साहित्य की पाठशाला” रहे स्व. यशवंत गौतम को कोंडागांव में दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

Heartfelt tributes were paid to late Yashwant Gautam in Kondagaon, who was a "school of literature"

मनीष कुमार त्यागी

साहित्यकारों ने साझा किए संस्मरण, भावनाओं से भीगा ‘बैठका-हाल’

कोंडागांव : “माँ दंतेश्वरी हर्बल स्टेट परिसर’ के ‘बैठका-हाल’ में रविवार को आयोजित श्रद्धांजलि सभा में अंचल के लोकप्रिय साहित्यकार, उत्कृष्ट शिक्षक और सच्चे मनुष्य स्वर्गीय यशवंत गौतम को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद, कोंडागांव के तत्वावधान में आयोजित इस आयोजन में अंचल के साहित्यकारों, पत्रकारों, समाजसेवियों व शिक्षकों ने उनकी स्मृति में अपने अनुभव, संस्मरण और श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के छायाचित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ, तत्पश्चात उपस्थित सभी साहित्यप्रेमियों ने स्व. यशवंत गौतम के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धा निवेदित की।
कार्यक्रम का प्रभावशाली संचालन शायर व कवि सैयद तौसीफ आलम ने किया, जिन्होंने उन्हें ‘साहित्य की चलती-फिरती पाठशाला’ बताते हुए उनके साथ साझा काव्य मंचीय अनुभवों को भावुकता के साथ स्मरण किया। छ.ग. हिंदी साहित्य परिषद के अध्यक्ष श्री हरेंद्र यादव ने उन्हें एक ऐसा भाषाविद व साहित्य अनुरागी बताया जो शब्दों के माध्यम से जनसंवेदना की बात करता था। राष्ट्रीय सेवा योजना के पूर्व जिला संघटक आर. के. जैन ने उनके अनुशासन, समयबद्धता और सेवा-भाव को रेखांकित किया। वरिष्ठ साहित्यकार शिवलाल शर्मा ने 30-35 वर्ष पूर्व की स्मृति साझा करते हुए बताया कि कोंडागांव में मतदान द्वारा आयोजित लोकप्रिय शिक्षक चयन में युवाओं द्वारा उन्हें और वरिष्ठ वर्ग द्वारा श्रद्धेय गौतम जी को चुना गया था।
इस अवसर पर ‘ककसाड़’ पत्रिका के संपादक, प्रख्यात साहित्यकार डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने उन्हें हिंदी व हल्बी भाषा के विलक्षण साहित्यकार के रूप में स्मरण करते हुए कहा—
“गौतम जी की कविता ‘गांव माने गांव’ न केवल ग्रामीण जीवन का जीवंत चित्रण है, बल्कि यह कविता हमारे समय की आत्मा है।
उन्होंने जिस सादगी, संघर्ष और संकल्प के साथ साहित्य साधना की, वह आज दुर्लभ है।
उनकी साहित्यिक धरोहर को संजोकर नई पीढ़ी तक पहुँचाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।” (डॉ. राजाराम त्रिपाठी, संपादक ‘ककसाड़’)
वरिष्ठ साहित्यकार व्याख्याता जमील अहमद ने उनकी कविताओं के पुनर्पाठ व पुनर्प्रकाशन की आवश्यकता पर बल दिया और उनके नाम पर पुरस्कार स्थापित करने का सुझाव रखा। साहित्य परिषद के कोषाध्यक्ष व्याख्याता बृजेश तिवारी ने उनके पुत्र विकास गौतम व पुत्रवधू की सेवा भावना की मुक्तकंठ से प्रशंसा की और उन्हें ‘आधुनिक युग का श्रवण कुमार’ बताया।
उन्होंने कहा— “आज भी ऐसे उदाहरण समाज को प्रेरणा देते हैं कि जीवन मूल्यों का दीप बुझा नहीं है।”
देशवती कौशिक ने रूंधे गले और नम आंखों से कहा कि उन्होंने सदैव उन्हें पिता का प्यार तथा अपनापन दिया जिसे कभी भुला नहीं सकती।
साहित्य परिषद के महासचिव जनकवि उमेश मंडावी ने उन्हें कर्मनिष्ठ शिक्षक और भाव-सम्वेदनशील साहित्यकार कहते हुए उनकी रचनाओं के दस्तावेजी संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।
सभा में जब-जब यशवंत गौतम से जुड़े संस्मरणों की गूंज हुई, तब-तब साहित्यकारों की आंखें नम होती रहीं। उनके जीवन के अंतिम दो वर्षों के रोग-संघर्ष को सभी ने एक अद्भुत जीवटता का उदाहरण माना।
सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
इस अवसर पर सम्पदा स्वयंसेवी संस्थान की सचिव शिप्रा त्रिपाठी, माँ दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग त्रिपाठी, कवयित्री मधु तिवारी, देशबती कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार रंजीत बक्सी व शंकर नाग (जगदलपुर) तथा वरिष्ठ समाजसेवी व मुस्लिम समाज के पूर्व सदर यासीन भाई की गरिमामयी उपस्थिति भी विशेष रही।
चालीस दिवसीय हज यात्रा से लौटे मुस्लिम समाज के पूर्व सदर तथा प्रसिद्ध समाजसेवी मोहम्मद यासीन भाई ने भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें “साहित्य और सेवा का समन्वय” बताया।