
प्रमोद भार्गव
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जब से मध्यप्रदेश की कमान संभाली है, तभी से वे देश के उद्योगपतियों को प्रदेश में पूंजी निवेश के लिए बातचीत कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने पंजाब की औद्योगिक राजधानी लुधियाना में प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित किए गए उद्योगपतियों से परस्पर संवाद कायम किया है। उन्हें प्रदेश में सरलता से उद्योग स्थापित करने के लिए भरोसा भी दिलाया। जिससे एक ही खिड़की से जो उद्योगपति प्रदेश में उद्योग लगाने के इच्छुक हैं, उन्हें सभी अनुमतियां मिल जाएं। इसी आश्वासन का परिणाम रहा कि 15,606 करोड़ रुपए के पूंजीनिवेश के प्रस्ताव हाथों-हाथ मिल गए। दरअसल इस संवाद के पूर्व इंदौर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर में कारोबारियों को जो आश्वासन दिए गए थे, सरकार उनके पालन में प्रतिबद्ध दिखाई दी है। यदि यह निवेश समय पर हो जाता है तो निजी क्षेत्र में लगभग 20,000 नए रोजगार सृजित होंगे ?
मोहन यादव ने निवेशकों को हर संभव सहयोग देने की प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि ‘पंजाब जहां कृशि में अग्रणी है तो मप्र खनिज, अधोसरंचना और आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत बनाए हुए है। यदि पंजाब का सहयोग मप्र को मिल जाता है तो दोनों मिलकर देश के विकास की गति को बढ़ाएंगे। वैसे भी लुधियाना, भारत का मैनचेस्टर है।‘ दरअसल मैनचेस्टर इंग्लैंड का एक ऐसा महानगर है जो औद्योगिक क्रांति, मजबूत अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। मैनचेस्टर को दुनिया का पहला औद्योगिक नगर होने का दर्जा प्राप्त है। इसी तर्ज पर उद्योग के क्षेत्र में लुधियाना की पहचान भारत में ही नहीं दुनिया में है। लुधियाना में ऊनी वस्त्रों के साथ आंतरिक वस्त्रों का भी बड़े पैमाने पर निर्माण होता है। यहां कृशि आधारित उद्योग के साथ साइकिलों का भी बड़े मात्रा में निर्माण होता है। ये साइकिलें विविध रूपों एवं आकारों में उपलब्ध होने के साथ गुणवत्ता की दृश्टि से भी अपनी साख बनाए हुए हैं। एक समय की एटलस और हीरो साइकिलें यहीं निर्मित होती थी। आज भी बच्चों, किशोर, युवाओं एवं खिलाड़ियों के लिए भी उच्च गुणवत्ता की साइकिलें पंजाब की भूमि पर ही बनाई जाती हैं, जिनकी पूरे देश में मांग है। यदि मप्र में साइकिल और ऊनी वस्त्रों के एक-दो बड़े कारखाने खुल जाते हैं तो बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन होगा। चूंकि साइकिल और वस्त्र निर्माण में आज भी जटिल तकनीक का इस्तेमाल नहीं होता है, इसलिए मेहनती युवाओं को आसानी से रोजगार मिल जाएगा।
