
अशोक भाटिया
बिहार की सियासत एक बार फिर से करवट ले रही है। चुनाव नजदीक हैं। एनडीए के खिलाफ महागठबंधन की गोटियां बिछ रही हैं। लेकिन एक नाम है जो इस जोड़-तोड़ को बार-बार बिगाड़ देता है: असदुद्दीन ओवैसी। AIMIM के बिहार अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने हाल ही में लालू प्रसाद यादव को चिट्ठी लिखी। उन्होंने साफ-साफ कहा कि भाजपा को हराने के लिए हमें साथ आना चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि क्या लालू यादव ओवैसी की पार्टी को गले लगाएंगे? मामला बेहद पेचीदा है। एआईएमआईएम भले ही भाजपा के खिलाफ है, लेकिन आरजेडी समेत महागठबंधन की कई पार्टियों को लगता है कि ओवैसी की पार्टी लड़ाई को और उलझा देती है। खासकर सीमांचल में।
लालू यादव की पार्टी की नींव यादव और मुस्लिम वोटरों पर टिकी है। जबकि ओवैसी की पकड़ मुस्लिम इलाकों में मजबूत होती जा रही है। अगर एआईएमआईएम को साथ लिया गया, तो मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा लालू को छोड़ ओवैसी के खाते में जा सकता है। ये सियासी जोखिम लालू या तेजस्वी शायद न लेना चाहें।
लेकिन अगर RJD ओवैसी का ऑफर ठुकरा देती है, तो उसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल की 5 सीटें जीत ली थीं। ये वो सीटें थीं, जो कांग्रेस और आरजेडी जीतने का सपना देख रहे थे।अब फिर से ओवैसी दरवाजा खटखटा रहे हैं। लेकिन आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दो टूक कहा, ‘एआईएमआईएम भाजपा की बी-टीम की तरह काम करती है।’ उन्होंने कहा कि फैसला लालू और तेजस्वी लेंगे, लेकिन बिहार में इस बार कोई वोट बंटवारा नहीं होगा। तेजस्वी की लहर सब पर भारी पड़ेगी।उधर, एआईएमआईएम भी जवाबी हमला करने में पीछे नहीं है। प्रवक्ता वारिस पठान कहते हैं, ‘हर बार हमें बी-टीम कहते हैं, लेकिन कोई सबूत नहीं देते। हमने हरियाणा में चुनाव नहीं लड़ा, फिर वहां कांग्रेस क्यों हारी?’
पठान का कहना है कि पार्टी का मकसद सिर्फ भाजपा को हराना है और सेक्युलर वोटों का बंटवारा रोकना है। अगर आम आदमी पार्टी लड़े तो कोई सवाल नहीं पूछता, लेकिन एआईएमआईएम को लेकर हर बार अंगुली उठाई जाती है।अगर लालू यादव ओवैसी का प्रस्ताव ठुकरा दें तो? वारिस पठान साफ कहते हैं, ‘अगर गठबंधन नहीं होता, तब भी हम चुनाव लड़ेंगे। कोई हमें रोक नहीं सकता।’ उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी अब सिर्फ मुस्लिम चेहरों तक सीमित नहीं रहेगी। पार्टी ने पूर्वी चंपारण की ढाका सीट से राजपूत नेता राणा रंजीत को उम्मीदवार बनाया है। और भी गैर-मुस्लिम उम्मीदवार जल्द सामने आ सकते हैं।सीमांचल से बाहर भी एआईएमआईएम ने जोर लगाना शुरू कर दिया है। पार्टी अब बाढ़, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, पलायन और मानव तस्करी जैसे मुद्दों को उठाने लगी है। खासकर उन इलाकों में, जहां अब तक कोई ध्यान नहीं देता था।एआईएमआईएम अगर महागठबंधन का हिस्सा नहीं भी बनी, तो भी सीमांचल की सियासत को उलट-पलट सकती है। और अगर साथ आई, तो मुस्लिम वोटों का समीकरण पूरी तरह से बदल जाएगा।
बिहार के सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया) में 30-68% मुस्लिम आबादी है जहां AIMIM ने 2020 में मजबूत प्रदर्शन किया था। ओवैसी का यह ऑफर सीमांचल के मुस्लिम वोटरों को सीधा-सीधा संदेश है कि उनकी पार्टी सेक्युलर गठबंधन के साथ खड़ी है। ओवैसी का दावा है कि उनकी पार्टी 24 सीटें जीत सकती है और उसकी दावेदारी 50 सीटों की है ऐसे में RJD पर दबाव बढ़ गया है कि वह इस प्रस्ताव को गंभीरता से ले या न ले। यही कारण है कि तेजस्वी यादव इन दिनों मुस्लिम वोटों को लामबंद करने के लिए आक्रामक दिख रहे हैं। उन्होंने हाल में ही वक्फ कानून पर बयान दिया कि-हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं। वहीं, दूसरी ओर मुहर्रम के दौरान प्रतिबंधित क्षेत्र में भी मुहर्रम का ताजिया रबड़ी आवास पर जाना और रबड़ी देवी का पूजा-अर्चना करना बताता है कि आरजेडी मुस्लिम मतों को एकजुट रखने को लेकर बेहद गंभीर है, लेकिन AIMIM के प्रस्ताव पर वह असमंजस में है।
