
सोनम लववंशी
भारत की आत्मा नारी शक्ति में बसती है। एक सशक्त नारी सिर्फ परिवार नहीं, पूरी पीढ़ियों का भविष्य गढ़ती है। बीते 11 वर्षों में जब भारत ने तेज़ी से तरक्की की दिशा में कदम बढ़ाए, तब केंद्र में महिलाओं को सिर्फ लाभार्थी नहीं, विकास की भागीदार बनाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शासन की दिशा और दृष्टि में एक मौलिक परिवर्तन हुआ। महिलाओं को ‘वोट बैंक’ नहीं, ‘विकास भागीदार’ माना गया। यह बदलाव नीतियों में भी दिखा, और ज़मीनी सच्चाई में भी। सबसे पहले बात गरिमा की करें तो 12 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण महज स्वच्छता अभियान नहीं था, यह महिलाओं की अस्मिता और सुरक्षा की रक्षा थी। वर्षों से गांव की महिलाएं सूरज डूबने और उगने के समय का इंतजार करती थीं, अब उनके लिए हर घर में सम्मान की जगह बनी। उज्ज्वला योजना के माध्यम से 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को धुएं से मुक्ति मिली। यह सिर्फ एलपीजी कनेक्शन नहीं था, यह स्वास्थ्य, समय और सुरक्षा की सौगात थी। एक मां अब बिना जलन के, बिना खांसी के, बच्चों के लिए खाना बना सकती है। यह बदलाव दिखाई भी देता है और महसूस भी होता है।
जहां गरिमा है, वहां आत्मविश्वास पनपता है। मोदी सरकार ने महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए जन-धन योजना के तहत करोड़ों बैंक खाते खोले। इन खातों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से महिलाओं के हाथ में पहली बार सीधा पैसा आया। यह बदलाव सिर्फ खाते में रकम आने तक सीमित नहीं रहा, इससे महिलाओं को घर की आर्थिक गतिविधियों में हिस्सेदारी मिली। वे अब निर्णयकर्ता बनीं, न कि सिर्फ दर्शक। महिलाओं के लिए स्वरोजगार और उद्यमिता के रास्ते भी खोले गए। मुद्रा योजना के अंतर्गत 70 फीसदी से अधिक ऋण महिलाओं को दिए गए। छोटे-छोटे व्यवसायों, कुटीर उद्योगों और सेवाओं में महिलाओं ने अपने कदम जमाए। वे अब दुकानदार, कारीगर, बुटीक मालिक, सब्जी विक्रेता ही नहीं, स्टार्टअप की नींव रखने वाली नई पीढ़ी बन चुकी हैं। यह आर्थिक सशक्तिकरण एक सामाजिक क्रांति की बुनियाद है। शिक्षा के मोर्चे पर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ महज एक नारा नहीं रहा, यह एक सामाजिक चेतना का आंदोलन बना। हरियाणा जैसे राज्यों में जहां बालिका जन्म अनुपात बेहद खराब था, वहां सुधार के स्पष्ट संकेत मिले। स्कूलों में लड़कियों की भागीदारी बढ़ी। उच्च शिक्षा, इंजीनियरिंग, मेडिकल और रक्षा सेवाओं तक बेटियों की पहुंच बढ़ी। जब बेटियां आसमान छूने लगती हैं, तभी राष्ट्र की उड़ान संभव होती है। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर भी सरकार ने अनेक संवेदनशील निर्णय लिए। तीन तलाक पर कड़ा कानून बनाकर करोड़ों मुस्लिम बहनों को एक ऐतिहासिक अन्याय से मुक्त किया गया। यह फैसला सिर्फ कानूनी नहीं था, यह सामाजिक साहस और संवेदनशीलता का प्रतीक था। महिला हेल्पलाइन, वन स्टॉप सेंटर, फास्ट ट्रैक कोर्ट्स, और साइबर सुरक्षा के अभियान यह दिखाते हैं कि सरकार संवेदना के साथ, संकल्प से काम कर रही है।
राजनीति और नेतृत्व में भी महिलाओं को आगे लाने की प्रतिबद्धता को पूरी गंभीरता से निभाया गया। संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण के लिए महिला आरक्षण बिल पास हुआ। यह लोकतंत्र में नारी भागीदारी का नया अध्याय है। आज देश की राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला हैं, जो इस बदलाव की सबसे बड़ी प्रतीक हैं। ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक, महिलाओं की आवाज़ पहले से अधिक सशक्त और निर्णायक हुई है। सरकारी योजनाओं की डिलीवरी व्यवस्था में भी महिलाओं को केंद्र में रखा गया। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लाखों ग्रामीण महिलाओं को सशक्त किया गया। ये समूह अब केवल बचत या ऋण की सीमाओं में नहीं हैं। वे डेयरी, कृषि, बागवानी, जैविक उत्पादों, सिलाई और डिज़ाइनिंग जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। ये महिलाएं अब अपने गांव की अर्थव्यवस्था का इंजन बन चुकी हैं। सखी मंडलों ने ग्रामीण भारत में महिला नेतृत्व का नया मानक गढ़ा है। डिजिटल इंडिया ने भी महिला सशक्तिकरण की गति को तेज किया है। स्मार्टफोन, डिजिलॉकर, भीम ऐप और डिजिटल पेमेंट के ज़रिए महिलाएं तकनीक के साथ कदमताल कर रही हैं। ई-संजीवनी जैसे टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म पर महिलाओं को घर बैठे परामर्श उपलब्ध हो रहा है। आयुष्मान भारत योजना के तहत करोड़ों महिलाओं को मुफ्त इलाज मिला, यह स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव है। सेना और सुरक्षा बलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। अब महिलाएं युद्धपोत चला रही हैं, लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं, और फ्रंटलाइन पर तैनात हैं। यह बदलाव सिर्फ अवसर का नहीं, विश्वास का है। यह दिखाता है कि भारत अपनी बेटियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।
महिलाएं अब सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं। वे निर्णय के केंद्र में हैं। वे योजनाओं की लाभार्थी नहीं, योजनाओं की दिशा तय करने वाली साझेदार बन चुकी हैं। प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कहते हैं कि “नारी शक्ति के बिना भारत का विकास अधूरा है” और यही दर्शन हर नीति, हर निर्णय में स्पष्ट झलकता है। पिछले ग्यारह वर्षों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो व्यवस्थाएं बदली जा सकती हैं। नारी को सशक्त करना कोई योजना की सूची में एक बिंदु नहीं होना चाहिए, बल्कि वह राष्ट्र निर्माण की रणनीति का मूल होना चाहिए। मोदी सरकार ने इसी सोच को कार्यरूप दिया। इस दौर में महिलाएं मौन नहीं, मुखर हुई हैं। वे सिर्फ वोटर नहीं, नेतृत्वकर्ता बन चुकी हैं। भारत आज एक ऐसे मोड़ पर है, जहां उसका भविष्य नारी शक्ति की प्रगति से ही तय होगा। वह भविष्य अब दूर नहीं, सामने खड़ा है। आत्मविश्वास से भरी, सशक्त, शिक्षित, सजग और सक्षम भारतीय महिला के रूप में। और यही है आज के भारत की असली शक्ति।