आधुनिक खेती की षुरूआत भारत में पंजाब और हरियाणा से हुई थी। इसलिए ट्रैक्टर और उसके सहायक उपकरणों के निर्माण की शुरुआत पंजाब में आजादी के समय से ही हो गई थी। खेती-किसानी के लिए उपयोगी ट्राली, हैरो, कल्टीवेटर, थ्रेसर, बीज बुबाई मशीन और खेत में ही फसल काटने के हार्वेस्टर जैसी भारी मशीनें यहीं बनाई गईं। अब मप्र एक ऐसा प्रांत बन गया है, जहां गेहूं का उत्पादन सर्वाधिक होने लगा है। ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि प्रदेश में सिंचाई की सुविधा के साथ खेती का रक्बा भी बढ़ गया। बावजूद प्रदेश में अभी किसी ट्रेक्टर एवं हार्वेस्टर का निर्माण तो होता ही नहीं है, उच्च गुणवत्ता के कृशि उपकरणों का निर्माण भी नहीं होता है। इसलिए हम देखते हैं कि फरवरी मार्च में जब गेहूं की फसल काटने का समय आता है, तब पंजाब से मप्र की ओर हार्वेस्टर की कतारें देखने में आने लगती हैं। हालांकि लगभग प्रत्येक जिला मुख्यालय पर ट्रौली व अन्य कृशि उपकरणों का निर्माण तो होता है, लेकिन आज भी उच्च गुणवत्ता के थ्रेसर बना पाना संभव नहीं हुआ है। प्रदेश में सिंचाई का रक्बा बहुत बढ़ गया है। बावजूद सिंचाई के उपकरण पंजाब और हरियाणा से ही खरीदे जाते हैं। यदि पंजाब के उद्योगपति सिंचाई के स्प्रिंकल जैसे उपकरण प्रदेश में बनाते हैं तो उनकी हाथों हाथ खपत होगी।
हालांकि अब कृशि क्षेत्र में तकनीक से जुड़े नए इलेक्ट्रोनिक तौर-तरीके प्रयोग में लाए जाने लगे हैं। इनमें कीटनाशक दवा छिड़काव के लिए ड्रोन, एरियल इमेजिंग और रोबोटिक्स जैसी इलेक्ट्रोनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल होने लगा है। बड़े किसानों के यहां रोबोट जहां खेतों की रखबली से लेकर सिंचाई में योगदान दे रहे हैं, वहीं खेतों में खड़ी फसल की गुणवत्ता परखने के लिए एरियल इमेजिंग अर्थात हवाई छवि का इस्तेमाल होने लगा है। पंजाब इन तकनीकों के निर्माण में आग्रणी है। इस लिहाज से मप्र अभी पूरी तरह पिछड़ा है। अतएव पंजाब के कारोबारी इन तकनीकों से जुड़े उपकरणों का निर्माण प्रदेश में करते हैं तो उनके सामने प्रतिस्पर्धा की कोई चुनौती नहीं होगी। इन कामों के लिए दक्ष इंजनीनियार भी प्रदेश में मिल जाएंगे।
मप्र देश का एकमात्र ऐसा राज्य हैं, जहां हीरे से लेकर सोने और लौह अयस्क तक विविध खनिज संपदाएं धरती के गर्भ में उपलब्ध हैं। निवेशकों को मुख्यमंत्री ने इनके दोहन के लिए आसानी से सुविधाएं हासिल कराने का भारोसा दिया है। जरूरत पड़ने पर वर्तमान नीतियों में भी संशोधन किया जा सकता है। इंवेस्टर मीट में उद्योगपति अकसर यह सवाल उठा देते हैं कि खासतौर से आधुनिक तकनीक से जुड़े उद्योगों के लिए रोजगार के अवसर और नौकरियों पैदा करने की चुनौतियां है। इस दिशा में एक बड़ी बाधा कौशल की कमी जताई जाती है। यहां तक कि इंजीनियर पेशेवरों को भी उद्योग के अनुरूप दक्ष नहीं पाया जाता है। हाल ही में इंस्टीट्यूट फॉर कांपटेटिबनेस द्वारा जारी स्किल्स फॉर द फ्यूचर रिपोर्ट ने बताया है कि या तो पीएचडी डिग्रीधारी चपरासी की नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं या फिर युवाओं के पास उद्योग की जरूरतों के मुताबिक कौशल की कमी है। इन बहानों के चलते उद्योगपति प्रदेश में उद्योग लगाने से पीछे हट जाते हैं। लेकिन पंजाब के उद्योगपति ऐसे पेशेवर रहे हैं, जिन्होंने डिग्री की बजाय अपनी बुद्धि और श्रम से अपने कारखानों को स्थापित किया है। यदि इसी भावना से वे प्रदेश में निवेश करते है तो युवा रोजगारों में कार्य कुशलता की कोई कमी है तो वही प्रशिक्षण देकर दक्षता का पाठ वही पढ़ा देंगे।