बिहार चुनाव से पहले घोषणाओं का लगा अंबार !

A plethora of announcements before Bihar elections!

सुनील कुमार महला

हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला आरक्षण को लेकर एक बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने यह घोषणा की है कि बिहार राज्य की मूल निवासी महिलाओं को अब राज्य की सभी सरकारी सेवाओं, संवर्गों और सभी स्तरों के पदों पर सीधी नियुक्ति में 35% आरक्षण दिया जाएगा तथा यह आरक्षण सभी प्रकार की सरकारी नौकरियों पर लागू होगा। पाठकों को बताता चलूं कि बिहार में 60% जातीय-आर्थिक आरक्षण पहले से ही लागू है। 35% मूल बिहारी महिलाओं के इस आरक्षण के बाद यह बढ़ कर 74% पर पहुंच जाएगा, जिसका सीधा असर अनारक्षित वर्ग पर पड़ेगा जिसके लिए बस 14% सीटें ही बचेंगी। वर्तमान में राज्य में 18% अतिपिछड़ा, 12% अन्य पिछड़ा, 16% एससी, एक प्रतिशत एसटी और ओबीसी महिलाओं का 3% आरक्षण लागू है। इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का 10% भी है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इसका फैसला(आरक्षण देने का) लिया गया है। यहां यह उल्लेखनीय है कि देश में सभी राज्य सरकारें महिलाओं को कुल पदों में अपने-अपने हिसाब से आरक्षण देती रहीं हैं। जैसे कि उत्तराखंड में सरकारी भर्तियों में महिलाओं के लिए 30 फीसदी आरक्षण, मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35 फीसदी आरक्षण, यूपी में राज्य सरकार की ओर से 20 फीसदी आरक्षण, केरल-कर्नाटक, तेलंगाना-पंजाब में 33 फीसदी, और त्रिपुरा में 33 फीसदी पद नौकरियों में आरक्षित किए गए हैं। संशोधन संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत राजस्थान की भजनलाल सरकार ने कुछ समय पहले राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम-1989 में संशोधन करते हुए सीधी भर्ती में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया था। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भाजपा सरकार के 100 दिन पूरे होने पर महिलाओं को शिक्षक भर्ती में 50 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया था। हालांकि , विधि विभाग ने इस प्रस्ताव पर आपत्तियां जताई और फाइल लौटा दी।इसी प्रकार से महिला आरक्षण बिल के पास होने के बाद संसद और विधानसभाओं(विधायिका) की 33 फीसदी सीटों पर महिला आरक्षण की बात कही गई है,जो साल 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के कार्यकाल में पास हुआ था। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि बिहार में चार माह के भीतर विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक प्रकार से महिलाओं पर लगाया गया बड़ा दांव ही कहा जा सकता है, ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी जीत हासिल कर सके। गौरतलब है कि साल 2005 में महिला सशक्तिकरण की बात करके ही नीतीश कुमार सत्ता में आए थे। बहरहाल, राजनीतिक दल और उनके नेता यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि आज के समय में महिला वोटरों की चुनावों में बहुत बड़ी भूमिका होती है और महिला वोटर नायिका बनकर उभरतीं हैं। स्वयं नीतीश कुमार भी इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि आज के समय में बड़ी संख्या में महिला मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने लगी हैं। आंकड़े बताते हैं कि बिहार में साल 2020 के विधानसभा चुनाव में तो पुरुषों के मुकाबले 5.24 फीसदी अधिक महिलाओं ने वोट डाले थे। जानकारी के अनुसार वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में 59.69 फीसदी महिलाओं ने वोट दिए थे और 26 महिलाएं