
- समिति प्रणाली की समीक्षा के लिए गठित पीठासीन अधिकारियों की भोपाल विधान सभा में बैठक में देवनानी ने दिए महत्त्वपूर्ण सुझाव
- विधान सभा समितियाँ में सदस्यों का चयन का आधार दलीय के साथ-साथ योग्यता भी हो
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली/भोपाल/जयपुर : राजस्थान विधान सभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि विधानसभा समितियाँ सदन का एक छोटा स्वरूप होती हैं, जिनकी कार्यवाही लोकतंत्र की पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन के लिए अत्यंत आवश्यक है।विधान सभा समितियाँ में सदस्यों का चयन का आधार दलीय के साथ-साथ योग्यता भी होना चाहिए।
देवनानी सोमवार को भोपाल स्थित मध्यप्रदेश विधानसभा में आयोजित समिति प्रणाली की समीक्षा के लिए गठित पीठासीन अधिकारियों की समिति की बैठक को संबोधित कर रहे । भोपाल विधानसभा में आयोजित पीठासीन अधिकारियों की इस बैठक में देवनानी ने महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए ।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने देश के विधान मण्डलों की समितियों की सुदृढता की समीक्षा के लिए सात विधान सभा अध्यक्षों की एक समिति का गठन किया है। देवनानी इस समिति के सदस्य है। यह समिति देश के विभिन्न राज्यों की विधान सभाओं में गठित समितियों का तुलनात्मक अध्ययन कर विधान सभा समितियों की सुदृढता के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर रही है। इस समिति में राजस्थान विधान सभा के साथ मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और ओडिसा विधान सभा के अध्यक्ष भी शामिल है। यह समिति रिपोर्ट को लोकसभा अध्यक्ष को प्रस्तुत करेंगी।
देवनानी ने जोर देकर कहा कि संसदीय समितियों द्वारा परंपराओं के अनुसार, जनप्रतिनिधियों की सहभागिता, प्रशासन की जवाबदेही और लोकतंत्र की गुणवत्ता का वास्तविक परीक्षण किया जाता हैं। देवनानी ने समितियों की सुदृढता के लिये महत्वपूर्ण सुझाव देते हुये कहा कि समितियों की बैठकों में सदस्यों की उपस्थिति को बढायें जाने के लिये सदस्यों के वर्चुअली ऑनलाइन जुडने पर विचार किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि समितियों की बैठकों में सदस्यों के ऑनलाइन जोडे जाने से उनके कार्यों की गोपनीयता के परिणामों पर गंभीरता से सोचना चाहिये। देवनानी का मानना था कि ऑनलाइन बैठक से सदस्यों की उपस्थिति निश्चित रूप से बढ़ेगी लेकिन हमें समिति के कार्यों की गोपनीयता में अधिक सर्तकता बरतनी होगी।
उन्होंने बताया कि विधान सभा समितियों की सुदृढ़ता के लिये शीघ्र ही एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी। समितियों में चार-पाँच वर्ष पुराने मामलों का परीक्षण होता है। उन्होंने सुझाव दिया कि समितियों द्वारा निकटस्थ वर्षों के मामलों का परीक्षण किया जाना चाहिए ताकि समितियों के सुझावों की क्रियान्विति के लिये उसी वर्ष के बजट में समावेश के अवसर मिल सकें।
समितियों की रिपोर्ट पर सदन में हो चर्चा
देवनानी ने सुझाव दिया कि समितियों की रिपोर्ट पर सदन में चर्चा कराये जाने पर विचार करना चाहिये। इससे विधायकों की समितियों के कार्यों में रुचि बढेगी। सदन में समितियों की रिपोर्ट पर चर्चा होने से जवाबदेही भी तय होगी। देवनानी ने कहा कि सदन में समितियों की रिपोर्ट पर चर्चा से विधायकों की समितियों के कार्यों में सहभागिता में वृद्धि हो सकेगी।
प्रश्नों के जवाब समय पर आयेंः