AIMIM ने पहले भी महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई थी, लेकिन RJD ने इसे ठुकरा दिया। लालू यादव और तेजस्वी यादव को डर है कि AIMIM के साथ गठबंधन से हिंदू वोटरों में नाराजगी बढ़ेगी और BJP इसे ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के रूप में प्रचारित करेगी। RJD प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने AIMIM को ‘वोट कटुआ’ कहा और मनोज झा ने सुझाव दिया कि ओवैसी को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। यह डर RJD के MY समीकरण को बचाने और हिंदू वोटों को नहीं खोने की रणनीति से उपजा है। लेकिन इससे AIMIM को अकेले लड़ने का मौका मिल सकता है, जो आरजेडी और महागठबंधन के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
असदुद्दीन ओवैसी ने दावा किया कि उनका लक्ष्य NDA को हराना है और महागठबंधन के साथ गठजोड़ इस लक्ष्य को मजबूत करेगा। लेकिन RJD को लगता है कि AIMIM का साथ लेने से सीमांचल में सीटों का बंटवारा होगा, क्योंकि AIMIM 25-30 सीटों की मांग कर रही है, जबकि RJD 8-10 से ज्यादा देने को तैयार नहीं। 2020 में AIMIM की वजह से RJD को कई सीटों पर नुकसान हुआ था और तेजस्वी इस जोखिम को दोहराना नहीं चाहते। वहीं, जानकारों की नजर में अगर महागठबंधन की बेरुखी दिखाता है तो ओवैसी के लिए थर्ड फ्रंट बनाने की राह बन जाएगी जो RJD के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
मुहर्रम के दौरान सांप्रदायिक हिंसा और सनातन महाकुंभ जैसे आयोजनों ने बिहार में चुनावी माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है। ओवैसी का ऑफर और तेजस्वी यादव का आक्रामक रुख धार्मिक ध्रुवीकरण को हवा दे सकता है। BJP सांसद जगदंबिका पाल ने RJD पर तुष्टिकरण का आरोप लगाया, जबकि ओवैसी का कहना है कि वह सामाजिक एकता चाहते हैं। लेकिन बिहार में 18% मुस्लिम आबादी और 80% हिंदू आबादी के बीच बढ़ता तनाव सियासी रणनीतियों को जटिल बना रहा है। राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कि ऐसी सियासत बिहार के सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकती है और ऐसे में ओवैसी का महागठबंधन ऑफर लालू और तेजस्वी के लिए सियासी जाल है। इसे स्वीकारने से हिंदू वोटों का नुकसान और ठुकराने से सीमांचल में वोट बंटवारा हो सकता है, जबकि AIMIM अपनी छवि सुधारने और मुस्लिम वोटों को साधने की कोशिश में है। वहीं RJD की रणनीति MY समीकरण को बचाने की है।
गौरतलब है कि कि सीमांचल मुस्लिम बाहुल इलाकों में शामिल है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआई एम के 5 सीटों पर जीत मिली थी। हालांकि, 5 में से 4 एआईएमआई एम विधायक आरजेडी का दामन थाम चुके हैं। बेशक एआईएमआई एम के विधायक आरजेडी में शामिल हुए लेकिन आरजेडी को फायदे के बदले नुकसान हुआ। एआईएमआई एम द्वारा गोपालगंज और कुढ़नी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किए गए थे और दोनों ही जगह आर जे डी यानि महागठबंधन के प्रत्याशियों की हार हुई। सियासी जानकारों के मुताबिक, महागठबंधन दलों का खेल अगर किसी ने बिगाड़ा तो सबसे ज्यादा एआईएमआई एम ने।
