सादगी की सियासत: मनोहर लाल की राजनीति और परछाइयाँ

Politics of simplicity: Manohar Lal's politics and shadows

मनोहर लाल खट्टर हरियाणा की राजनीति में सादगी, ईमानदारी और पारदर्शिता के प्रतीक बनकर उभरे हैं। जहाँ अधिकतर नेता सत्ता से वैभव कमाते हैं, वहीं खट्टर जी ने जनता का भरोसा कमाया। उनके शासन में लाखों नौकरियाँ बिना सिफारिश और रिश्वत के दी गईं। निजी संपत्ति की बजाय उन्होंने मेहनती युवाओं की दुआएँ कमाईं। स्वयंसेवक से मुख्यमंत्री तक का सफर तय करते हुए वे दिखावे नहीं, सेवा में विश्वास रखते हैं। उनके पास महल नहीं है, पर जनता के दिलों में स्थान ज़रूर है — यही है सच्चे जनसेवक की पहचान।

प्रियंका सौरभ

जब भी हरियाणा की राजनीति पर नज़र डालते हैं, एक बात तुरंत सामने आती है — सत्ता में आते ही नेताओं की कोठियों की संख्या बढ़ जाती है, गाड़ियों के काफिले लम्बे हो जाते हैं, और रिश्तेदारों के व्यापार अचानक बढ़ने लगते हैं। मगर इन सब के बीच एक नाम ऐसा भी है जो न कोठी वाला है, न खानदान का ठेकेदार — मनोहर लाल खट्टर।

तो सवाल यही है — क्या कमाया मनोहर लाल ने राजनीति में?

उत्तर साफ है — उन्होंने कमाया विश्वास। उन्होंने कमाई उन लाखों मेहनती, पढ़ने-लिखने वाले गरीब बच्चों की दुआएँ, जो कभी सोच भी नहीं सकते थे कि बिना सिफारिश, बिना रिश्वत, सिर्फ मेहनत के दम पर उन्हें भी सरकारी नौकरी मिल सकती है।

जहाँ अधिकतर नेता राजनीति को वैभव और व्यक्तिगत लाभ का ज़रिया मानते हैं, वहीं मनोहर लाल खट्टर सादगी और पारदर्शिता का प्रतीक बनकर सामने आए। वे मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनका खुद का कोई निजी मकान नहीं है। न पंचकूला, न गुरुग्राम, न चंडीगढ़ में कोई कोठी या फार्महाउस। आज भी वे दो कमरों के सरकारी क्वार्टर में रहते हैं।

उन्होंने न केवल अपने निजी जीवन को सादा और संयमित रखा, बल्कि सरकार चलाते समय भी जनता के पैसे को जनता के काम में लगाया। जहाँ अन्य नेता अपनी संतानों और नातेदारों को सत्ता में भागीदार बनाते रहे, वहीं खट्टर ने व्यवस्था को मजबूत करने और भरोसे को लौटाने की कोशिश की — वह भी बिना किसी शोर-शराबे के।

मनोहर लाल खट्टर का जन्म पाँच मई उन्नीस सौ चौवन को निंदाना गाँव, ज़िला रोहतक (अब झज्जर), हरियाणा में हुआ। उनका परिवार देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से भारत आया था। प्रारंभिक शिक्षा रोहतक में प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद उन्होंने पूरी तरह से स्वयंसेवक संगठन को समर्पित कर दिया और लंबे समय तक पूर्णकालिक प्रचारक रहे।

वे लगभग चालीस वर्षों तक स्वयंसेवक संगठन से जुड़े रहे और संगठनात्मक अनुभव के साथ वर्ष उन्नीस सौ चौरानवे में भारतीय जनसंघ से सक्रिय राजनीति में आए। दो हजार चौदह में जनसंघ की ऐतिहासिक जीत के बाद उन्हें हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया — यह नियुक्ति जाति, जातिगत संतुलन या जोड़तोड़ से नहीं, बल्कि विचार, व्यवहार और संगठन की निष्ठा के आधार पर हुई।

