निर्मल कुमार शर्मा
इस दुनिया के पिछले केवल 220 वर्षों के इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि आधुनिक विश्व मतलब सन् 1800 के बाद दुनिया में जो आधुनिकतम् विकास हुआ है,उसमें विशेषतौर पर पश्चिमी देशों का ही मुख्य योगदान रहा है,दक्षिण एशिया के भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश,नेपाल, अफगानिस्तान,श्रीलंका आदि हिन्दू और मुस्लिम बहुल देशों का इस विकास में 1प्रतिशत का भी योगदान नहीं है ! ऐतिहासिक सच्चाई यह है कि सन् 1800 से लेकर सन् 1940 तक हिंदू और मुसलमान केवल अपनी सत्ता,बादशाहत और गद्दी के लिये लड़ते रहे !अगर आप दुनिया के 100 बड़े वैज्ञानिकों के नाम लिखें तो बस एक या दो नाम हिन्दू और मुसलमान वैज्ञानिकों के नाम इनमें मिलेंगे। पूरी दुनिया में 61इस्लामी देश हैं,जिनकी जनसंख्या 1.50 अरब के करीब है और कुल 435 यूनिवर्सिटी हैं जबकि मस्जिदें अनगिनत ! दूसरी तरफ भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या 1.39 अरब के करीब है और यहाँ 385 यूनिवर्सिटी हैं जबकि मन्दिर 30 लाख से अधिक बन चुके हैं और तेजी से लगातार बनवाने का काम जारी है !हम लोग सदियों से लेकर आज तक केवल मंदिरों के लिए मरते रहे हैं ! हमें केवल मंदिर बनाने आता है और उसके चढ़ावे का कारोबार बढ़ाना है हमें यही ध्यान में रहता है। इस देश में ईश्वर के नाम पर ही कारोबार अधिक होता आया है ! इससे हिंदू समाज में नए अविष्कार के प्रति कोई उत्सुकता कभी भी नहीं रही है ! कथित मोक्ष प्राप्ति या पैसा कमाने आदि इन्हीं दो धंधे के पीछे यहाँ की पूरी आबादी और कथित धर्माचार्य व शंकराचार्य लोगों का पूरा ध्यान और शक्ति लगी रही है ! इन दोनों धर्मों यथा हिंदू और मुस्लिम धर्मों में पूजा पाठ,मंत्र जाप,नमाज आदि को इतना महत्व दिया गया कि अन्य शोध कार्यों के लिए इनके मतावलंबियों को इतिहास में कभी समय ही नहीं मिला !
आखिर अधिकांश वैज्ञानिक विदेशी ही क्यों ?
अकेले अमेरिका में 3000 से अधिक और जापान जैसे छोटे से देश में भी 900 से अधिक यूनिवर्सिटी हैं जबकि इंगलैंड और अमेरिका दोनों देशों में करीब 200 चर्च भी नही हैं। पश्चिमी देशों के 45 प्रतिशत तक युवा यूनिवर्सिटी तक पहुंचने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं,जबकि धार्मिक जाहिलता,वैमनस्यता व जातिवाद के कारण गरीबी,बेरोजगारी,अशिक्षा और भूखमरी से बुरी तरह त्रस्त व अभिशापित आधुनिकता और ज्ञान-विज्ञान से बहुत दूर दक्षिण एशिया के भारतीय उप महाद्वीप के तीनों देशों यथा भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश आदि में सिर्फ 2प्रतिशत मुसलमान युवा और मात्र 8 प्रतिशत तक ही हिन्दू युवा यूनिवर्सिटी तक पहुंच पाते हैं ! इसका मुख्य कारण है गरीब हिंदू-मुसलमान युवा अपने पेट की आग को बुझाने के लिए रुपया कमाने के लिए ही अपनी सारी ऊर्जा जीवन भर लगा देने को बाध्य हैं ! इन धर्मों के अमीर लोग मंदिर-मस्जिद बनवाने में, दान-पुण्य करने में और सैर-सपाटा करने में ही सबसे अधिक ध्यान देते हैं । अगर कहीं इक्का-दुक्का यूनिवर्सिटी बनाई भी जाती है तो उसे धार्मिक संकीर्णता से ग्रस्त कुछ दकियानूसी लोग हिंदू यूनिवर्सिटी,मुस्लिम यूनिवर्सिटी आदि -आदि नाम रख देते हैं ! फलस्वरूप देश में हर जगह अलगाववादी सोच कायम रखने का कुप्रयास किया जाता रहा है ! अब तो शानदार बिल्डिंग और चमचमाती यूनिवर्सिटी बनाई जातीं हैं,जिसके नाम तो बड़े लुभावने होते हैं पर उनकी फीस जानबूझकर इतनी महंगी रखी जाती है कि एक आम गरीब हिंदू या मुसलमान के बच्चे उसमें पढ़ ही नहीं सकते। मतलब शिक्षा को आम गरीब जनता से दूर करने के लिए निजीकरण सहित हर कुप्रयास इन देशों में जोरदार और सुनियोजित ढंग से किया जा रहा है ! ताकि भारत के गरीबों, मजलूमों,मजदूरों,किसानों आदि मध्यवर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित किया जा सके !
दुनिया की 200 सबसे बड़ी और उच्च गुणवत्ता वाली यूनिवर्सिटीज में से 54 अमेरिका, 24 इंग्लेंड, 17 ऑस्ट्रेलिया, 10 चीन, 10 जापान, 10 हॉलैंड, 9 फ्रांस, 8 जर्मनी, 2 भारत और 1 इस्लामी देशों में हैं जबकि शैक्षिक गुणवत्ता के मामले में विश्व की टॉप 200 में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं आती है !अब हम आर्थिकतौर पर तुलनात्मक अध्ययन करते हैं,जहाँ अमेरिका की जी.डी.पी 14.9 ट्रिलियन डॉलर है,वहीं दूसरी तरफ पूरे इस्लामिक देशों की कुल मिलाकर जी.डी.पी 3.5 ट्रिलियन डॉलर है ! वहीं भारत की 1.87 ट्रिलियन डॉलर मात्र ही है ! दुनिया में इस समय 38000 बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियाँ हैं।इनमें से 32000 कम्पनियाँ सिर्फ अमेरिका और यूरोप में हैं !अब तक दुनिया के 10000 बड़े अविष्कारों में 6103 अविष्कार अकेले अमेरिका में हुए हैं ! दुनिया के 50अमीरों में 20 अमेरिका में, 5 इंग्लैंड में, 3 चीन में, 2 मैक्सिको में, 2 भारत में और 1अरब देशों में हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश आदि देश जनहित,परोपकार या समाज सेवा के मामले में भी पश्चिम के देशों से मीलों पीछे हैं। यह बताने की जरूरत ही नहीं है कि रेडक्रॉस दुनिया का सब से बड़ा मानवीय संगठन है। अमेरिकी पूँजीपति बिल गेट्स ने 10 बिलियन डॉलर से बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की बुनियाद रखी जो कि पूरे विश्व के 8 करोड़ बच्चों की सेहत का ख्याल रखती है,जबकि हम जानते हैं कि भारत में कई अरबपति हैं यथा मुकेश अंबानी अपना घर बनाने में 4000 करोड़ खर्च कर सकते हैं,लेकिन वे यहाँ के गरीबों, पिछड़ों और दलितों आदि के जीवन स्तर में सुधार के लिए एक फूटी कौड़ी तक खर्च करने से साफ कन्नी काट जाते हैं !
कथित शानदार अतीत बनाम बदहाल वर्तमान !
