
साधुओं के भेष में मुस्लिम, इस साधु-जिहाद-तंत्र के पर्दाफाश की जरूरत
प्रमोद भार्गव
भारत इस्लामीकरण के भयावह संकट के दौर से गुजर रहा है। लव जिहाद,भूमि जिहाद,धर्मपरिवर्तन और आतंकवाद से तो भारत जूझ ही रहा है ,अब साधु जिहाद भी उत्तराखंड में ढोंगी बाबाओं के खिलाफ चलाए जा रहे ‘कालनेमि अभियान’ में देखने में आया है। देहरादून पुलिस ने तीन दिन चलाए अभियान में 82 साधुओं की धरपकड़ की है ,इनमें मुस्लमान तो हैं ही,बांग्लादेश से आए घुसपैठिए भी हैं। सभी मुस्लिम साधु सनातनी हिन्दू का भगवा चोला ओढ़े हुए हैं। अभी तो ये केवल उत्तराखंड में पकड़े गए हैं। समूचे भारत में मालूम नहीं कितने होंगे। उत्तराखंड में लव और भूमि जिहाद के बाद अब साधु जिहाद के केंद्र में आ गया है। उत्तराखंड में सबसे जयदा तीर्थ स्थल हैं। बद्रीनाथ,केदारनाथ,गंगौत्री ,जमनौत्री के अलावा हरिद्वार और ऋषिकेश भी यहीं हैं। अब तक मालूम नहीं इन मुस्लिम साधुओं ने कितने युवाओं को साधु बनने का झूठा मंत्रजाप करके मुसलमान बना दिया होगा ?कई धर्मभीरू स्त्रियां भी छली गई होंगी ? मुस्लिम और ढोंगी बाबाओं के इस तंत्र से सरकार तो अपने स्तर पर निपटेगी ही ,उस सनातनी हिंदू साधु अखाड़ों और संगठनों को भी अपनी-अपनी जगह युद्धस्तर पर निपटने की जरुरत है, वे जिन-जिन क्षेत्रों में धर्म और अध्यात्म की पताका फहरा रहे हैं।
साधु-संतो के बीच अपने को ज्ञान के क्षेत्र में श्रेष्ठ बनाए रखने की प्रतिस्पर्धा़ तो शताब्दियों से रही है, लेकिन अब इस होड़ में मुस्लिम साधुओं का शामिल होना और साधु जिहाद का तंत्र विकसित करने की पुष्ट जानकारी मिलना चिंता की बात है। मुस्लिम समाज के धर्म स्थलों पर नजर डालें तो पता चलता है कि मुल्ला-मौलवियों ने इस्लाम को धर्मांतरण,लव एवं भूमि जिहाद और आतंकवाद का औजार बनाया हुआ है। पिछले तीन दशक से यह गोरखधंधा देश के सीमांत प्रदेशों में धड़ल्ले से चल रहा है और अब देश के मध्य व ऊत्तरी क्षेत्रों में भी फ़ैल गया है। उत्तर-प्रदेश के बलरामपुर में हिंदुओं को मुसलमान बनाने का व्यक्ति केंद्रित छांगुर तंत्र सामने आया है।इसके पहले मौलाना कलीम सिद्दीकी को मतांतरण के आरोप में हिरासत में लिया था। वह अपने ट्रस्ट के जरिए विदेशी धन से इस कुत्सित काम में लगा थे। एक समय पंजाब में नए राष्ट्र खालिस्तान की कल्पना का आधार भी धर्म बना था। साफ है, तथाकथित धर्म के नाम पर इसलामीकरण के ये उपाय चिंता में डालने वाले हैं।इनसे सरकार और साधु समाज को कड़ाई से निपटना होगा।
शंकराचार्य ने साधु-संन्यासियों के सार्थक उपयोग के लिए ही चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी। इन मठों को ज्योतिर्मठ, श्रंृगेरी, गोवर्धन और शारदा मठ के नामों से जाना जाता है। ये मठ धर्म और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के साथ सामाजिक कार्यों से तो जुड़े ही थे,धर्मांतरण पर रोक के काम भी कर रहे थे।तुलसीदास ने भी धर्मांतरण के विरुद्ध अपनी कविताओं के माध्यम से आक्रामकता लाकर धर्मभीरू जनता को जागरूक किया था। अकबर के शासनकाल में इस जागरूकता इस अभियान को अपराध माना गया। परिणामतः उन्हें कारागार में डाल दिया गया था । भष्ट्राचार के चलते भारत का संस्थागत एवं प्रशासनिक ढ़ांचा गड़बड़या हुआ है। बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के भी आधार,मतदाता और राशन कार्ड बना दिए गए।