हरियाणा में एक समय ऐसा भी था जब नौकरी पाना मतलब किसी विधायक या मंत्री की पहचान ढूंढना होता था। पैसे लेकर नौकरियाँ बेची जाती थीं, परीक्षाएँ लीक होना आम बात थी। मनोहर लाल खट्टर के शासन में यह व्यवस्था बदली। चयन बोर्ड और लोक सेवा आयोग की प्रक्रियाएँ पारदर्शी बनीं, आवेदन और चयन की प्रक्रियाएँ ऑनलाइन हुईं, परिणामों में निष्पक्षता आई।

अब एक साधारण परिवार का बच्चा भी कह सकता है — अगर पढ़ाई की है, तो नौकरी मेरी है।

उनके कार्यकाल में लाखों नौकरियाँ बिना सिफारिश, बिना रिश्वत के दी गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि गाँव-गाँव में युवाओं का आत्मविश्वास लौटा। अब युवा किसी नेता की सिफारिश नहीं ढूंढते, बल्कि अपने पुस्तकालय में और अधिक समय बिताने लगे हैं।

यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने लाखों युवाओं को सिर उठाकर जीने का हक़ दिया है — बिना किसी समझौते के।

बेशक, मनोहर लाल खट्टर पर भी आलोचनाएँ हुईं — कभी किसान आंदोलन को लेकर, कभी पुलिस व्यवस्था या कर्मचारियों की माँगों को लेकर। लेकिन उन्होंने कभी भाषा की मर्यादा नहीं तोड़ी, न ही किसी आंदोलनकारी को दुश्मन की तरह देखा। उन्होंने संवाद और संयम की नीति अपनाई। यह उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है — काम को प्रचार नहीं बनाना, और आलोचना को अवसर की तरह लेना।

उनके शासनकाल में कई नवाचार हुए — परिवार पहचान पत्र की योजना, सरल पोर्टल, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का प्रभावी संचालन, डिजिटल सेवा केंद्रों की स्थापना, पारदर्शी शिकायत निवारण प्रणाली — ये सब व्यवस्थागत सुधार हैं, जिनका सीधा लाभ आम आदमी तक पहुँचा है।

आज जब राजनीति में जाति, धर्म और बाहरी प्रदर्शन प्राथमिक हो गया है, मनोहर लाल खट्टर उन चंद नेताओं में हैं जो विचार, व्यवहार और परिणाम से अपनी पहचान बनाए हुए हैं।

उनका जीवन यह सिखाता है कि सत्ता का असली सौंदर्य दिखावे में नहीं, सेवा में है। वे युवाओं के लिए इस मायने में आदर्श हैं कि ईमानदारी केवल आदर्श नहीं, एक जीवन पद्धति हो सकती है।

उनके कार्यकाल में न कोई बड़ा भ्रष्टाचार हुआ, न उनके नाम कोई आय से अधिक संपत्ति की चर्चा हुई। न उनके परिवार ने सत्ता का लाभ उठाया, न कोई मित्र-मंडली मलाईदार पदों पर बैठाई गई।

तो राजनीति में क्या कमाया उन्होंने?

उन्होंने कमाया एक ऐसा नाम, जिस पर हरियाणा का आम नागरिक आँख मूँदकर भरोसा कर सके। उन्होंने कमाया जनता का मन — बिना लोभ, बिना भय, केवल अपने आचरण से।

हरियाणा की राजनीति में मनोहर लाल खट्टर किसी अवरोध की तरह नहीं, एक विकल्प की तरह उभरे हैं। उन्होंने यह साबित किया कि राजनीतिक ईमानदारी कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक जीवंत सच्चाई भी हो सकती है।

हो सकता है उनके पास अपनी कोठी न हो,
मगर उन्होंने लाखों युवाओं को मेहनत से नौकरी पाने का सपना दिया।
हो सकता है उनके पास गाड़ियों का काफिला न हो,
मगर उन्होंने आम आदमी को पारदर्शिता, सुरक्षा और सेवा का भरोसा दिया।

सत्ता को साधन नहीं, साधना मानने वाले मनोहर लाल जैसे नेता राजनीति में बहुत कम आते हैं।
और जब आते हैं, तो महलों में नहीं,
जनता के दिलों में घर बना लेते हैं।