सीमांचल इलाकों में 70 फीसदी मुस्लिम आबादी है और एआईएमआई एम मुस्लिमों को ही अपना वोट मुख्य रूप से मानती है। सीमांचल में 24 विधानसभा सीटें और 4 लोकसभा सीटें हैं। ऐसे में ओवैसी को अच्छी तरह पता है कि उन्हें क्या करना है। ओवैसी ना सिर्फ महागठबंध का खेल बिगाड़ेंगे बल्कि भाजपा के लिए भी बेचैनी बढ़ाने का काम करेंगे। पहले भी सीमांचल में एआईएमआई एम को लाभ ही मिला था ऐसे में भाईजान यानि ओवैसी अपनी खोई हुई ताकत को फिर से सीमांचल में वापस पाना चाह रहे हैं।
ज्ञात रहे कि ओवैसी की पार्टी का जनाधार सीमांचल में अच्छा-खासा है। उन्हें अख्तरुल इमान नाम का एक ऐसा नेता सीमांचल में मिला है, जो शिक्षित और पार्टी के प्रति समर्पित भी है। पिछले लोकसभा चुनाव में ओवैसी को तीन लाख वोट मिले थे। जिसका प्रतिशत बेहतर था। वोट प्रतिशत से ओवैसी को उम्मीद जगी। ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान केवल वफादार साबित हुए बाकी चार विधायक पाला बदलकर तेजस्वी के साथ आ गए थे। पाला बदलने वाले विधायकों में राजद के पूर्व सांसद मरहूम तस्लीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज भी शामिल थे। बाद में आरजेडी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अररिया से शाहनवाज को उम्मीदवार भी बनाया। शाहनवाज को इस सीट पर बीजेपी के प्रदीप सिंह के सामने हार का सामना करना पड़ा। अब ओवैसी की पार्टी छोड़कर पाला बदलने वाले विधायकों के सामने विधानसभा चुनाव जीतने की चुनौती है। बिहार में ओवैसी की पार्टी का 5 साल पुराना इतिहास यह बताता है कि उनकी मजबूती ने तेजस्वी यादव की पार्टी को सीमांचल के इलाके में कमजोर किया था। जाहिर है अब अगर ओवैसी नए इलाकों में अपने उम्मीदवार देते हैं तो इसका सीधा नुकसान महागठबंधन को ही उठाना पड़ेगा। ओवैसी की पार्टी AIMIM मुसलमानों की राजनीति पर फोकस करती है। उनकी पार्टी का सबसे बड़ा वोटर तबका भी मुस्लिम है। जाहिर है अगर बिहार में मुस्लिम वोट पाने में ओवैसी कामयाब रहते हैं तो इसका सीधा नुकसान आरजेडी और उसके गठबंधन को होगा। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी इस बात को भली भांति जानते हैं और यही वजह है कि चुनावी माहौल में लगातार आरजेडी और उसके घटक दल यह बात दोहरा रहे हैं कि ओवैसी बीजेपी की बी टीम की तरह काम करते हैं।
आरजेडी का दावा है कि बिहार में ओवैसी अगर अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं तो इसका सीधा मकसद मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव पैदा करना है। अगर मुसलमानों का वोट बंटेगा तो इसका सीधा फायदा बीजेपी और एनडीए गठबंधन को होगा। महागठबंधन ने ओवैसी की पार्टी को बिहार में वोट कटवा बता डाला है, बावजूद इसके ओवैसी और उनकी पार्टी जिस तरह बीजेपी पर हमलावर नजर आते हैं ।
ओवैसी बिहार में विधानसभा चुनाव के अंदर जिस तरह महागठबंधन के लिए परेशानियां पैदा करेंगे, उसके बाद यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई ओवैसी के आने से बिहार में एनडीए का काम आसान हो जाएगा? देखा जाए तो चुनाव में कौन सा मुद्दा कब सबसे ऊपर आ जाए इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। वोटों में सेंधमारी के लिहाज से भले ही ओवैसी महागठबंधन के लिए सिरदर्द बने हों, लेकिन बिहार चुनाव में ओवैसी की एंट्री होने से कई ऐसे धार्मिक मुद्दे भी गर्म रहेंगे, जो बीजेपी और उसके सहयोगियों के लिए चुनौती पेश करेंगे। देश में नया वक्फ एक्ट लागू होने के बाद पहला चुनाव बिहार में ही होना है, ऐसे में ओवैसी बिहार चुनाव के दौरान इन सवालों को लेकर भाजपा और एनडीए की घेरबंदी खूब करेंगे। ओवैसी के निशाने पर सेक्युलर इमेज रखने वाले नीतीश कुमार भी होंगे।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार