
प्रमोद भार्गव
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) के प्रवासी भारतीय शुभांशु शुक्ला ने भविष्य की सुरक्षित खेती-किसानी के लिए अंतरिक्ष में बीज बो दिए हैं। यह सुनने में आश्चर्य होता है कि अंतरिक्ष लोक में खेती ? आखिर कैसे संभव है ? मनुष्य धरती का ऐसा प्राणी है, जिसकी विलक्षण बुद्धि नए-नए मौलिक प्रयोग करके धरती के लोगों का जीवन सरल व सुविधाजनक बनाने में लगी है। इसी क्रम में अब अंतरिक्ष में किया जा रहा खेती करने का प्रयोग है। परंतु ऋग्वेद के हिरण्यगर्भ सूक्त में हम देखते हैं कि अंतरिक्ष में जीव-जगत को पैदा करने वाले सभी सूक्ष्म जीवों के रूप में पूर्व से ही विचरण कर रहे हैं।
हमें ज्ञात है कि 11 जून 2025 को अपने तीन अन्य साथी यात्रियों के साथ षुभांशु ने एक्सिओम-4 अभियान के अंतर्गत अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी। 28 घंटे में 420 किमी की यात्रा कर यान अपनी मंजिल पर पहुंचा। यहां यह भी हैरानी पाठकों की हो सकती है कि जब फाल्कन-9 ड्रैगन रॉकेट की गति 27 हजार किमी थी, फिर इतना समय कैसे लग गया ? प्रश्न तार्किक है। इसकी मुख्य वजह है, वायुमंडल का गुरुत्वाकर्षण! असल में यहां शून्य गुरुत्वाकर्षण के साथ ‘निर्वात‘ यानी खाली जगह की मौजदूगी है। अर्थात यह ऐसी स्थिति दर्शाता है, जहां कोई हवा या गैस उपस्थित नहीं होती है। इस कारण यान की गति धीमी होती है। अब तक 633 यात्री अंतरिक्ष स्टेशन पर अपने कदम रख चुके हैं। शुभांशु 634वें यात्री हैं। इस अभियान का लक्ष्य इस अंतरिक्ष ठिकाने पर विशेष खाद्य पदार्थ और उनके पोषण संबंधी 60 प्रयोग करना है। इनमें सात इसरो यानी भारतीय अनुसंधान संगठन के हैं। हम इन्हीं खाद्य बीजों की बात करेंगे।
शुभांशु शुक्ला अपने साथ गाजर और मूंग की दाल का हलवा और आमरस ले गए थे। ये सब उनकी मां ने अपने हाथों से बनाए थे। मां के हाथ से बनी भोज्य सामग्री में मीठा स्वाद तो होता ही है, साथ ही पुत्र के सुखी और उपलब्धियों से भरे मनोभाव की उन विद्युतीय तरंगें का समावेश भी होता है, जो प्रतिपल अंगुलियों से फूटती रहती हैं। उन्होंने यह भोजन अपने साथियों को भी खिलाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुभांशु से हुई अठारह मिनट की बातचीत में यह पूछा भी ‘क्या अपने साथियों को भारतीय व्यंजन खिलाए ?‘ शुभांशु ने बताया, ‘हम सभी ने इसे खाया और सभी को यह पसंद भी आया।‘ भला इन शाकाहारी व्यंजनों की दुनिया में तुलना कहां ?
