सबका साथ, सबका विकास अब वैश्विक स्तर पर

Sabka Saath, Sabka Vikas now at global level

जरूरत है सभी लोकतांत्रिक मुल्कों के लिए एक कॉमन ग्लोबल पॉलिटिकल पार्टी की। भारत इस सपने को वसुधैव कुटुंबकम् के सोच के आधार पर हकीकत में बदलने की पहल करे।

बृज खंडेलवाल

बिजनेसमैन एलन मस्क द्वारा अमेरिका में एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू करने का विचार साहसी और स्वागत योग्य है। जाहिर है कि अब राजनीति की परिभाषा सीमाओं में बंधी नहीं रह सकती—आज के इस ‘ग्लोबल गाँव’ में एक नई सोच, नया तानाबाना चाहिए।

लेकिन इस वक्त दुनिया जिन चुनौतियों से दो-चार है—जैसे बढ़ती भूराजनीतिक तनातनी, परमाणु युद्ध की आशंका, आर्थिक असमानता और सांस्कृतिक बिखराव—उनसे निपटने के लिए हमें और भी बड़ा क़दम उठाना होगा, और वो होगाएक वैश्विक राजनीतिक पार्टी का गठन, जिसकी शाखाएँ दुनिया भर की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में खुलकर चुनाव लड़े, और राजनीति करें ।
यह पार्टी अमन, साझेदारी और सह-अस्तित्व जैसे साझा मूल्यों पर आधारित होगी और लोकतंत्र को मज़बूती देने, वैश्विक एकता को बढ़ावा देने, तथा विनाशकारी संघर्षों की आशंका को कम करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम होगा।

इस तरह की पार्टी एक साझा वैश्विक मंच बन सकती है—“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को आधार बनाकर—जो सीमाओं से परे जाकर काम करे, लेकिन स्थानीय यथार्थ और सांस्कृतिक विविधता का पूरा सम्मान करे। हर देश की शाखा अपने राष्ट्रीय संदर्भ में इस वैश्विक दृष्टिकोण को लागू करे, ताकि समावेशिता बनी रहे।

वैचारिक आज़ादी, व्यापार की खुली राहें और संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देकर यह पार्टी उस तानाशाही और उग्र राष्ट्रवाद की लहर को टक्कर दे सकती है, जो आज लोकतांत्रिक संस्थाओं को अंदर से खोखला कर रही है।
मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक न्याय जैसे सार्वभौमिक मूल्य इस पार्टी की विचारधारा की नींव बन सकते हैं—जो “तू-तू, मैं-मैं” की सियासत की जगह इंसानियत का उसूल अपनाए।

इस वैश्विक पार्टी का एक सबसे अहम फ़ायदा यह हो सकता है कि यह युद्ध की संभावना को कम कर दे। अगर राष्ट्र एक साझा सैन्य दृष्टिकोण या अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे पर एकमत हों, तो सीमाई टकराव और रक्षा बजट दोनों घट सकते हैं। आज जो अरबों-खरबों की रकम हथियारों पर खर्च होती है, उसे शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास में लगाया जा सकता है—जहाँ से असल स्थिरता आती है।

यह सोच सोवियत युग की कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जैसी योजनाओं से कहीं बेहतर हो सकती है, जो कट्टरपंथ और एकांगी सोच के कारण विफल हो गई थीं।

इस नई वैश्विक पार्टी में बहुलता, लचीलापन और उच्च मानवीय मूल्यों की जगह होगी। आज़ादी, आवाजाही और आपसी तालमेल होगा। जब एक वैश्विक पार्टी वीज़ा-मुक्त आवाजाही, प्रतिभा का आदान-प्रदान और पर्यटन को बढ़ावा देने वाले नीतिगत बदलावों को लागू कराएगी, तो न केवल आर्थिक सहयोग बढ़ेगा, बल्कि संस्कृतियों के बीच संवाद भी मज़बूत होगा।

देश मिलकर पर्यावरण संकट, तकनीकी नवाचार और संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण पर काम कर सकेंगे। तालमेल की तामीर होगी, न कि दीवारों की।

अब नहीं तो कभी नहीं। आज का दौर ‘ख़ौफ़ के साए’ में जी रहा है—परमाणु टकराव की आशंका, आर्थिक मंदी, और जलवायु संकट सर पर मंडरा रहे हैं।इसलिए हमें सिर्फ़ द्विपक्षीय समझौते या क्षेत्रीय गठबंधनों से आगे सोचना होगा।

एक वैश्विक लोकतांत्रिक पार्टी इन संकटों का ढांचा-स्तरीय हल पेश कर सकती है—जहाँ बातचीत, सहयोग और सामूहिक कार्रवाई की गुंजाइश हो। स्मरण रहे संयुक्त राष्ट्र संघ अपने वर्तमान स्वरूप में पूर्णतया फेल हो चुका है।

प्रस्तावित ग्लोबल पार्टी के सदस्य शांति और सहअस्तित्व की कसमें खाकर नई विश्व व्यवस्था के प्रतिनिधि बन सकते हैं—जो ‘राष्ट्रीय स्वार्थ’ की जगह मानवता की भलाई को प्राथमिकता दे।

कुछ आलोचक कह सकते हैं कि यह विचार राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरे में डाल सकता है या एक तरह की विचारधारा थोप सकता है। लेकिन अगर यह पार्टी एक गठबंधन की तरह काम करे—जो विविधताओं का आदर करे और उन्हें अपनाए—तो यह चिंता बेमानी हो जाएगी।इसकी ताक़त लचीलापन और साझा मूल्य होंगे—न कि एकरूपता। यह समय की पुकार है । एक वैश्विक राजनीतिक पार्टी आज महज़ कल्पना नहीं, एक ज़रूरत है।

यह पार्टी हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा सकती है—जहाँ जंग की जगह बातचीत हो, टकराव की जगह तालमेल हो और नफ़रत की जगह मोहब्बत हो।जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था: “हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले…” । अब वक्त है कि इन ख्वाहिशों को ज़मीनी हक़ीक़त बनाया जाए—एक वैश्विक लोकतांत्रिक पार्टी के ज़रिए।