
निर्मल रानी
याद कीजिए 31 मार्च, 2016 को राज्य में हो रहे चुनावी दंगल के बीच कोलकाता में विवेकानंद फ़्लाईओवर गिरने की घटना और उसके बाद इस हादसे पर हुई ज़बरदस्त राजनैतिक बयानबाज़ी को । इस हादसे को लेकर बंगाल की ममता सरकार पर कटाक्ष करते हुए पीएम मोदी ने ज़बरदस्त हमला बोला था। उस हादसे में 25 लोग मारे गये थे। पुल निर्माता कम्पनी ने इस हादसे को दैवीय कृत्य बताकर हादसे के कारण पर पर्दा डालने की कोशिश की थी। परन्तु उसी दौरान बंगाल में अपनी चुनावी सभाओं में इस हादसे को ज़ोरदार चुनावी मुद्दा बनाते हुये तरह तरह की बातें की थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर ‘मौत की राजनीति’ करने का आरोप लगाया था। मोदी ने कहा था कि ‘कोलकाता में हुआ फ़्लाई ओवर हादसा ‘दैविक संदेश’ है कि लोग बंगाल को तृणमूल कांग्रेस से बचाएं। यह एक्ट ऑफ़ गॉड नहीं एक्ट ऑफ़ फ़्रॉड है।’ प्रधानमंत्री ने उस समय कहा था कि ‘वामपंथ और दक्षिणपंथ को भूल जाइए, उनके बारे में चिंता कीजिए जो मर रहे हैं। कम से कम मृतकों को तो सम्मान दीजिए। लेकिन दीदी को मरते लोग नहीं, कुर्सी दिखाई पड़ती है’। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि ‘उनकी(ममता) बेशर्मी तो देखिए। यह एक बड़ा हादसा था, लेकिन उन्होंने आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू कर दिया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि ठेका पिछली वाम मोर्चा की सरकार के शासनकाल में दिया गया था। मैं दीदी से यह बात पूछना चाहता हूं कि पुल निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसके उद्घाटन के वक़्त उन्होंने क्या यह बात कही कि इसका ठेका वाम मोर्चे की सरकार ने दिया था? नहीं, आपने इसका श्रेय लिया। अब चूंकि यह गिर चुका है, इसलिए आप दूसरों पर आरोप लगा रहे हैं। यह आपकी ‘पैसे और मौत की राजनीति’ का एक हिस्सा है।’ उसी समय मोदी ने बड़े गर्व से यह भी फ़रमाया था कि ‘जिस राज्य में भाजपा की सरकार है, वहां चौतरफ़ा विकास हो रहा है। आपने बंगाल में वाम और तृणमूल को बहुत देखा और दोनों ने बंगाल को बर्बाद करने के लिए सब कुछ किया। भाजपा को एक मौक़ा दीजिए और हम आपको दिखाएंगे कि विकास का मतलब क्या होता है।
परन्तु इत्तेफ़ाक़ से मोदी के इस भाषण के बाद ही भाजपा शासित राज्यों के कथित ‘विकास मॉडल’ की जो पोल खुलनी शुरू हुई वह परत दर परत खुलती ही जा रही है। ख़ासकर भाजपा शासित उस गुजरात राज्य की जिस के विकास मॉडल का नाम पर 2013 से लेकर देश को ठगा जा रहा था। परन्तु एक के बाद एक कई बड़े हादसे होने के बाद अब गुजरात मॉडल का नाम लेना कम हो गया है। अन्य भाजपा शासित राज्यों की तो बात ही छोड़िये केवल गुजरात में ही हाल के वर्षों में कई पुल टूटने की घटनाएँ सामने आई हैं। इनमें अभी ताज़ातरीन घटना महिसागर नदी पर बने वडोदरा और आणंद को जोड़ने वाले गंभीरा ब्रिज के ढह जाने की हुई। गत 9 जुलाई को यह विशाल एवं व्यस्त पुल ढह गया जिसके चलते 5 वाहन नदी में गिर गये। इस हादसे में 17 लोगों की मौत की ख़बर है जबकि कई लोग अभी भी लापता बताये जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि रखरखाव के अभाव के चलते यह व्यस्त पुल जर्जर होता जा रहा था जो सरकार की अनदेखी के कारण एक बड़े हादसे की नौबत तक आ पहुंचा।