हम अपने अतीत पर गर्व करने का छद्म नाटक तो खूब करते है पर कभी भी यह नहीं सोचते कि आज कथित इसी गौरवशाली अतीत ने हमारे ही समाज के 85 प्रतिशत लोगोंं को हर तरह से पिछड़ा और दोयम दर्जे का और उनमें से भी 30 प्रतिशत लोगों का जीवन अत्यन्त नारकीय बनाकर उन्हें दलित और अंत्यज ही बना दिया है ! मानसिक रूप से हम आज भी अविकसित और कंगाल हैं,क्योंकि आज भी हम जातिवादी व धार्मिक वैमनस्यता वश आपस में लड़ने पर ही अधिक विश्वास रखते हैं ! यूरोप के देश आज इतिहास में की गई अपनी-अपनी गलतियों को भुलाकर मिल-जुलकर,शांतिपूर्वक रहने की मिशाल कायम कर रहे हैं और यही उनकी आर्थिक,सांस्कृतिक और सामाजिक उन्नतिशील होने का मूलमंत्र भी है,दूसरी तरफ हम मूर्खतापूर्ण ढंग से हर समय बस हर हर महादेव,जै श्री राम और अल्लाह हो अकबर के नारे लगाने और दंगे -फसाद करने में सबसे आगे हैं ! मजहबी नारे लगाने,मजहब के नाम पर लड़ -कट मरने आदि जैसे मूर्खतापूर्ण कृत्य अक्सर करते ही रहते हैं ! अस्पताल,खूबसूरत पार्क,स्कूल,कॉलेज, यूनिवर्सिटीज,मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज और शोध संस्थाएं बनाने के बदले हम अभी भी मंदिर मस्जिद आदि बनाने में आज भी सबसे ज्यादा विश्वास करते हैं,जिनका मानव समाज को प्रगतिशील,वैज्ञानिक और जागरूक करने में कोई योगदान ही नहीं है,अपितु वे भारतीय समाज को अंधविश्वास व पाखंड के अंधकूप में डालने का कुकृत्य करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं ! बौद्धिक रूप से हम लोग पश्चिमी देशों के मुकाबले अभी भी बिल्कुल बौने और बच्चे बने हुए हैं,तभी तो वे खुद सुख,चैन,आराम और शांति से रहकर खरबों रूपयों के आधुनिकतम् युद्धक हथियार यथा तोप,टैंक,लड़ाकू विमानों और मिसाइलों को हमें बेचकर खुद मौज कर रहे हैं और हम अपने पड़ोसियों से हमेशा लड़कर हर वर्ष अरबों -खरबों रूपये नष्ट तो करते ही हैं,बिना वजह अपने हजारों बेगुनाह जवानों को मौत के घाट उतार देने भी सहयोग करते हैं !
हम सकारात्मक प्रयास क्यों नहीं करते ?
यक्षप्रश्न है कि क्यों नहीं हम भी इस दुनिया में अपना मजबूत स्थान और भागीदारी पाने के लिए कुछ सकारात्मक प्रयास करें बजाय दिन-रात मंदिर-मस्जिद और हिंदू-मुस्लिम जैसे विवाद उत्पन्न करने के,हमें सबसे पहले इंसान बनना शुरू कर देना चाहिए,इसके अलावे हमें भी पढ़ना,लिखना,शिक्षित,विद्वान और वैज्ञानिक बनने का प्रयास शुरू कर देना चाहिए,यह बहुत जरूरी है,हमें अपने-अपने धर्मों की कथित श्रेष्ठता पर इतराना भी बंद कर देना चाहिए,इसके लिए केवल आज की सरकारें या राजनीति ही जिम्मेदार नहीं हैं,बल्कि इन सारी मूर्खतापूर्ण बातों के लिए सब कुछ जानते हुए हम-आप सभी लोग भी जिम्मेदार हैं क्योंकि हम न कभी निष्पक्ष थे और न आज हैं, हम भी इन्हीं बातों के भक्त, जाहिल और मूर्ख बने हुए हैं,चूँकि सभी धर्म सिर्फ अतीत पर जीते हैं ! वर्तमान की उनकी कोई उपलब्धि ही नहीं है। हमारे पर दादा पहलवान थे,इसी घमंड पर हम लोग छाती फुलाए जा रहे हैं,परन्तु हमारी आज की वर्तमानकाल में क्या स्थिति है,इसका भी आत्मावलोकन एकबार अवश्य कर लेना चाहिए,पिछले 220 सालों के विराट समय की हमारी उपलब्धि दुनिया के अन्य सभ्य देशों के मुकाबले लगभग नगण्य सी है ! हम आज तक एक सुई,एक पेन और एक अदद साईकिल तक का भी अभी तक अविष्कार नहीं कर पाए ! हमें अब अपने अतीत की कथित बड़ी उपलब्धियों और बहादुरी के लिए स्वयं की पीठ थपथपानी अब सदैव के लिए बंद कर देनी ही चाहिए ! और वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर आत्मावलोकन करके ईमानदारी और प्रतिबद्धता से राष्ट्रराज्य के लिए कार्य करना चाहिए,जैसे दुनिया भर के अन्य सभी सभ्य राष्ट्रों के समझदार और बुद्धिमान लोग कर रहे हैं ।