
सुनील कुमार महला
आज पूरी दुनिया दुनिया बारूद के ढ़ेर पर खड़ी हुई है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज विश्व में हर तरफ युद्ध, अशांति, तनाव और अस्थिरता का साया नजर आ रहा है। पहले रूस-यूक्रेन युद्ध, बाद में इजरायल और हमास के बीच युद्ध और अब इजराइल-ईरान के बीच भी युद्ध प्रारम्भ हो गया है। पाठक जानते हैं कि 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच भी युद्ध छिड़ गया था, परंतु अमेरिका की भूमिका के चलते इस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त करने में सफलता मिल गई थी। हालांकि, यह बात अलग है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को भारत पाकिस्तान मध्यस्थता पर दो टूक बातें कहीं हैं कि भारत ने कभी भी तीसरे पक्ष(अमेरिका) की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है और भविष्य में भी इसे स्वीकार नहीं करेगा। दरअसल, भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के लिए बार-बार मध्यस्थता का दावा कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह साफतौर पर स्पष्ट कर दिया है कि भारत ने पाकिस्तान और पीओके पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सैन्य कार्रवाई पाकिस्तान के अनुरोध पर रोकी थी न कि अमेरिकी मध्यस्थता या व्यापार समझौते की पेशकश के कारण। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि ईरान इजरायल युद्ध पर दुनिया दो फाड़ होती नजर आ रही है। अमेरिका इजरायल का तो वहीं दूसरी ओर रूस ईरान का समर्थन कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिका ईरान पर हमले की तैयारी कर रहा है, तो वहीं रूस ने ईरान का समर्थन करते हुए अमेरिका को यह खुली धमकी दी है कि यदि अमेरिका जंग में कूदता है तो अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पावरफुल चीन ने भी ईरान का समर्थन किया है और इजरायल से सीजफायर (युद्ध विराम) करने को कहा है। पाठकों को बताता चलूं कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दो टूक लहजे में यह कहा है कि अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने का सही तरीका युद्ध कभी नहीं हो सकता है। गौरतलब है कि इससे पहले चीन ने पांच दिनों की जंग पर चुप्पी तोड़ते हुए कहा था कि बीजिंग इस गहराते युद्ध से चिंतित है। हालांकि, ईरान ने जोर देकर यह बात कही है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि ईरान-इजरायल के बीच युद्ध से दोनों देशों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि इस युद्ध में दोनों ही देश पानी की तरह पैसा बहा रहें हैं, ऐसे में इनकी जीडीपी में गिरावट आ सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस युद्ध में इजरायल को हर दिन करीब 725 मिलियन डॉलर (करीब 6300 करोड़ रुपये) का सिर्फ सैन्य खर्च हो रहा है। रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि इजरायल ने शुरुआती दो दिनों में ही करीब 1.45 अरब डॉलर (12000 करोड़ रुपये से ज्यादा) खर्च कर दिए। इसमें हमले और बचाव दोनों तरह के खर्चे शामिल हैं। इसमें से 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा की रकम, तो बमबारी और जेट ईंधन जैसे हमलों पर ही खर्च हुई है। बाकी पैसा मिसाइल इंटरसेप्टर और सैनिकों को जुटाने जैसे रक्षा कार्यों पर खर्च हुआ है। इजरायल जहां गाजा में हमास के साथ लड़ाई जारी रखे हुए है वहीं एक अन्य मोर्चे पर वह ईरान से भी लोहा ले रहा है।