नरेंद्र मोदी सरकार इस समस्या से युद्धस्तर पर लड़ रही है। ऐसे में मानवीय पक्षों को उभारते हुए धार्मिक ट्रस्ट और उनका संरक्षक साधु समाज को इस्लामिक और ढोंगी बाबाओं के आगे आकर पर्दाफाश करना होगा। भारत के मंदिरो, गुरूद्वारो में भक्तों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और भक्त सामर्थ्य से ज्यादा दिल खोलकर दान भी दे रहे हैं। भारत के हर परिर्वतनकारी युग में मठ, मंदिरों और साधुओं ने सास्ंकृतिक चेतना का नवजागरण कर राष्ट्र निर्माण को नया मोड़ देते हुए समय-समय पर उदात्त भावनाओं और मंगलकारी सिद्धान्तो का प्रतिपादन किया है। जिससे धर्म, दीर्धकालीक सत्ताधारियों के राजनीतिक लाभ का हितपोषक न बना रहे।आज देश पर धर्मांतरण और कई तरह के जिहादों का संकट मंडरा रहा है, इससे साधु समाज को निपटने के लिए आगे आने की जरूरत है। मध्ययुग के अंधकार से भारतीय जनमानस को कबीर, तुलसी, सूर, रैदास, दादू, मलूकदास और नानकदेव जैसे संत कवियों ने ही उबारकर नवयुग के निर्माण की आधारशीला रखी थी।
स्ंवतत्रता पूर्व भारत में करीब 60 लाख साधु थे, लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या बढ़कर एक करोड़ के ऊपर पहुंच गई है। इनके पन्द्रह अखाड़े हैं। जिनके नियम साधुओं पर लागू होते हैं। हालांकि साधु समाज की इस गणना में रोगी, भिखारी, बाजीगार, सपेरे, नट, मदारी, लावारिस और अपाहिज भी शुमार हैं। इनकी संख्या 80 प्रतिशत है। पहुंचा हुआ साधु इन्हें साधु नहीं मानता। ऐसे ही साधुओं की बदौलत घर्म और नैतिकता का मूलमंत्र खंडित हो रहा है। ये साधु ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से पैठ बनाकर ग्रामीणों को गांजा, भांग, बीड़ी, सिगरेट जैसे व्यसनों का आदि बना देते हैं। यही साधु वेषधारी हत्या, बलात्कार, ठगी और अपहरण जैसे गंभीर मामलों के अरोपी भी निकलते हैं। अब इन्हीं में मुसलमानों ने शामिल होकर हिंदू धर्म को भृष्ट करने के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।दरअसल इन साधुओं को जब अनपेक्षित मान सम्मान मिलने लगता है तो यह बौरा जाते हैं। नतीजतन ज्यादा से ज्यादा धन बटोरने और भौतिक सुविधायें जुटाने में लग जाते हंैं। ऐसे साधुओं की जहां जनता द्वारा उपेक्षा की जाने की जरूरत है, वहीं हिंदू साधु समाज को इनके नकलीपन से पर्दाफाश करने की मुहिम चलाने की जरूरत है।
सनातनी साधु का प्रमुख गुण समष्टिगत होता हैं। इसलिए वह धर्म का प्रतिनिधि है। साधु के सदाचरण, संयमी, असंचयी और सात्विक होने का प्रभाव जितना समाज पर पड़ता है, उतना जनबल तथा धनबल का नहीं पड़ता इसलिए इन दिव्य पुरुषों के एक इशारे पर लोग करोड़ों लुटा देते हैं। यही कारण है कि अपेक्षाकृत कम प्रसिद्धि पाए साधु अथवा मठ-मंदिर के पास भी करोड़ों-अरबों की नकद और अचल परिसंपत्तियांं हैं। जिन साधुओं का कोई उत्तराधिकारी नहीं है,उनके चेले बनकर ये गैर सनातनी साधु न केवल उनकी अचल सम्पत्तियां, बल्कि उनका डाकघरोंं व बैंकों में लाखों-करोड़ों रुपए जमा हैं, उसके वारिश बन बैठेंगे । फिलहाल साधुओं के आत्मलीन होने के बाद यह धन लावारिस धोषित कर दिया जाता है।