अंतरिक्ष स्टेशन प्रतिदिन पृथ्वी की 16 बार परिक्रमा करता है। यात्रियों को विभिन्न 16 सूर्योदय और 16 सूर्यस्त देखने का रोमांच और आनंद मिलता है। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है, सूर्य अनेक हैं। सात दिशाएं हैं, उनमें नाना सूर्य हैं,
सप्त दिशो नानासूर्याः सप्त होतार ऋत्विजः।
ऋग्वेदः9.114.3
अथर्ववेद में सात विशाल सौर मंडल उल्लेखित हैं..,
यस्मिन् सूर्या अर्पिताः सप्त साकम।
अथर्ववेदः 13.3.10
मेथी और मूंग की दाल के बीज अंतरिक्ष में बोकर अंकुरित करने के प्रयोग का नेतृत्व धरती से दो कृशि विज्ञानी रविकुमार होसामणि और सुधीर सिद्धपुरेड्डी कर रहे हैं। एक्सिओम स्पेस अभियान की ओर से जारी एक बयान में कहा है कि यात्रियों के धरती पर लौटने के बाद बीजों को कई पीढ़ियों तक उगाया जाएगा। तंत्र और पोशण की क्रमिक विकास की संरचना होने वाले बदलावों को ज्ञात किया जा सके। षुभांशु एक अन्य प्रयोग के लिए सूक्ष्म षैवाल ले गए हैं, जिससे भोजन, प्राणवायु (ऑक्सीजन) और यहां तक की जैव ईंधन उत्पन्न करने की क्षमता को वैज्ञानिक ढंग से परखा जा सके।
अंतरिक्ष में आनुवंशिकी सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी तंत्र और उनकी पोशण संरचना की जानकारी हमें अपने प्राचीन संस्कृत ग्रंथ श्रीमद्भागवत में भी मिलती है। कश्यप-दिति पुत्र हिरण्यकश्यप केवल बाहुबलि ही नहीं है, अपितु अपनी मेधा और अनुसंधानमयी साधना से उन्होंने चमत्कारिक वैज्ञानिक उपलब्धियां भी प्राप्त की हुई हैं। सभी बुद्धिमान जानते हैं कि प्रकृति में उपलब्ध प्रत्येक पदार्थ के सूक्ष्म कण स्वमेव संयोजित होकर केवल नव-सृजन ही नहीं करते हैं, अपितु उन्हें संयोजित और वियोजित (विघटित) भी करते हैं। अतएव इस अनंत ब्रह्मांड में दृश्य एवं अदृश्यमान संपूर्ण पदार्थों के तत्व उपलब्ध हैं। सूर्य की किरणों में भी सभी पदार्थों को उत्सर्जित करने वाले तत्वों की उपस्थिति मानी जाती है। हिरण्यकश्यप वायुमंडल में विचरण कर रहे इन मूलभूत तत्वों पर नियंत्रण की वैज्ञानिक विधि में निपुण थे। श्रीमद्भागवत के स्कंध-1, अध्याय-4 में कहा है..,
अकृश्टपच्या तस्यासीत सप्त द्वीपवतीमही।
तथा कामुधाद्यौस्तु नानाश्चर्य पदं नभः।।
अर्थात दैत्यराज हिरण्यकश्यप अपने तप और योग से इतना तेजस्वी हो गया था कि पृथ्वी के सातों द्वीपों पर उसका एक छत्र राज था। बिना जोते-बोए ही धरती से सभी प्रकार के अन्न पैदा होते थे। ‘अकृश्टपच्या‘ का अर्थ, भूमि को बिना जोते-बोए फसल उत्पन्न करने की विधि कहा जाता था। यानी अंतरिक्ष में या तो बीज अंकुरित किए जाते थे या प्राकृतिक रूप में उन्हें हासिल कर लिया जाता था। क्योंकि उनके उत्सर्जन के सूक्ष्म जीव वायुमंडल में हमेशा मौजूद रहते हैं।
अब दुनिया के भौतिक विज्ञानी मानने लगे हैं कि अंतरिक्ष और अनंत ब्रह्मांड में विविध रूपों में जीव-जगत व वनस्पतियों का सृजन करने वाले बीजों के सूक्ष्म कण हमेशा विद्यमान रहते हैं। गन्ना (ईख) एक बार बोने के बाद कई साल तक फसल देता है। रूस के वैज्ञानिकों ने ऐसे संपुटिका (कैपस्यूल) बना लिए हैं, जिनमें बीजों के कई-कई मूल कण संयोजित रहते हैं। आनुवंशिक रूप से बीजों को परिवर्धित करके कुछ इसी तरह के उपाय किए जा रहे हैं।
हमारे दिव्यज्ञानी ऋशियों ने ऋग्वेद के दसवें मंडल के ‘हिरण्यगर्भ‘ सूक्त में सृजन के सूक्ष्म जीव को हजारों वर्श पहले ज्ञात कर लिया था.., हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक असीत।
स दाधार पृथिवीं धामुतेमां कस्मै देवाय हविशा विधेम।।
अर्थात, इस सृश्टि के निर्माण से पहले इसके आदि स्रोत के रूप में हिरण्यगर्भ अत्यंत सूक्ष्म रूप में विद्यमान था। इसी सूक्ष्म से सृश्टि का विस्तार हुआ। इस विशाल सृश्टि के आधारभूत मूल में प्रकृति अत्यंत सूक्ष्म है, जिसे केवल अनुमान से ही जाना जा सकता है। हिरण्यगर्भ में हिरण्य स्वर्ण सी चमकने वाली ऊर्जा का प्रकाशपुंज है। ‘गर्भ‘ से आशय कोख या अंडे से है। यही वह प्राकृतिक अवयव, अंग, बीज या उपकरण हैं, जिनसे संपूर्ण जीव-जगत पैदा होता है।