इस प्रकार से इजरायल की अर्थव्यवस्था पर युद्ध से दोहरा असर पड़ रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि युद्ध के चलते देश के घरेलू उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है। कच्चे तेल के दाम 5% तक बढ़ चुके हैं।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार ब्रेंट क्रूड 74.60 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है। वहीं, एस एंड पी 500 और एशियाई शेयर बाजारों में गिरावट आई है। जल मार्गों पर खतरे से ऊर्जा आपूर्ति पर भी असर पड़ा है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि दो देशों के बीच युद्ध में किसी एक देश का फायदा नहीं होकर बल्कि दोनों ही देशों का नुकसान ही होता है। वैसे भी कोई भी युद्ध किसी भी समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं होता है। युद्ध विनाश और अशांति को ही जन्म देता है और युद्ध के कारण कोई भी देश बरसों पीछे चला जाता है,उसकी अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है और युद्ध के बाद किसी भी देश का जल्दी से उबरना मुश्किल हो जाता है। यह एक विडंबना ही है कि आज हर कोई देश छोटी-छोटी बातों को लेकर आवेश में एक-दूसरे से टकरा बैठते हैं और दो देशों के पक्ष एवं विपक्ष में कुछ देश खड़े हो जाते हैं, जिससे कुछ इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं कि विश्व युद्ध छिड़ जाते हैं। वर्ष 1914 से वर्ष 1918 के बीच प्रथम विश्व युद्ध एवं वर्ष 1939 से वर्ष 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इजराइल ईरान के बीच हाल ही में प्रारम्भ हुए युद्ध में अमेरिका, रूस और चीन यदि कूद पड़ते हैं, तो यह बहुत सम्भव है यह युद्ध तृतीय विश्व युद्ध का स्वरूप ले ले। वास्तव में, सच तो यह है कि इजराइल और ईरान दोनों ही देशों के पास शक्तिशाली सहयोगी हैं। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि इजराइल को अमेरिका का समर्थन प्राप्त है। इतना ही नहीं,ब्रिटेन और जर्मनी के साथ भी इसकी रणनीतिक साझेदारी है। ईरान के भी अपने कुछ सहयोगी हैं। जो भी हो मध्य-पूर्व में हालात कुल मिलाकर ठीक नहीं हैं। आज विश्व के बड़े देश अपने यहां परमाणु हथियारों की बढ़त करने में लगे हैं।सच तो यह है कि वैश्विक स्तर पर आज परिस्थितियां बहुत सहज रूप से नहीं चल रही हैं। यह बहुत ही दुखद है कि आज कुछ देश अपनी विस्तारवादी नीतियों को बढ़ावा देने में लगे हैं तो कुछ बहती गंगा में हाथ धोना चाहते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि इजराइल भी भारत की तरह आतंकवाद से पीड़ित देश है तथा इजराइल की सीमाएं चार मुस्लिम राष्ट्रों से जुड़ी हुई हैं, यथा, उत्तर में लेबनान, दक्षिण पश्चिम में ईजिप्ट (एवं गाजा), पूर्व में जॉर्डन (एवं वेस्ट बैंक) एवं उत्तर पूर्व में सीरिया। वास्तव में, इजराइल अत्यधिक आक्रात्मकता के साथ आतंकवादियों (हमास एवं हिजबुल्ला आदि संगठनों) से युद्ध करता रहता है। इस्लाम के अनुयायी यहूदियों के कट्टर दुश्मन हैं, इसके चलते भी इजराइल के नागरिकों को आतंकवाद को लम्बे समय से झेलना पड़ रहा है।दूसरी तरफ ईरान, हमास और हिजबुल्लाह के साथ खड़ा है। अंत में यही कहूंगा कि आज दुनिया के सामने आर्थिक चुनौतियां लगातार बड़ी होती जा रही हैं। वहीं, क्लाइमेट चेंज(जलवायु परिवर्तन) भी हमारी चिंताएं बढ़ा रहा है। वास्तव में युद्ध दुनिया को लगातार अस्थिरता की ओर ले जा रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि ये तनाव और खतरे, यदि हल नहीं किए जाते हैं, तो आने वाले समय में ये एक बड़ी वैश्विक आपदा का कारण बन सकते हैं। वास्तव में, विश्व को आज असमानता और अनिश्चितता से निपटने की नितांत आवश्यकता है।