जीतकर आगे आईं थीं। हालांकि, वर्ष 2015 में 28 महिलाएं जीतकर विधानसभा पहुंचीं थीं। नीतीश कुमार जानते हैं कि महिलाओं के वोट हासिल कर वे सत्ता की चाबी तक आसानी से पहुंच सकते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि चुनाव से पहले नीतीश कुमार, ने मतदाताओं को लुभाने के लिए लाभकारी योजनाओं की राशि भी बढ़ाई। उपलब्ध जानकारी के अनुसार सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाकर 60 लाख परिवारों को फायदा पहुंचाया है। इतना ही नहीं,नीतीश कैबिनेट ने सीता मंदिर के लिए ₹883 करोड़ की बड़ी राशि देने का ऐलान किया।इसी प्रकार से बिहार में बुजुर्गों और दिव्यांगजनों को मिलने वाली पेंशन राशि 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये प्रतिमाह कर दी गई,जिसे जुलाई से मिलने की बात कही गई है। और तो और नीतीश ने राज्य की युवा आबादी को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए बिहार युवा आयोग की भी घोषणा की है। पाठकों को बताता चलूं कि युवा आयोग इस बात की निगरानी करेगा और सुनिश्चित करेगा कि राज्य के युवाओं को राज्य के भीतर निजी क्षेत्र के रोजगार में प्राथमिकता दी जाए। चुनावों से पहले उच्च जाति आयोग, अनुसूचित जाति (एससी) आयोग, महादलित आयोग और मछुआरा आयोग का गठन करने की बात भी मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले कहीं थी। कहना ग़लत नहीं होगा कि नीतीश कुमार इस प्रकार की घोषणाओं से सामाजिक संतुलन और सियासी समीकरणों को साध रहे हैं।कुल मिलाकर, सच तो यह है कि बिहार चुनाव से पहले जनता दल (यूनाइटेड) ने ‘पच्चीस से तीस, फिर से नीतीश’ का नारा दे दिया है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि बिहार देश के उन शुरुआती राज्यों में एक है, जिसने पंचायत और स्थानीय निकायों में आधी आबादी के लिए पचास फीसदी सीटें आरक्षित की हैं और बिहार सरकार के इस कदम ने यहां की स्त्रियों में जबर्दस्त राजनीतिक जागरूकता पैदा की है। नीतीश कुमार ही नहीं, बिहार में अब हरेक राजनीतिक दल विशेषकर महिला वर्ग को व युवाओं को आकर्षित करने में जुट गया है। गौरतलब है कि कांग्रेस महागठबंधन ने बिहार राज्य में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के पूर्व राज्य महिलाओं को सशक्त करने के लिये ‘माई बहिन मान योजना’ कैंपेन लॉन्च किया है। इस योजना के तहत महिलाओं को प्रतिमाह 2,500 रुपये की सम्मान राशि सीधे उनके खाते में भेजी जाएगी। इधर, राजद नेता तेजस्वी यादव बेरोजगारी और डोमिसाइल के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहे हैं। ऐसे में, नीतीश सरकार के महिला आरक्षण के इस नीतिगत दांव व अन्य दावों को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। वैसे भी महिला आरक्षण बिहार जैसे राज्य में एक बड़े सामाजिक बदलाव का वाहक बन सकता है। वैसे देखा जाए तो नीतीश कुमार का महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण का यह फैसला स्वागत योग्य ही कहा जा सकता है, क्यों कि इससे महिलाओं को आगे बढ़ने के सुअवसर प्राप्त होंगे और वे स्वावलंबी, सशक्त बन सकेंगी। समाज से लैंगिक खाई भी कम हो सकेगी, क्यों कि बिहार जैसे राज्य में आज भी बहुत कम महिलाएं ही सरकारी नौकरियों में हैं। चुनाव अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन यदि चुनावों के बहाने से ही समाज में कुछ अच्छा हो रहा है,तो इससे काबिले-तारीफ और बात भला क्या हो सकती है। किसी समाज में यदि कोई महिला आज आगे आती है तो इससे देश व समाज की तरक्की ही होती है। बहुत अच्छा हो यदि अन्य राज्य सरकारें भी महिलाओं के लिए ऐसे विशेष प्रबंध करने के लिए आगे आएं।