इसी ‘मॉडल राज्य ‘ में 30 अक्टूबर 2022 को मोरबी केबल ब्रिज हादसा हुआ था जबकि मच्छू नदी पर बना सस्पेंशन ब्रिज टूट गया था। 7 महीने के नवीनीकरण के बाद पर्यटकों हेतु यह पुल खोला गया था। इस सस्पेंशन ब्रिज टूटने के हादसे के समय पुल पर 300 से अधिक लोग मौजूद थे, जो इसकी क्षमता से ज़्यादा थे । इस हादसे में 135 लोगों की मौत हुई थी और 56 लोग घायल हुए थे। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहत कार्यों का निर्देश दिया था और मृतकों के लिये 2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की थी। इसी तरह गुजरात में ही 24 सितंबर 2023 को सुरेंद्रनगर ब्रिज हादसा हुआ था जबकि सुरेंद्रनगर, राष्ट्रीय राजमार्ग को चूड़ा से जोड़ने वाला 40 साल पुराना पुल टूट गया था। इस हादसे में एक ट्रक सहित कई वाहन नदी में गिर गये थे। यह पुल भी जर्जर संरचना और भारी वाहनों के दबाव के चलते ध्वस्त हुआ था। इसी तरह बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए निर्माणाधीन एक पुल वासद, आणंद में टूट गया। 5 नवंबर 2024 को हुये इस हादसे में 3 मज़दूरों की मौत हुई थी। इस हादसे का कारण भी निर्माण में ख़ामियों की संभावना बताई गए थी। इसी तरह 24 जनवरी 2020 को मेहसाणा में खारी नदी पर बना पुल टूट गया था तो 21 दिसंबर 2021 को अहमदाबाद में मुमतपुरा पुल का एक भाग टूट गया।जबकि जून 2025 में बोटाद में पाटलिया नदी पर बना पुल बारिश के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था। सवाल यह है कि ‘मॉडल राज्य गुजरात ‘ में होने वाले ऐसे हादसे क्या भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम नहीं ? निश्चित रूप से गुजरात में पुल टूटने की इस तरह की घटनाएँ संरचनात्मक सुरक्षा और रखरखाव की कमी को उजागर करती हैं। और बार-बार होने वाले ऐसे हादसों से जनता में सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ता है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्य प्रदेश या राजस्थान इन सभी भाजपा शासित राज्यों में कहीं निर्माणाधीन सड़कें बह रही हैं कहीं उद्घाटन से पूर्व कोई प्रोजेक्ट धराशायी हुआ जा रहा है। यद् कीजिये महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले के मालवन में स्थित राजकोट क़िले में केवल आठ माह पूर्व छत्रपति शिवाजी महाराज की जिस 35 फ़ुट ऊँची मूर्ति का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों गया था वह प्रतिमा 26 अगस्त 24 को ताश के पत्तों की तरह ढह गयी। उस समय चुनावी बेला में समय को भांपते हुये शिवाजी महाराज की इस प्रतिमा ढहने के मामले पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छत्रपति शिवाजी से माफ़ी मांगने के लिये सार्वजनिक रूप से सामने आना पड़ा था । उस समय मोदी ने कहा था कि “छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल हमारे लिए एक महान व्यक्ति हैं, बल्कि वह हमारे आदर्श हैं। मैं उस मूर्ति के चरणों में झुक रहा हूं और अब उनसे सिर झुकाकर माफ़ी मांग रहा हूं। हमारे लिए शिवाजी आराध्य देव हैं।” परन्तु भाजपा शासित राज्यों में हुये बड़े से बड़े हादसों पर और आम लोगों की मौत की ज़िम्मेदारी लेना तो दूर न तो इनके लिये कभी मुआफ़ी मांगी गयी न ही खेद जताया गया। सवाल यह है कि जब कोलकाता का एक फ़्लाई ओवर ढहना प्रधानमंत्री की नज़रों में ‘एक्ट ऑफ़ फ़्रॉड’ था तो गुजरात व अन्य भाजपा शासित राज्यों में हो रहे रहे इस तरह के ‘एक्ट’ को भी तो कोई नाम दीजिये जनाब ?