कहां रुकेंगे अखिलेश, ब्राह्मण-ठाकुर के बाद अब साधु-संतों का अपमान

Where will Akhilesh stop, after Brahmin-Thakur now insult of sadhus and saints

अजय कुमार

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने में लगे समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव जिस तरह से हिन्दू और सनातन विरोधी सियासत कर रहे हैं, उससे लगता है कि अखिलेश की समाजवादी पार्टी के पास सत्ता हासिल करने के लिये हिन्दुओं को लड़वाने और उनके धर्माचार्याे को भला-बुरा कहने के अलावा कोई और एजेंडा नहीं बचा है। अखिलेश जब भी मुंह खोलते हैं उनके मुंह से सनातन के खिलाफ जहर ही निकलता है।कभी वह ब्राहमणों को कोसते हैं तो कभी ठाकुरों के लिये अपमानजनक भाषा बोलते हैं।अखिलेश पीडीए के माध्यम से पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिये ब्राहमण,ठाकुरों के लिये अपशब्द कहते रहते थे,लेकिन अब तो वह हिन्दुओं के धर्माचार्याे के खिलाफ भी हमलावार नजर आ रहे हैं।

इस बार विवाद का केंद्र थे अखिलेश यादव और बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री। बात शुरू हुई थी इटावा में गैर-ब्राह्मण कथावाचकों को लेकर छिड़े एक विवाद से, जो धीरे-धीरे सियासी अखाड़े में तब्दील हो गया। अखिलेश यादव, जो हमेशा से अपनी तीखी बयानबाजी और रणनीतिक सियासत के लिए जाने जाते हैं, इस बार धीरेंद्र शास्त्री को निशाने पर ले बैठे। उनके एक बयान ने न केवल साधु-संतों की नजरों में उन्हें चर्चा का विषय बना दिया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की ओर से भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। बात इतनी बढ़ गई कि मामला अब डीएनए टेस्ट तक जा पहुंचा।

यह सब तब शुरू हुआ जब अखिलेश यादव ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि कुछ कथावाचक अपनी कथाओं के लिए मोटी रकम वसूलते हैं, और खास तौर पर धीरेंद्र शास्त्री पर निशाना साधते हुए दावा किया कि वह अंडर टेबल लाखों रुपये लेते हैं। अखिलेश ने यह भी कहा कि 50 लाख रुपये की फीस लेकर कथाएं करने वाले इन बाबाओं को आम लोग बर्दाश्त नहीं कर सकते। उनके इस बयान ने तुरंत ही सियासी तूफान खड़ा कर दिया। समाजवादी पार्टी के इस बयान को बीजेपी ने सनातन धर्म और हिंदू भावनाओं पर हमला करार दिया। बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने पलटवार करते हुए कहा कि अखिलेश यादव का असली मकसद हिंदुओं को बांटना और सनातन धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है।

धीरेंद्र शास्त्री ने भी इस हमले का जवाब देने में देर नहीं की। उन्होंने अखिलेश के बयान को न केवल अपमानजनक बताया, बल्कि एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा, हिंदू होकर तुम्हें हमसे दिक्कत है, तो पहले तुम अपना डीएनए टेस्ट करवाओ। जो हिंदू का नहीं, वो किसी का नहीं। इस बयान ने विवाद को और हवा दे दी। सोशल मीडिया पर यह बात जंगल की आग की तरह फैल गई। कुछ लोग धीरेंद्र शास्त्री के समर्थन में उतरे, तो कुछ ने अखिलेश यादव की इस रणनीति को सियासी चाल करार दिया।
बहरहाल, अखिलेश यादव का यह हमला कोई नई बात नहीं थी। वह पहले भी बीजेपी और साधु-संतों के प्रभाव को लेकर तंज कस चुके हैं। लेकिन इस बार उनका निशाना धीरेंद्र शास्त्री पर था, जो हाल के वर्षों में हिंदू एकता और सनातन धर्म के प्रचार के लिए चर्चित रहे हैं। अखिलेश का आरोप था कि कुछ बाबा धर्म की आड़ में धंधा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह सब बीजेपी की उस कवायद का हिस्सा है, जो हिंदू एकता के नाम पर सियासत चमकाने की कोशिश कर रही है। इस बयान को लेकर समाजवादी पार्टी के समर्थकों ने इसे साहसी कदम बताया, जबकि बीजेपी ने इसे धर्म-विरोधी करार दिया।

विवाद तब और गहरा गया जब बीजेपी के कुछ नेताओं ने अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने तो उल्टे अखिलेश की तारीफ कर डाली, लेकिन अपनी शैली में। उन्होंने कहा कि अखिलेश धर्म के विरोधी नहीं हैं, उनकी मजबूरी है। यह बयान भी चर्चा का विषय बन गया, क्योंकि यह बीजेपी के अपने रुख से थोड़ा हटकर था। दूसरी ओर, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रवक्ता अरुण राजभर ने अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि वह ब्राह्मण बनाम यादव का मुद्दा उठाकर अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) मॉडल को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर भी यह जंग कम नहीं थी। कुछ यूजर्स ने अखिलेश के बयान को सनातन धर्म पर हमला बताया, तो कुछ ने इसे धीरेंद्र शास्त्री जैसे बाबाओं की असलियत उजागर करने की कोशिश करार दिया। वहीं, दूसरी ओर, धीरेंद्र शास्त्री के समर्थकों ने कहा कि अखिलेश जानबूझकर हिंदू एकता को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि संगठित हिंदू उनके सियासी भविष्य के लिए खतरा बन सकता है।

इस पूरे विवाद में एक बात साफ थी कि यह केवल धीरेंद्र शास्त्री और अखिलेश यादव की तकरार नहीं थी। यह सियासत, धर्म, और जाति का एक जटिल मिश्रण था, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में गहरे तक पैठ रखता है। अखिलेश यादव का यह बयान उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसके जरिए वह बीजेपी के हिंदू कार्ड को चुनौती देना चाहते हैं। दूसरी ओर, धीरेंद्र शास्त्री का जवाब उनके उस छवि को और मजबूत करता है, जिसमें वह सनातन धर्म के रक्षक के रूप में देखे जाते हैं।

जैसे-जैसे यह विवाद बढ़ता गया, साधु-संतों का एक वर्ग भी इस बहस में कूद पड़ा। कुछ संतों ने अखिलेश के बयान को अपमानजनक बताया, तो कुछ ने इसे सियासी हथकंडा करार दिया। इस बीच, धीरेंद्र शास्त्री ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि वह किसी भी सियासी दल के पक्ष या विपक्ष में नहीं हैं। उन्होंने कहा,‘हमारे लिए कोई पक्ष-विपक्ष नहीं है। हम तो सनातन धर्म की बात करते हैं।’ लेकिन उनके इस बयान ने भी विवाद को पूरी तरह शांत नहीं किया।