भ्रूण हत्या: एक सामाजिक कलंक

लवली आनंद

1990 में चिकित्सा क्षेत्र में अभिभावकों द्वारा लिंग निर्धारण जैसे तकनीकी उन्नति के आगमन के समय से भारत में कन्या भूर्ण हत्या को बढ़ावा मिला है। हालांकि इससे पहले भी देश के कई हिस्सों में बच्चियों को जन्म के तुरंत बाद मार दिया जाता था। हमारे देश में बच्चियों को सामाजिक और आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है। भ्रूण या कोई भी लिंग प्रशिक्षण भारत में गैर कानूनी है। यह उन माता-पिता के लिए बहुत ही शर्म की बात है जो लड़का ही चाहते हैं। माता-पिता के साथ-साथ चिकित्सक भी खासतौर पर पैसों के लिए गर्भपात कराने में मदद करते हैं।

अभी भी समाज में विभिन्न कारणों से कुछ परिवार में भ्रूण हत्या आज भी जारी है। ऐसी मान्यता है कि लड़कियां हमेशा उपभोक्ता होती है और लड़के उत्पादक होते हैं। समाज के लोग समझते हैं कि लड़का उनके लिए जीवन भर काम आएगा और उनका ध्यान देगा, जबकि लड़की की शादी होगी तो बहुत सारा दहेज देना होगा और अनावश्यक खर्च होगा। परिवार का ध्यान भी नहीं रख सकती ससुराल जाने के बाद। लेकिन हमारा समाज यह कुकर्म करने से पहले क्यों नहीं सोचता कि बेटी नहीं जनोगे तो बहू कहां से पाओगे?

अक्सर घरों में विवाद होता है जहां माताएं बच्ची को जन्म देना चाहती हैं और पुरुष उन्हें मना करते हैं। घर के मर्द उन्हें बच्चियों को नहीं स्वीकारने पर उनके साथ मारपीट अथवा लड़का पैदा करने के लिए शोषण भी किया करते हैं। कहीं ना कहीं जो लोग भ्रूण हत्या जैसी बातें सोचते हैं, वे लोग मानसिक रूप से बीमार होते हैं। ऐसा नहीं है कि लड़के ही परिवार चला सकते हैं। खर्च उठा सकते हैं, ध्यान रख सकते हैं। वे क्यों भूल जाते है कल्पना चावला जैसी महान बेटी को, वह क्यों किरण बेदी को भूल जाते है ?

लड़कियों को बोझ समझने के मुख्य वजह है कि लोगों की अशिक्षा,सुरक्षा और गरीबी भी है। पर अब वर्तमान में इसके लिए बहुत से उपाय हैं। लड़की के जन्म पर सरकार की तरफ से कुछ राशि प्रदान की जाति हैं। तरह-तरह के जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। पर उन चिकित्सकों का क्या जो ऐसे काम को बड़े आसानी से अंजाम देते हैं? उनके लिए कठोर क़ानून होनी चाहिए और जिससे की भ्रूण हत्या पर रोक लग सके। ऐसा नहीं है कि अभी कानून नहीं है लेकिन उसके बाद भी धड़ल्ले से अपराध हो ही रह है। जिसे रोकना अतिआवश्यक है। इस अधर्मी कृत्यों को अंजाम देने में चिकित्सकों का भी अहम योगदान है। ये जानते हुए भी कि उस काम को अंजाम देना गलत हैं। कानूनन अपराध है फिर भी उन्हें कोई डर नही।

वो अलग बात है कि स्त्रियों में आजकल बच्चों का ठहराव कई कारणों से नहीं हो पाता और आकॉस्मिक गर्भपात भी हो जाते हैं। उनके लिए बहुत से कारण है जैसे थायराइड,शुगर,क्षमता से अधिक काम करना, भुखमरी इत्यादि पर गरीब से गरीब आदमी भी पैसे देकर भ्रूण की जांच करवाते हैं और अमीर से अमीर आदमी भ्रूण की जांच करवाते हैं और लड़की होने पर गर्भपात करवा लेते हैं।

भारत के सबसे समृद्ध राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार एक हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या पंजाब में 876 , हरियाणा में 861 और दिल्ली में 821 है। कुछ अन्य राज्यों ने इस प्रवृत्ति को गंभीरता से लिया और इसे रोकने के लिए अनेक कदम उठाए जैसे गुजरात में ‘डीकरी बचाओ अभियान’ चलाया जा रहा है। इसी प्रकार से अन्य राज्यों में भी योजनाएँ चलाई जा रही हैं। कुछ राज्यों को सफलता हाँथ लगी है लेकिन अभी भी बहुत ऐसे राज्य है जहाँ की स्थिति भयावह बनी हुई है।

हम कन्या भ्रूण हत्या रोकने या समाज में बच्चियों की कम होती संख्या को बढ़ाने के लिए किसी नए फार्मूले की तरफ जाने का सोच जरूर रहे हैं लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अगर हम पीसीपीएनडीटी एक्ट को सही ढंग से लागू कर पाएं तो अच्छा असर पैदा कर सकते हैं। अगर गैरकानूनी तरीके से लिंग परीक्षण करने वाले क्लिनिक पर कड़ी कार्रवाई की जाए तो चीजें ज्यादा काबू में आ सकती हैं। हमें मौजूदा समस्या को सही नजरिए से देखने की जरूरत है।