देवनानी ने कहा कि कई बार विधायकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर महीनों तक नहीं आते और कभी-कभी तो पूरा सत्र समाप्त हो जाता है फिर भी उत्तर नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि यदि प्रशासन जवाबदेह नहीं होगा, तो समितियों की भूमिका निष्प्रभावी हो जाएगी। उन्होंने बैठक में बताया कि राजस्थान विधान सभा में इस समस्या के समाधान हेतु उन्होंने स्वयं पहल करते हुए मुख्य सचिव एवं सभी प्रमुख सचिवों के साथ बैठक करके इस समस्या का हल निकाला, जिसके परिणामस्वरूप पिछले सत्रों के प्रश्नों के उत्तर समय पर प्राप्त हो गए हैं।
राजस्थान विधानसभा समिति प्रणाली सुदृढ़ीकरण, नवाचार एवं सुधार की दिशा में अग्रणी
देवनानी ने बताया कि राजस्थान विधान सभा में वर्तमान में 17 समिलियाँ कार्यरत हैं। कुछ समितियों जिनका कार्य अपेक्षाकृत सीमित था, उन्हें अन्य अधिक सक्रिय समितियोंमें सृजनात्मक रूप से विलय कर पुनर्गठित किया गया है जैसे पुस्तकालय समिति को सरकारी आश्वासन समिति में और सदाचार समिति को याचिका समिति में समाहित किया गया है, जिससे समितियों का समेकित और प्रभावी संचालन सुनिश्चित हो सके।
राजस्थान में दो तरह की समितियां:
देवनानी ने कहा कि राजस्थान विधान सभा में स्थायी व तदर्थ समितियां बनी हुई है। स्थायी समितियों को उनके कार्य के अनुसार विभाजित किया गया है। सरकार की वित्तीय एवं प्रशासनिक शक्तियों पर नियंत्रण रखने वाली समितियां, जॉच करने वाली समितियों, संवीक्षा करने वाली समितियाँ, सभा के दिन-प्रतिदिन के कार्य संबंधी समिति और सदस्यों की सुविधाएँ दिलाने संबंधी समिति बनाई गई है। उन्होंने कहा कि समिति के सदस्य विधान सभा के सदस्य ही हो सकते हैं, मंत्री किसी भी स्थायी समिति का सदस्य नहीं होता है। मंत्रीगण केवल विधेयक पर गठित प्रवर समिति के सभापति होते है।
सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति का गठन
देवनानी ने कहा कि सभी समितियों की गतिविधियों की समयबद्ध समीक्षा हेतु ‘सामान्य प्रयोजन समिति’ का गठन किया गया है। उन्होने बताया कि राजस्थान विधान सभा में ऐसी समिति का गठन पहली बार हुआ है। इस समिति की अध्यक्षता स्वयं अध्यक्ष करते हैं और जिसमें सभी समितियों के सभापति शामिल होते हैं। प्रत्येक तीन माह में बैठक आयोजित होती है, जिसमें समितियों की बैठक संख्या, परीक्षणों की प्रगति, सदस्यों की उपस्थिति आदि की गहन समीक्षा की जाती है। उन्होंने कहा कि यह समिति समितियों की सक्रियता को आंकने का एक पारदर्शी माध्यम बन गई है, जिससे ना केवल कार्यप्रणाली में सुधार हुआ है, बल्कि सदस्यों की सहभागिता में भी बढ़ोतरी हुई है। देवनानी ने यह भी कहा कि अब समिति सदस्यों की वार्षिक उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए पुनर्नियुक्ति का निर्णय लिया जाता है। जो सदस्य अत्यंत न्यूनतम उपस्थिति दर्ज कराते हैं, उन्हें दोबारा समिति में शामिल न करने पर भी विचार किया जाता है।
देवनानी ने कहा समितियों के माध्यम से ही हम जनप्रतिनिधियों की आवाज़ को सुशासन की व्यवस्था में प्रभावशाली रूप से स्थापित कर सकते हैं। यह आवश्यक है कि न केवल समितियाँ सक्रिय रहें, बल्कि उनका दायित्व और परिणाम भी जनता तक पहुंचे। यह हमारा लोकतांत्रिक कर्तव्य भी है और दायित्व भी।
अगली बैठक राजस्थान में:
देवनानी ने समिति प्रणाली की समीक्षा के लिए गठित पीठासीन अधिकारियों की समिति की अगली बैठक को राजस्थान में किये जाने का प्रस्ताव रखा। देवनानी के इस प्रस्ताव पर बैठक में चर्चा के बाद स्वीकार किया गया।
श्री देवनानी का विधानसभाध्यक्ष तोमर ने किया स्वागत
इसके पहले मध्य प्रदेश विधान सभाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने देवनानी का भोपाल स्थित मध्य प्रदेश विधान सभा पहुंचने पर पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। दोनों के बीच संसदीय प्रक्रियाओ, समिति की कार्यप्रणाली और लोकतंत्र के विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श हुआ।