260 रुपये
पेज: 133