आगरा का पर्यावरण संकट: जब इतिहास और जीवन दोनों ही दांव पर!

Agra's environmental crisis: When both history and life are at stake!

1978 में मथुरा रिफाइनरी से संभावित प्रदूषण के साए में बनी पहली डॉ वरदराजन कमेटी, 1984 में फाइल की गई mc mehta की जन याचिका, 1993 से निरंतर सुप्रीम कोर्ट की दखल और निदेश, NGT की मॉनिटरिंग के बावजूद, ताज ट्रिपेजियम जोन, जो 10,400 वर्ग किलोमीटर में फैला है, आज भी पर्यावरण के पैरामीटर्स पर लगातार फेल हो रहा है। न यमुना के हालात सुधरे, न ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त हुई, न हरित क्षेत्र का विस्तार हुआ, न ही धूल के कण कैद हुए, लेकिन विभिन्न परियोजनाओं पर खासा खर्चा हो गया।

बृज खंडेलवाल

साँसें थाम लीजिए! क्योंकि जिस शहर की फिजाओं में कभी प्रेम की इबारत लिखी गई थी, आज वह अपनी ही बर्बादी की कहानी लिख रहा है! जी हाँ, न्यायिक हस्तक्षेपों के अनगिनत अध्यायों के बावजूद, आगरा – हमारी बहुमूल्य विरासत का शहर – एक ऐसे पर्यावरण संकट की भयानक चपेट में है, जो न केवल उसकी ऐतिहासिक आत्मा, बल्कि उसके भविष्य को भी निगलने को तैयार है!

यह सिर्फ प्रदूषण नहीं, यह एक अदृश्य दानव है जो धीरे-धीरे हमारी गौरवशाली विरासत की सफेदी को फीका कर रहा है, यमुना के पवित्र जल को विषैला बना रहा है, और सबसे बढ़कर, यहाँ के लाखों बाशिंदों की साँसों पर भारी पड़ रहा है! कूड़े के पहाड़, हवा में घुलता जहर, और पास के अरावली पहाड़ों का चीर-हरण… यह सब मिलकर एक ऐसी विनाशकारी पटकथा लिख रहे हैं, जिसके अंतिम अध्याय में आगरा के अस्तित्व पर मानसून के नहीं संकट के बदल मंडरा सकते हैं।

अगर हमने अभी भी अपनी आँखें बंद रखीं, अगर हमने अभी भी इस आसन्न प्रलय को अनदेखा किया, तो आगरा का पर्यावरण और यहाँ के लोग, एक ऐसी भयानक मुसीबत में फंस जाएंगे, जिससे निकलना नामुमकिन होगा! क्या हम अपनी धरोहर को यूँ ही धूल फाँकते देखेंगे? क्या हम अपनी साँसों को यूँ ही घुटता महसूस करेंगे? सवाल सिर्फ तराशे पत्थरों का नहीं, हमारे जीवन का भी है!

ताजमहल, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर है, खतरे में है। इसका चमकता सफेद संगमरमर अब पीला पड़ रहा है। यमुना नदी से निकलने वाली हानिकारक गैस (हाइड्रोजन सल्फाइड) और हवा में धूल-कण (200-400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, जबकि सुरक्षित सीमा 100 है) ताज को खराब कर रहे हैं। अवैध इकाइयों से उत्सर्जित धुआं, गाड़ियों का प्रदूषण और कचरा जलाना हवा को जहरीला बना रहा है। इससे आगरा के लाखों लोगों को सांस की बीमारियां और दिल के रोग होने का खतरा बढ़ रहा है।
यमुना नदी, जो कभी आगरा की जान थी, अब गंदा नाला बन चुकी है। इसमें हर दिन 80 करोड़ लीटर से ज्यादा गंदा पानी, फैक्ट्रियों का कचरा और प्लास्टिक बहता है। केवल 35% गंदे पानी को साफ किया जाता है। यह जहरीला पानी न सिर्फ नदी की मछलियों को मार रहा है, बल्कि ताजमहल के संगमरमर को भी खराब कर रहा है। प्लास्टिक बैग पर पाबंदी के बावजूद, लोग इसे नदियों और नालों में फेंक रहे हैं, जिससे यमुना और चोक हो रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने बार-बार कहा है कि गंदे नाले साफ करने के लिए और कदम उठाए जाएं, लेकिन काम बहुत धीमा है।

प्लास्टिक का कचरा आगरा के लिए बड़ा सिरदर्द है। नदियों और सड़कों पर प्लास्टिक बैग बिखरे पड़े हैं। प्लास्टिक बैग पर सख्त पाबंदी और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना जरूरी है।

पास के अरावली पहाड़ों में अवैध खनन और जंगलों की कटाई ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। इससे राजस्थान में रेगिस्तान बढ़ रहा है, और धूल भरी आंधियां आगरा की हवा को और खराब कर रही हैं। ये धूल ताजमहल को भी नुकसान पहुंचा रही है। अगर खनन नहीं रोका गया, तो आगरा का मौसम और हवा और खतरनाक हो सकती है।

लोगों की सेहत भी खतरे में है। जहरीली हवा से बच्चों और बुजुर्गों को सांस की बीमारियां, जैसे दमा, और चमड़ी के रोग हो रहे हैं। यमुना का गंदा पानी पीने या खेती के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता, जिससे खेती और खाना भी खतरे में है।

समाधान मुमकिन हैं, लेकिन फौरन कदम उठाने की जरूरत है। कचरे को अलग-अलग करना और रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना होगा, जैसे पेठा और जूते के कचरे के लिए शुरू किए गए काम। रोल्ज इंडिया और जे.बी.एम. एनवायरो जैसी कंपनियों की तरह कचरे से बिजली बनाने वाले छोटे-छोटे प्लांट लगाने चाहिए। प्लास्टिक बैग पर सख्त सजा और बायोडिग्रेडेबल बैग को बढ़ावा देना जरूरी है। यमुना में गंदा पानी डालने से पहले 100% साफ करना होगा। इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देना जरूरी है। लूथरा ग्रुप का एकाकोअल जैसे कचरे से बने ईंधन हवा को कम गंदा कर सकते हैं। अरावली में अवैध खनन रोकना और पेड़ लगाना भी जरूरी है।

विश्व पर्यावरण दिवस 2025 पर आगरा को बचाने का वक्त है। ताजमहल, यमुना और शहर के लोग और इंतजार नहीं कर सकते। कचरे को दौलत में बदलें, प्लास्टिक प्रदूषण खत्म करें, और आगरा की शान को बचाएं, वरना बहुत देर हो जाएगी।